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विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी's Blog – July 2012 Archive (3)

सावन का सवैया

सावन का सवैया

(प्रस्तुत रचना "सिंहावलोकन सवैया" में रचित है,जिसे सवैया के सभी प्रकारों में लिखा जा सकता है(मेरी रचना मदिरा सवैय पर आधारित है)।सिंहावलोकन सवैया जिन वर्णों और शब्दों से प्रारम्भ किया जाता है,उसी पर अन्त भी किया जाता है।चरणान्त के शब्द चरण के आगे के शब्द होते हैं।)

*****************************

सावन में गरजे बदरा,

मन मोर नचै वन कानन में।

कानन में मनमोह छटा,

घनघोर घटा घिरि गागन में॥

गागन में चमके बिजुरी,

सिकुरी सुनरी निज आंगन में।

आंगन… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 23, 2012 at 9:47pm — 5 Comments

चल चंदा उस ओर

चल चंदा उस ओर,

जहां नहाती प्रिया सुन्दरी थामें आंचल कोर ।

 

स्वच्छ चांदनी छटा दिखाना,

भूलूं यदि तो राह दिखाना।

विस्मृत हो जाये तन सुध तो,

देना तन झकझोर.........................।

 

मस्त बसंती हवा बहाना,

उसको प्रिय का पता बताना।

हवा तनिक भूले पथ जो,

कर देना उस ओर........................।

 

देख निशा गहराती जाती,

बुझती लौ घटती रे बाती।

लौ तनिक तेज करना,

भरना सुखद अजोर....................।

 

सनी नीर…

Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 23, 2012 at 8:00pm — 19 Comments

॥एक औरत॥

खुले शहरों में मेरी मुस्कराहट अदा है।
बंद शहरों में हमारी अदा ही कजा है॥
खुले शहरों में भी खिलखिलाना मना है।
यही सवाल मेरा इसकी क्या वजा है॥
यूं तो मेरे चाम से मुहब्बत है सबको।
फिर छोटा सा ये क्यों मेरा आसमां है॥
यह तो मुझे बताओ दिल पे हाथ रखकर।
तेरे खुदा से बदतर क्या मेरा खुदा है॥
क्या उसी गुम खुदा की मैं कुदरत नहीं।
गर मेरा नहीं तो क्या तुम्हारा पता है॥
दोगली दुनिया से हम और क्या कहें।
हर सुबूत पेश फिर भी पूछता कहां है॥

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 23, 2012 at 7:44pm — 2 Comments

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