For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog – June 2018 Archive (13)

प्रतीक (लघु रचना ) .....

प्रतीक (लघु रचना ) .....

मेरे होटों पे
तूने अपने स्पर्श से
जो मौन शब्द छोड़े थे
सोचा था
वो
ज़हन की गीली मिट्टी में गिरकर
अमर गंध बन जाएंगे
क्या पता था
वो स्पर्श
मात्र
भावनाओं की आंधी थे
जो अन्तःस्थल में
एक घुटन के
प्रतीक
बन कर रह गए
एक स्वप्न का
यथार्थ कह गए

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 29, 2018 at 12:43pm — 4 Comments

5 क्षणिकाएं :

5 क्षणिकाएं :

१ 

रात 

रोज मरती है

अपने दोस्त 

दिन के 

इंतज़ार में 

................

२ 

तपते सागर का 

दर्द 

लाते हैं मेघ 

भीग जाती हैं 

वसुधा 

...................

३ 

नैनालिंगन 

मौन अभिनन्दन 

अधर समर्पण 

....................

४ 

ज़िद पर आ जाये 

तो 

पाषाणों को…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 28, 2018 at 4:30pm — 4 Comments

विषाक्त उजाले :

विषाक्त उजाले :

कितना लालायित था
बाहर की दुनिया से
मिलने के लिए

दम घुटने लगा था मेरा
अंदर ही अंदर
गर्भ के
घुप अँधेरे में
रोशनी से
आलिंगनबद्ध होने के लिए

जब से
गर्भ से निकला हूँ
जी रहा हूँ
अपनी ही अंतस में
चुपचाप सा
यही सोचते हुए
क्या इन्हीं
विषाक्त

उजालों के लिए
जीव
गर्भ के
अन्धकार का
त्याग करता है


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 27, 2018 at 6:18pm — 6 Comments

अदेह रूप .....

अदेह रूप ...

सर्वविदित है

देह का शून्यता में

विलीन होना

निश्चित है

मगर

अदेह चेतना

सृष्टि में व्याप्त

चैतन्य कणों से

निर्मित

आदि अंत से मुक्त

अनंत

अभिश्रुति की

अभिव्यंजना है

मुझे तुमसे मिलने के लिए

उन अदृश्य कणों से निर्मित

धागों की अदेह को

अपने चेतन में

अवतरित करना होगा

मैं

मेरी देह सी

अतृप्त नहीं रह सकती

मैं

तुमसे

अवश्य मिलूंगी

अपने

अदेह रूप…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 25, 2018 at 11:59am — 10 Comments

अमर हो गयी .. (लघु रचना )

अमर हो गयी .. (लघु रचना )

स्मृति गर्भ में
एक शिला
साकार हो उठी
भाव अस्तित्व
उदित हुआ
शिला की दरारों से
आसक्ति
अदृश्यता की घाटियों से
प्रवाहित हो
स्मृतियों वीचियों पर
अक्षय पल सी
सुवासित हो
अमर हो गयी

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 24, 2018 at 1:27pm — 8 Comments

जाने के बाद ... लघु रचना

जाने के बाद ... लघु रचना

गुज़र गयी
एक आंधी
तुम्हारे स्पर्शों की
मेरी देह की ख़ामोश राहों से
समेटती हूँ
आज तक
मोहब्बत की चादर पर
वो बिखरे हुए लम्हे
तुम्हारे
जाने के बाद

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 23, 2018 at 4:00pm — 12 Comments

कुछ क्षणिकाएं :

कुछ क्षणिकाएं :

1

शुष्क काष्ठ

अग्नि से नेह

असंगत आलिंगन

परिणति

मूक अवशेष

................

2

त्वचा हीन

नग्न वृक्ष

अवसन्न खड़े

अकाल अंत की

आहटों के मध्य

.............................

3

ईश्वर

किसी देवता का

सर्जन नहीं

गढ़त है वो

इंसान की

..........................

4

करता रहा

प्रतीक्षा

एक शंख

नाद के लिए

चिर निद्रा में सोये

मरघट में…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 21, 2018 at 4:04pm — 14 Comments

बातें.....

बातें  ... 

लम्हों की आग़ोश में

नशीली सी रातों की

शीरीं से अल्फ़ाज़ की

महकती बातें

बे हिज़ाब रातों की

शोख़ी भरी शरारतों की

तन्हाई में भीगी

बरसाती बातें

आँखों के सागर में

जज़्बात की कश्ती में

यादों के साहिल पे

सुलगती बातें

जिस्म की पनाहों में

अनदेखी राहों में

दिल की गुफ़ाओं में

बहकती बातें

मोहब्बत के मौसम में

आँखों की शबनम में

ग़ज़ल की करवटों…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 21, 2018 at 12:30pm — 14 Comments

कुछ क्षणिकाएं(6) :

कुछ क्षणिकाएं(6) :

1

नैनों का मौन

आमंत्रण

परिणाम

अभ्यंतर में

हुआ आभूषित

मौन

समर्पण

...................

2

पलकों के घरौंदों में

स्वप्न बोलते हैं

नैन

प्रभात में

यथार्थ

तौलते हैं

........................

3

चलो

हो गई मुलाकात

स्पर्शों की आंधी में

बीत गयी रात

हो गई प्रभात

............................

4

प्रेम

मौन अभिव्यक्ति…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 18, 2018 at 4:30pm — 9 Comments

स्वप्न ....

स्वप्न ....
 
कल तक
चूजे से मेरे स्वप्न
रोशनी से डरते थे
हर वक्त
पलकों से…
Continue

Added by Sushil Sarna on June 18, 2018 at 3:30pm — 10 Comments

बरसात ....

बरसात ....

मेघों की गर्जना

चपला की अटखेलियां

फुहारों में भीगी तेज हवाएँ

वातायन के पटों का शोर

करवटों की रात

लो फिर आ गई

वस्ल की यादें लिए

फिर

आज बरसात

वो चेहरे से उसका

बूंदे हटाना

लटें सुलझाना

हौले से मुस्कुराना

सच कहाँ भूलेगी

वो शर्मीली सी बात

कि याद ले आई

फिर

आज बरसात

बारिश की बूंदों की

अजब सी अगन

स्पर्शों की आहट से

घबराया मन

न और हां की हो गयी…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 15, 2018 at 7:19pm — 9 Comments

कुछ क्षणिकाएं :

कुछ क्षणिकाएं :

शर्मिन्दा हो गई

कुर्सी

बैठ गया

एक

नंगा इंसान

चुनावी साल में

वादों की गठरी लिए

.....................

शरमा गया

इंद्रधनुष

देखकर

धरा पर

इतनी

सफेदपोश

गिरगिटों को

..........................

सफ़ेद भिखारी

मांग रहे

भीख

छोटे भिखारी से

दिखा के

आश्वासनों की

चुपड़ी रोटी

.......................

आ गया

फिर से सावन

टरटराने लगे हैं…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 13, 2018 at 6:46pm — 5 Comments

उम्र के पन्नों पर ...

उम्र के पन्नों पर.... 

उम्र के पन्नों पर

कितनी दास्तानें उभर आयी हैं

पुरानी शराब सी ये दास्तानें

अजब सा नशा देती हैं

हर कतरा अश्क का

दास्ताने मोहब्बत में

इक मील का पत्थर

नज़र आता है

रुकते ही

वक़्त

ज़हन को

हिज़्र का वो लम्हा

नज़्र कर जाता है

जब

किसी अफ़साने ने

मंज़िल से पहले

किसी मोड़ पर

अलविदा कह दिया

नगमें

दर्द की झील में नहाने लगे

किसी के अक्स

आँखों के समंदर

सुखाने…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 8, 2018 at 6:24pm — 10 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service