For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इमरान खान's Blog – June 2011 Archive (6)

जब इच्छा हो मदिरा पी लूँ, प्रतिपग मधुशालायें है.

जब इच्छा हो मदिरा पी लूँ, प्रतिपग मधुशालायें है,

किन्तु सुलभ सुरा का पान, मन का मद भी जाये है.

 

नैनो में प्राण बसे तू ही है मनमीत मेरा,

बनके बजती तू सरगम तू ही है संगीत मेरा,

तुझको दिवास्वप्न में देखूँ , देखूँ भोर के तारों में,

तेरी काया होती निर्मित, हिम पर्वत जलधारो में,

तू ही अतिथि अंर्तमन की दूजा कोई न भाये है

कथित चहुँ लोक में कोटि आकर्षक बालायें हैं

जब इच्छा हो मदिरा पी लूँ, प्रतिपग मधुशालायें हैं

किन्तु सुलभ सुरा…

Continue

Added by इमरान खान on June 16, 2011 at 1:33pm — No Comments

उसके लिए मैंने कई कलाम लिख दिए....

वसीयत मे इमरोज़-ओ-अय्याम लिख दिए,

उसके लिए मैंने कई कलाम लिख दिए.

 

न रंज ही होता न दर्द ओ अलम था,

वो आ गया होता तो बेज़ार कलम था,

एहसान, ये उसी के तमाम लिख दिए.

उसके लिए मैंने कई कलाम लिख दिए.

 

मेरी ख्वाहिशें मुलजिम मेरी रूह गिरफ्तार,

मशकूक कर दिया हालात ने किरदार,

झूटी दफा के दावे मिरे नाम लिख दिए,

उसके लिए मैंने कई कलाम लिख दिए.

 

लिखूं अगर ग़ज़ल तो वो जान-ए-ग़ज़ल है,

अलफ़ाज़-ओ-एहसास मे उसका ही दखल…

Continue

Added by इमरान खान on June 15, 2011 at 6:44pm — 2 Comments

कर दिये फौत ये अरमान हमारे तुमने.......

पंछी ए ख्वाब के पर काट के सारे तुमने,

कर दिये फौत ये अरमान हमारे तुमने।

बेकरारी में ये मदहोश मेरी धड़कन है,

अपना साथी तो फकत टूटा हुआ दरपन है,

बेसदा मेरा तराना हुये अल्फाज भी गुम,…

Continue

Added by इमरान खान on June 13, 2011 at 4:00pm — 1 Comment

गुल तेरे हम ख्वार लिए बैठे हैं....

तेरी याद के अम्बार लिए बैठे हैं,

गुल तेरे हम ख्वार लिए बैठे हैं.

 

क़त्ल कर.. दफना गया है तू जिसको,

हाथो मे वोही प्यार लिए बैठे हैं.

 

जीत का सेहरा तो तेरे सर पे सजा,

हाथ मैं हम 'हार' लिए बैठे हैं.

 

दुश्मन भी शरमा गया.. अब मुझसे,

सीने मैं, इतने वार लिए बैठे हैं.

 

पत्थर का, मुझे देखके दिल भर आया,

आँखों मैं वोह. गुबार लिए बैठे हैं,

 

'उफ़' नहीं मेरी कभी दुनिया ने सुनी,

सदा-ए-दिल…

Continue

Added by इमरान खान on June 11, 2011 at 8:00pm — 5 Comments

हाँ मुझे ही रिश्ते निभाने नहीं आते....

ये रचना मैंने लिखी तो महा उत्सव अंक 8 के लिए थी ... १० जून की रात को पोस्ट भी की लेकिन

शायद मैंने ही लेट हो गया जो सम्मिलित नहीं हो पायी कोई बात यहीं.. ऐसे ही पोस्ट कर देता हूँ...

 

ये गीत मुझे ही गुनगुनाने नहीं आते,

हाँ मुझे ही रिश्ते निभाने नहीं आते



प्यारी ज़मी को मैंने सींचा था खून से,

हर एक बीज बोया था मैंने जूनून से



इक रोज़ भी न मैं तो आराम कर सका,

इक रात भी न मैं तो सोया सुकून से



अपनाऊँ हर शख्स…

Continue

Added by इमरान खान on June 11, 2011 at 11:03am — 1 Comment

मुझपे छाया है नशा, बनके उम्मीदों का शजर....

(अदबी महफ़िल की अज़ीम शख्सियात को मेरा आदाब ! मैं बस ऐसे ही किसी को ढूंढते हुए यहाँ चला आया !वो मुझे मिल गया .. लेकिन साथ ही जादूयी जगह भी मिली ! मुझ जैसे शख्स, जो बहुत कुछ लिखना चाहता है सुनना चाहता है ! न तो मुझ पर कुछ कहना आता है न ही साथ निभाना, जब ओपन बुक ज्वाइन कर ही ली है तो सोचा.. अपनी तुकबंदी भी यहाँ पर जोड़ता चलूँ ! गुज़ारिश है सभी से के कुछ तनक़ीद ज़रूर करैं ... तरीफ के लायक तो मेरे अलफ़ाज़ हैं नहीं…

Continue

Added by इमरान खान on June 10, 2011 at 6:30pm — No Comments

Monthly Archives

2015

2014

2013

2012

2011

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service