हुकूमत तुम ग़रीबों के सरों पर हाथ रक्खेगी,
दबे कुचले हुए लोगो! तुम्हें अब तक भरोसा है?
सियासत अपने मंसूबों में तुमको साथ रक्खेगी,
मसाइल से घिरे लोगो! तुम्हें अब तक भरोसा है?
तुम्हारी आंख से निकले हुए आंसू को वो देखें?
तुम्हारी सिसकियाँ देखें या फॉरेन टूर को देखें?
तुम्हारी फस्ल ना आने के मातम को मनायेगें,
या जाकर वेस्ट कंट्री से वो एफडीआई लायेंगे?
मिटाना चाहते हैं वो दुकानों को बाज़ारों से,
कोई मतलब नहीं उनको ग़रीबों से लाचारों से.
कभी वो ‘बीटी कॉटन’ और कभी वो ‘गेट’ लाते हैं,
तुम्हें ही ढेर करने के वो मनसूबे बनाते हैं.
फलों से सब्जियों से अपने मल्टी स्टोर भर लेना,
वो चाहते हैं तुम्हारी खेतियां मकबूज़ा कर लेना.
तुम्हारे जंगल उनकी आंख में काँटा सा चुभते हैं,
इन्हें कटवा के वो अपनी सिटी स्मार्ट चाहते हैं.
उन्हें बस मॉल बिल्डिंग और मल्टीप्लेक्स प्यारे हैं,
तुम्हारे झोंपड़े उनकी प्लानिंग को बिगाड़े हैं.
तुम्हें पगलो पता भी है ज़माने की परेशानी,
समिट मैं बैठकर चर्चा हुई मौसम बदलने की.
हुई मौसम में तब्दीली जो वो तुमने कराई है,
वो कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग तुमने बढाई है.
ग़रीबो! तुम घरों के चूल्हों से धुआं उड़ाते हो,
किसानो! तुम पे भी इलज़ाम है पूले जलाते हो.
और उन इलज़ाम देने वालों के हमी हैं जो उन पर,
अरे हद से भले लोगो! तुम्हें अब तक भरोसा है?
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
शासन और सत्ता किस तरीके आमजन की सोच और आकांक्षाओं से दूर है यह किसी एक देश की बात नहीं है. आपकी इस नज़्म में इसी भाव को खूबसूरती से शब्दों में पिराया गया है. आपकी जागरुकता को साझा करते इस नज़्म के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएँ और हार्दिक बधाइयाँ, इमरान भाई.
गिरिराज जी गज़ल आपको पसंद आई मेरे लिए खुशी का मुकाम है, बेहद शुक्रिया।
कांता जी आपकी हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया
पसंद करने के लिए शुक्रिया दिग्विजय साहब
नज़्म उर्दू में कविता को कहते हैं। इसमें मतले, मकते वगैरह की पाबंदी नहीं होती। अक्सर एक ही ख्याल का गहराई से नज्म में शायर बयान करता है। गजल की तरह नज्म में हर शेर का आजाद तरीके से मुकम्मल होना जरूरी नहीं होता और एक शेर के बाद दूसरे शेर से भी मफहूम जुड़ा हो सकता है।
इज़्ज़त अफज़ाई के लिए शुक्रिया लक्ष्मण धामी साहब।
आदरणीय इमरान भाई , इस मार्मिक नज़्म के लिये आपको दिली बधाइयाँ ।
तुम्हारे जंगल उनकी आंख में काँटा सा चुभते हैं,
इन्हें कटवा के वो अपनी सिटी स्मार्ट चाहते हैं.------ क्या बात है ! क्या बात है ! हर अशआर को पढ़ने पर जुबान पर बस एक ही बात है , वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह !!!!!!!
बधाई आदरणीय इमरान खान जी।
सर अगर नज्म कि शिल्प के बारे में थोड़ी जानकारी साझा करें तो मजा आ जाए । वैसे आपकी नज्म दिल को छू गयी, जनाब । सादर
आ० इमरान भाई इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई l
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online