1212 1122 1212 112/22
वो मेरे सामने आने पे मुस्कुरा न सके
नज़र झुकाई जो इक बार तो उठा न सके
हज़ार कोशिशें की रश्क़ तो छुपा न सके
मगर हँसी में मेरी बात भी उड़ा न सके
उन्होंने जिक्र मेरा छेड़ तो दिया सरे बज़्म
वही बातें मेरे होते वो दोहरा न सके
हर एक सम्त से नज़रें उठीं हमारी तरफ
कि कहते कहते भी वो हालेदिल सुना न सके
बस एक रोज़ की थी ज़िन्दगानी फूलों की
वो बदनसीब रहे जो चमन सजा न…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on June 3, 2015 at 6:25pm — 16 Comments
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सर्द है आज मेरी आह बहुत
फिर उठी दिल में तेरी चाह बहुत
खुदनुमाई से बाज़ आ नादाँ
तेज़ है दुनिया की निगाह बहुत
तोड़ना दिल किसी का क्या मुश्किल
हाँ कठिन इश्क़ की है राह बहुत
सोच उनकी है साइलों जैसी
पर बने फिरते हैं वो शाह बहुत
हश्र के रोज़ देख लेना तुम्हें
याद आयेगा हर गुनाह बहुत
मौलिक,अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on June 2, 2015 at 11:30am — 7 Comments
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