बिना बात की बात बनाते,
लोग यहाँ दिख जाते हैं
जैसे उल्लू सीधा होता,
वैसे ही बिक जाते हैं।
धर्म नहीं जानें क्या होता,
क्या जानें परिभाषा को
रिश्तों को अब मान नहीं है,
स्थान नहीं कुछ आशा को।
दशरथ घर से बाहर हैं अब,
पूत वहाँ का राजा है,
देकर वचन भूल जाना बस,
यही समय से साधा है
सरयू को अपमानित करते,
गंगा दूषित होती है
देख नज़ारा प्रतिदिन का यह,
भारत भू अब रोती है।
राम नहीं है घट में लेकिन,
झंडों पर…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on April 21, 2021 at 2:46pm — 2 Comments
2122 2122 212
मिर्च कोई आग पर बोता है क्या,
लोन-पानी ज़ख्म को धोता है क्या।
हो रहा जो अब भले होता है क्या,
कोई अपने आप को खोता है क्या।
बेबसी को तू हटा औज़ार बन,
इसका दामन थाम कर रोता है क्या।
इश्क़ करता, सब्ज़ धरती देख ले,
बीज इसका तू कभी बोता है क्या।
'बाल' चुप्पी साध लेना जुर्म पर,
जुर्म से खुद कम कभी होता है क्या।
लोन-नमक
मौलिक अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on April 6, 2021 at 8:06pm — No Comments
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