परेशां है समंदर तिश्नगी से
मिलेगा क्या मगर इसको नदी से
अमीरे शहर उसका ख़ाब देखे
कमाया है जो हमने मुफलिसी से
…
ContinueAdded by वीनस केसरी on April 25, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से
किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से
महब्बत यूँ मुझे है बतकही से
निभाए जा रहा हूँ खामुशी से
उन्हें कुछ काम शायद आ पड़ा है
तभी मिलते हैं मुझसे खुशदिली से
उजाला बांटने वालों के सदके
हमारी निभ रही है तीरगी से
ये कैसी बेखुदी है जिसमे मुझको
मिलाया जा रहा हैं अब मुझी से
उतारो भी मसीहाई का चोला
हँसा बोला…
Added by वीनस केसरी on April 19, 2013 at 12:14am — 16 Comments
जीतने के सौ तरीके खोजने वाले,
ग्लूकान-डी के सहारे
सूरज से लड़ने वाले हम इंसान
उजले सच को भी बर्दाशत नहीं कर पाते
प्रकृति पर विजय की लालसा लिए,
हम इंसान
पर्वत विजय का जश्न मनाते हैं,
इंगलिश चैनल को तैर कर पार करते हैं,
भू-गर्भ की गहराइयों को 'मीटर' में नापते हैं,
'मीटर' के ऊपर के सारे पैमाने जाने कहाँ चले जाते हैं उस समय !!!
चाहते हैं,
चाँद पर खेती करें,
मंगल पर पानी मिल जाए,
नए तारों की खोज में ,
हमने…
Added by वीनस केसरी on April 12, 2013 at 12:52am — 10 Comments
सच बोलने वालो
तुमको हमेशा सूली पर लटकाया गया
मगर यह गलत कहाँ है
तुम्हारे कारण
आहत होती हैं कितनी भावनाएँ,
शून्य से शिखर तक पहुँचते-पहुँचते
कितने शीशे टूट जाते है
सच बोलने वालो
तुम अलगाव वादी हो
तुमसे बर्दाशत नहीं होती
अखंडता की भावना
तुम्हें मसीहाई सूझती है
तुम्हें अप्राकृतिक सुन्दर अट्टालिकाएँ नहीं दिखतीं
केवल भूखे लोग दीखते हैं
जोर से बोलने पर
सच भी जोरदार माना जा रहा है
तारे भी सूरज है…
ContinueAdded by वीनस केसरी on April 9, 2013 at 5:00pm — 5 Comments
नई कविता जो आज रात पुरानी हो गई
मैं चाहता था
ख़्वाब मखमली हों और उनमें परियां आएँ
सूरज की तरह किस्मत हर दिन चमकदार हो
और जब सलोना चाँद रास्ता भटक जाए,
तो तारों से राह पूछने में उसे शर्म न लगे
ये भी चाहा कि,
मैं पूरी शिद्दत से किसी को पुकारूं
और वो मुड कर मुझे देख कर मुस्कुराए
हम सुलझते सुलझते, थोडा सा फिर उलझ जाएँ
प्यार करते करते लड़ पड़ें
और…
ContinueAdded by वीनस केसरी on April 9, 2013 at 3:11am — 10 Comments
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