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विनय कुमार's Blog – March 2015 Archive (7)

रिहाई--

जेल से रिहा होकर बहुत प्रसन्न था वो , कदम उसके उत्साह का साथ नहीं दे पा रहे थे | बस मन में एक ही इच्छा , कितनी जल्दी पहुंचे अपने घर , अपनों के बीच | भागते हुए अपने मोहल्ले में घुसा , नुक्कड़ की दुकान वाले चाचा ने जैसे अनदेखा कर दिया | उसे थोड़ा अजीब तो लगा लेकिन जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए वो घर की ओर लपका | अचानक उसके कान में आवाज़ आई " किसने सोचा था कि ये भी इसमें शामिल हो सकता है , कितना मासूम चेहरा और ऐसी नापाक हरक़त "|

शक के बिना पर उसकी गिरफ्तारी हुई थी , वज़ह थी उसके कुछ दोस्त जो सामाजिक…

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Added by विनय कुमार on March 24, 2015 at 10:48pm — 14 Comments

आत्म मुग्धता--

नया बना भवन अपने रूप और बनावट पर मुग्ध हो रहा था | तभी अंदर से ईंट ने आवाज़ दी " क्यों इतने आत्ममुग्ध दिख रहे हो , रूपवान तो हम भी हैं "|

" हुँह , तुम्हारा रूप किसे दिखता है , सब तो मुझे ही देखते हैं ", भवन ने इतराते हुए कहा |

छड़ ने , कंक्रीट ने भी यही बात दुहरायी , भवन ने वैसे ही जवाब दिया |

ईंट बोली गर मैं हट जाऊं ? कंक्रीट बोला मैं पकड़ ढीली कर दूँ ? छड ने कहा मैं टेढ़ी हो लटक जाऊं?

भवन थोड़ा सोच में पड़ गया |

" तुम इसलिए खूबसूरत दिख रहे हो क्योंकि तुममे हमने अपनी खूबसूरती…

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Added by विनय कुमार on March 22, 2015 at 12:18am — 26 Comments

वचन--

बहुत लगाव था अपने ज़मीन के इस टुकड़े से रघू को , ये आखिरी जो था | पत्नी की बीमारी में एक एक करके सभी जमीनें गिरवी रखता गया था , इस उम्मीद में की जब वो ठीक हो जाएगी तो दोनों मियां बीबी मिलकर , पसीना बहाकर , छुड़ा लेंगें उन्हें | लेकिन जैसे जैसे ज़मीन के टुकड़े कम होते गए , पत्नी की सांसें भी कम होती गयीं |

आखिरी वक़्त में पत्नी ने वचन लिया था कि अब वो किसी भी सूरत में ज़मीन के इस आखिरी टुकड़े को नहीं बेचेगा | जिंदगी किसी तरह गुजर रही थी लेकिन उसकी ज़मीन पर एक उद्योगपति की नज़र पड़ गयी | वहाँ…

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Added by विनय कुमार on March 12, 2015 at 2:14am — 14 Comments

आतंकवादी (लघुकथा)

दिन भर खाक छान कर वो वापस घर लौट रहा था | चारो तरफ अँधेरा , सुनसान गलियां और गूंजती हुई बूटों की आवाज़ एक अजीब सा माहौल पैदा कर रहीं थीं | आज भी निराशा हाथ लगी थी उसे , कई जगह उसे रिजेक्ट कर दिया गया था | गली में घुसते ही घर के सामने उसे भीड़ दिखाई पड़ी , उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा | लगभग दौड़ते हुए वो घर में घुसा , देखा एक किनारे माँ ज़मीन पर निढाल पड़ी थी |

उसने झकझोरते हुए पूछा " क्या हुआ माँ ", तभी पड़ोसी चाचा की आवाज़ आई " तुम्हारे भाई को पुलिस पकड़कर ले गयी है "|

उलटे पांव भागा…

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Added by विनय कुमार on March 10, 2015 at 2:30am — 16 Comments

होलिका दहन--

अँधेरा डरावना क्यों होता है , अब उसे पता चल गया था | दिन के उजाले में शरीफ दिखने वाला इंसान , अँधेरे में एक घिनौने शख़्श में तब्दील हो जाता था | कई महीने हो गए थे बर्दाश्त करते हुए | पति से बताने की कोशिश भी की थी लेकिन वो तो अपने बड़े भाई के खिलाफ सुनने को भी तैयार नहीं था | कई बार उसने सोचा कि सासू से बता दे लेकिन उसे पता था कि उसकी बात कोई नहीं सुनेगा |

चार साल पहले आई थी वो शादी करके इस घर में | जेठानी बहुत सीधी और समझदार थी पर घर में सिर्फ जेठ का ही हुक्म चलता था | उनके हर निर्णय में…

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Added by विनय कुमार on March 7, 2015 at 2:47am — 12 Comments

सपना--

एक बार फिर शर्माजी ने जेब में हाँथ डाल कर चेक किया , गुलाल की पुड़िया पड़ी हुई थी | चटख लाल रंग का गुलाल ख़रीदा था उन्होंने ऑफिस आते हुए और सोच रखा था कि आज तो लगा के ही रहेंगे | उम्र तो खैर उनकी ५५ पार कर चुकी थी लेकिन पता नहीं क्यों इस बार होली खेलने की इच्छा प्रबल हो गयी थी उनकी |

५ महीना पहले ही ट्रांसफर होकर आये थे इस ऑफिस में | आते ही देखा कई नयी उम्र की लड़कियां थीं यहाँ | कहाँ पिछला ऑफिस , जहाँ सिर्फ पुरुष ही थे और वो भी काफी खडूस किस्म के | लेकिन यहाँ , एक तो उनके विभाग में भी थी |…

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Added by विनय कुमार on March 6, 2015 at 1:26pm — 12 Comments

मौसम--

अचानक घिर आये बादलों को देखकर बल्लू घबरा गया , हवाएँ भी तेज हो गयी थीं | मार्च का महीना , गेहूं की फसल अपनी जवानी पर थी , बालियां निकल आई थीं और कुछ दिनों में इनके पकने की शुरुवात होने वाली थी |

कल खेत से लौटते हुए मन कितना हर्षित था उसका , इस बार तो बैंक का क़र्ज़ चुका ही देगा | पिछले हफ्ते ही नोटिस आया था क़िस्त जमा करने के लिए और उसने उसे बेफिक्री से फेंक दिया था | एक गाय भी लेनी थी उसे इस बार , फिर तो दूध से भी थोड़ी आमदनी बढ़ जाएगी | रात में उसने पत्नी को प्यार से बाँहों में भींच लिया ,…

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Added by विनय कुमार on March 3, 2015 at 1:32pm — 24 Comments

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