212 212 212 212
अब नए फूल डालों पे आने लगे,
और' भ्रमर फिर ख़ुशी से हैं गाने लगे।
पत्थरों पे हैं इल्जाम झूठे सभी,
राही के ही कदम डगमगाने लगे।
रहबरी तीरगी की जो करते रहे,
अब वो सूरज को दीपक दिखाने लगे।
वादा वो ही किया जो था तुमने कहा,
घोषणा क्यों चुनावी बताने लगे।
जिनकी आँखों पे सबने भरोसा किया,
वक्त आने पे सारे वो काने लगे।
भैंस बहरी नहीं सुन समझ लेगी सब,
बीन ये सोच कर फिर…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 21, 2019 at 11:30am — 2 Comments
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नमक मसाले से बनती तरकारी है
सच मानों यह असली दुनियादारी है।
देख सलीका नकली बातें करने का
असली पर ही पड़ जाता कुछ भारी है।
छेदों से ही जिसकी है औक़ात यहाँ
छलनी ही समझाती, क्या खुद्दारी है?
होते हों कितने भी पहलू बातों के
हम समझेंगे जितनी अक्ल हमारी है।
तुम मानों जो तुमको अच्छा है लगता
हम मानेंगे बात जो हमको प्यारी है ।
आज लबादे में लिपटे अल्फ़ाज़ सभी
जिनको सुनना जनता की…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 4, 2019 at 9:00am — 4 Comments
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