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वफ़ा की क्यों उम्मीद मैनें लगाई
लिखी मेरी किस्मत में थी बेवफाई
जमीं पर मिटे वो जो चाहे जमीं को
जमीं में ही माँ जिसको देती दिखाई
दिखाई नहीं वार देता जुबाँ का
सलीके से उसने अदावत निभाई
अटकता नहीं है कोई काम उसका
रही मन में जिसके सभी की भलाई
जो हारे वही जीत जाता हो जिसमें
बता कौन-सी ऐसी होती लड़ाई
मौलिक अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 22, 2018 at 6:52pm — 6 Comments
यह वर्ष नया मंगलमय हो
कोंपल फूटी है तरुवर पर
नव पल्लव का निर्माण हुआ
टेसू की लाली उभरी है
पुलकित हर तन, हर प्राण हुआ
हर मन से बाहर हर भय हो
यह वर्ष नया मंगलमय हो।
गेंहूँ बाली पूरी होकर
अब लहर लहर लहराती है
सरसों पर पीला रंग चढ़ा
भवरों को यह ललचाती है
भँवरों के गीतों-सी लय हो
यह वर्ष नया मंगलमय हो।
जाड़े को विदा किया हमने
गर्मी को दिया बुलावा है
हर चीज नई-सी लगती है
जब साल नया यह आया…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 18, 2018 at 8:50am — 10 Comments
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