1 धन बल का मद
धन के माया जाल में, लगे रहे दिन रेन
दुखियों के दुख देखकर, हुआ न मन बेचैन |
हुआ न मन बेचैन. ह्रदय न किसी का रोया
सुरा सुन्दरी जाम. जमा धन सभी डुबोया
सोचें अब हो दीन, काम आता निर्धन के
थी बापू की सीख, पड़े न मोह में धन के |
(2) दुर्लभ मानव जीवन
मानव दुर्लभ जन्म का, उचित करे उपयोग ,
तन मन धन हमको…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 18, 2015 at 11:30am — 11 Comments
महिला दिवस पर रचित -
घनाक्षरी – 16-15 वर्ण
कंधें से कंधा मिला काम करे जो खेत में,
भोर में उठ, देर रात तक जगती है |
खुद का वजूद भूल मान रखे आदमी का,
सर्वस्व समर्पण को तैयार रहती है |
शादी कर अनजान घर बसाने, कोख में,
नौ माह तक पीड़ा भी सहती रहती है |
फिर भी स्वयं का नही कोई वजूद मानती,
नाम बच्चें को भी वह बाप का ही देती है |
सर्दी गर्मी वर्षा सहती अंग भी झुलसाती,
दूजे…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 12, 2015 at 12:30pm — 18 Comments
जनमत जिसके साथ में, उसकी होती जीत,
अहंकार जिसने किया, जनता करे न प्रीत |
जनता करे न प्रीत, जीत न उसे मिल पाए
जो भी चाहे जीत, काम जनता के आए
कह लक्ष्मण कविराय, मिटावे दिल से नफरत
जनहित की हो सोच, उसे ही मिलता जनमत |
दिल में भाव अभाव है,कोरा है वह चित्र
दुख में कभी न छोड़ता,वह है सच्चा मित्र |
वह है सच्चा मित्र, श्रेय न कभी वह लेता
कपट धूर्तता बैर, पास न फटकने देता
लक्ष्मण देती साथ,ह्रदय से पत्नी इसमें
रहे…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 1, 2015 at 7:30pm — 19 Comments
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