आशिकों की आँख का मोती ग़ज़ल
देखिए , हंसती कभी रोती ग़ज़ल/१
है नफ़ासत औ मुहब्बत से पली
तरबियत के बीज भी बोती ग़ज़ल/२
इन लतीफ़ों –आफ़रीं के दरम्यां
आलमी मेयार को खोती ग़ज़ल/३
मुफ़लिसी , ये भूख औ तश्नालबी
देख ये मंजर, कहाँ सोती ग़ज़ल/४
‘सारथी’ जाया न नींदें कीजिये
रतजगा करके कहाँ होती ग़ज़ल/५
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सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
अरकान: २१२२ २१२२ २१२
Added by Saarthi Baidyanath on March 3, 2014 at 11:00am — 16 Comments
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