इन्तिज़ार इन्तिज़ार है तो है
ऐतबार ऐतबार है तो है /१
मैं हूँ नादाँ अगर तो, हूँ तो हूँ
वो अगर होशियार है तो है /२
छोड़कर मुझको सिर्फ़ इक वो चाँद
हिज़्र का राज़दार है तो है /३
कल वो हँसता था मेरी हालत पर
वो भी अब बेक़रार है तो है /४
दीद का लुत्फ़ हो गया हासिल
अब नज़र कर्ज़दार है तो है /५
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सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
अरकान: २१२२ १२१२ २२
Comment
आदरणीय laxman dhami जी, आदरणीय गिरिराज भंडारी जी और आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , आप महानुभावों का भूयस आभार , हृदयतल से आभार ! प्रोत्साहन हेतु सादर प्रणाम स्वीकार करें ! आपका ही - सारथी :)
आ० भाई सारथि जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए कोटि कोटि बधाई l
प्रिय अनुज बैद्यनाथ , कठिन रदीफ ले कर एक अच्छी गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आदरणीय सारथी जी बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद और मुबारकबाद कुबूल फरमाएं
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