ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।
जब चाहो तब प्यार से, खोल सके तारीख।१।
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मन की गाँठे मत कसो, देकर बेढब जोर
इससे केवल टूटती, अपनेपन की डोर।२।
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दुर्जन केवल बाँधते, लिखके सबका नाम
लेकिन गाँठें खोलना, रहा संत का काम।३।
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छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठ
सज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।
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रिश्तो को कुछ धूप दो, मन की गाँठे खोल
उनको मत मजबूत कर, कड़वी बातें बोल।५।
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बातें कहकर खोल दे, बाँध न रहकर मौन
मन की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2025 at 11:31pm — 2 Comments
अगर झूठ को बोलिए, ठोक पीट सौ बार
सच से बढ़कर मानता, उसको भी संसार।१।
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रहा झूठ से कौन है, वंचित कहो अबोध
भले न बोला हो गया, होकर कभी सबोध।२।
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होता मुख पर झूठ के, नहीं तनिक भी नूर
जीवन पाता अल्प ही, पर जीता भरपूर।३।
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जीवन में बोला नहीं, कभी एक भी झूठ
हरा पेड़ तो छोड़िए, मिला न कोई ठूँठ।४।
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होता सच में जो नहीं, वही झूठ का काम
भले न बोला पर लिखा, धर्मराज के नाम।५।
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भोला देता ताव है, करके ऊँची मूँछ
धूर्त…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2025 at 7:45am — 4 Comments
दोहा दसक -वाणी
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वाणी का विष लोक में, करे बहुत उत्पात
वाणी पर संयम रखो, सच कहते थे तात।१।
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वाणी में संयम नहीं, अब तो संत कुसंत
जग में कैसे हो भला, फिर विवाद का अंत।२।
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वाणी का रहता हरा, भरता तन का घाव
वाणी ही पुल मेल का, वाणी नदी दुराव।३।
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वाणी जो कटुता भरी, विष के तीर समान
वो तो करती नित्य ही, रिश्तों पर संधान।४।
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सुन्दर वाणी रख सदा, भले न सुन्दर देह
देह न मन में नित बसे, वाणी करती…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 10:25pm — 1 Comment
यूँ तो जीवन हर समय, मृगतृष्णा के पास
सच हो जाते स्वप्न पर, करके सत्य प्रयास।१।
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देख दिवस में सप्न जो, करता खूब प्रयत्न
वह उनको साकार कर, पा लेता है रत्न।२।
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जिसने जीवन में किया, सपने को कर्तव्य
टूटा करता वह नहीं, बन जाता है भव्य।३।
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स्वप्न बने उद्देश्य जब, करना पड़ता कर्म
जीवन में सबसे प्रथम, समझ इसे ही धर्म।४।
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निज जीवन के स्वप्न जो, पर हित में दे त्याग
मान उसे सबसे अधिक, सपनों से अनुराग।५।
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सपने …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 8:35am — 1 Comment
१२२/१२२/१२२/१२२
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कभी तो स्वयं में उतर ढूँढ लेना
जहाँ ईश रहते वो घर ढूँढ लेना।१।
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हमेशा दवा ही नहीं काम आती
कहीं तो दुआ का असर ढूँढ लेना।२।
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कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में
कि बच्चो बड़ों की उमर ढूँढ लेना।३।
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तलाशे बहुत वट सदा काटने को
कभी छाँव को भी शज़र ढूँढ लेना।४।
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हमेशा लड़ा ले सिकंदर की चाहत
कभी बनके पोरस समर ढूँढ लेना।५।
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मिलेगा नहीं कुछ ये नीदें चुराकर
हमें फर्क किससे क़सर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2025 at 12:02pm — No Comments
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