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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – February 2025 Archive (5)

दोहा दसक- गाँठ





ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।

जब  चाहो  तब  प्यार से, खोल सके तारीख।१।

*

मन की गाँठे मत कसो, देकर बेढब जोर

इससे  केवल  टूटती, अपनेपन  की डोर।२।

*

दुर्जन केवल बाँधते, लिखके सबका नाम

लेकिन गाँठें खोलना, रहा संत का काम।३।

*

छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठ

सज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।

*

रिश्तो को कुछ धूप दो, मन की गाँठे खोल

उनको मत मजबूत कर, कड़वी बातें बोल।५।

*

बातें कहकर खोल दे, बाँध न रहकर मौन

मन की…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2025 at 11:31pm — 2 Comments

दोहा दसक- झूठ



अगर झूठ को बोलिए, ठोक पीट सौ बार

सच से बढ़कर मानता, उसको भी संसार।१।

*

रहा झूठ से  कौन  है, वंचित कहो अबोध

भले न बोला हो गया, होकर कभी सबोध।२।

*

होता मुख पर झूठ के, नहीं तनिक भी नूर

जीवन पाता  अल्प  ही, पर  जीता भरपूर।३।

*

जीवन में बोला नहीं, कभी एक भी झूठ

हरा पेड़ तो  छोड़िए, मिला न कोई ठूँठ।४।

*

होता सच में जो नहीं, वही झूठ का काम

भले न बोला पर लिखा, धर्मराज के नाम।५।

*

भोला  देता  ताव  है,  करके  ऊँची  मूँछ

धूर्त…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2025 at 7:45am — 4 Comments

दोहा दसक -वाणी

दोहा दसक -वाणी

**************

वाणी का विष लोक में, करे बहुत उत्पात

वाणी पर संयम रखो, सच कहते थे तात।१।

*

वाणी  में  संयम  नहीं, अब  तो संत कुसंत

जग में कैसे हो भला, फिर विवाद का अंत।२।

*

वाणी का रहता हरा, भरता तन का घाव

वाणी ही पुल मेल का, वाणी नदी दुराव।३।

*

वाणी जो कटुता भरी, विष के तीर समान

वो तो करती नित्य  ही, रिश्तों पर संधान।४।

*

सुन्दर वाणी रख सदा, भले न सुन्दर देह

देह न मन में नित बसे, वाणी करती…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 10:25pm — 1 Comment

दोहा दसक - सपने

यूँ तो जीवन हर समय, मृगतृष्णा के पास

सच हो जाते स्वप्न पर, करके सत्य प्रयास।१।

*

देख दिवस में सप्न जो, करता खूब प्रयत्न

वह उनको  साकार  कर, पा  लेता है रत्न।२।

*

जिसने जीवन में किया, सपने को कर्तव्य

टूटा करता  वह  नहीं, बन  जाता है भव्य।३।

*

स्वप्न बने उद्देश्य  जब, करना  पड़ता कर्म

जीवन में सबसे प्रथम, समझ इसे ही धर्म।४।

*

निज जीवन के स्वप्न जो, पर हित में दे त्याग

मान उसे  सबसे  अधिक, सपनों से अनुराग।५।

*

सपने …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 8:35am — 1 Comment

कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल

१२२/१२२/१२२/१२२

****

कभी तो स्वयं में उतर ढूँढ लेना

जहाँ ईश रहते वो घर ढूँढ लेना।१।

*

हमेशा दवा ही नहीं काम आती

कहीं तो दुआ का असर ढूँढ लेना।२।

*

कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में

कि बच्चो बड़ों की उमर ढूँढ लेना।३।

*

तलाशे बहुत वट सदा काटने को

कभी छाँव को भी शज़र ढूँढ लेना।४।

*

हमेशा लड़ा ले सिकंदर की चाहत

कभी बनके पोरस समर ढूँढ लेना।५।

*

मिलेगा नहीं कुछ ये नीदें चुराकर

हमें फर्क किससे क़सर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2025 at 12:02pm — No Comments

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