(16 14 मात्रा भार)
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(1)
हाथ जोड़ कर फिरते दिखते जब-जब सीजन आता है
दर-दर पर मिन्नत होती है हर इक जन तब भाता है
काम साध कुर्सी को पाकर याद नहीं फिर कुछ आता
झुककर जो वादे कर जाते उनको कौन निभाता है?
(2)
मौसम जैसा हाल सजन का समझ नहीं कुछ आता है
इस पल होता है तौला उस पल माशा बन जाता है
प्रीत हमारी लगती झूठी जाने क्या दिल में रखते?
वादे उनके ऐसे लगते ज्यों नेता कर जाता है।
(3)
आँखों को झूठा मत समझो आँखें सच ही कहती हैं…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 22, 2017 at 2:30pm — 4 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 5, 2017 at 9:00pm — 9 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 1, 2017 at 11:00am — 14 Comments
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