For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"'s Blog – January 2017 Archive (6)

कब्र जान-ए- आदमी है लिखो पंकज यह घर है- ग़ज़ल

2122 2122 2122 2122

ये भला कैसा प्रहर है, दूर मुझ से हमसफर है

नाम उसका ही जपे मन, खुद से लेकिन बेखबर है



मन्द सी मुस्कान ले कर, नूर बिखराया है किसने

आईने में खुद नहीं मैं, इश्क़ का कैसा असर है



इक दफ़ा ही तो मिलीं थीं, पर खुमारी अब भी बाकी

उम्र भर मदहोश रहना, यूँ नशीली वो नज़र है



सर्द अहसासों का मौसम, तो है पतझड़ बाग़ में

उफ़्फ़, ख्वाबों के झरे पत्ते घिरा बेबस शजर है



कंकरीटों की दीवारों बीच रहता ख़ुश्क कोई

कब्र जाने आदमी है, मत… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 29, 2017 at 11:00am — 16 Comments

गणतंत्र हमारा-26जनवरी विशेष ग़ज़ल

22 22 22 22 22 22
वैविध्य से परिपूर्ण है गणतंत्र हमारा।
हम सब से ही सम्पूर्ण है गणतन्त्र हमारा।।

समता के अनुच्छेद के पालन बिना सुनो।
हर हाल में अपूर्ण है गणतन्त्र हमारा।।

अभिव्यक्ति का अधिकार सभी को है मित्रवर।
पर पहले महत्वपूर्ण है गणतन्त्र हमारा।।

धर्मों का यहाँ संगम अद्भुत है ये धरा।
समरसता से अभिपूर्ण है गणतन्त्र हमारा।।

संसार के क्षितिज पे दमकता नक्षत्र है।
आदित्य सा प्रतूर्ण है गणतन्त्र हमारा।।

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 24, 2017 at 9:52am — 15 Comments

जो तू आये तो मैं निखरूँ-पंकज द्वारा गज़ल

तेरी राहों में ठहरा हूँ
जो तू आये तो मैं निखरूँ

यहाँ चाहत हज़ारों हैं
इज़ाज़त हो तो सब कह दूँ

ज़माने को बता भी दो
ग़ज़ल तुम पर ही सब लिक्खूँ

अभी माटी का पुतला है
छुएँ जो राम तो बोलूँ

सुदामा है गरीबी में
किशन आये तो धन पाऊँ

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 20, 2017 at 8:37pm — 8 Comments

प्रश्न सूरज पे ये होना था, वो छिपा क्यूँ है?- ग़ज़ल--पंकज मिश्र

2122 2122 22 1222



सब किताबों से अलग तेरा फ़लसफ़ा क्यूँ है?

उस ने पूछा तू बता दुनिया से जुदा क्यूँ है?



सर्द रातों की वजह पछुवा ये पवन है क्या?

प्रश्न सूरज पे ये होना था, वो छिपा क्यूँ है?



पेट खाली औ न हो घर तो फिर यही तय था

पूछ मत यारा धुआँ घाटों पे उठा क्यूँ है?



छोड़ चिंता ये गरीबों की चल रज़ाई में

नींद में अपनी ख़लल खुद ही डालता क्यूँ है?



कर्म का फल तो सभी को ही है यहाँ मिलना

प्रीत तू भय से जगाने की सोचता क्यूँ… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 14, 2017 at 8:26pm — 9 Comments

कलम स्याह आँसू न यूँ ही बहाये-पंकज की ग़ज़ल

122 122 122 122

प्रिये हमनें तुमको ये हक़ दे दिया है
चले आना बेवक्त भी घर खुला है

तुम्हें देख चेहरे पे रौनक हुई तो
न समझो यही हाल पहले रहा है

धुँआ रौशनी ये अचानक नहीं सब
किसी घाट पर कोई आशिक़ जला है

कलम स्याह आँसू न यूँ ही बहाये
वियोगी कोई आज फिर लिख रहा है

उन्होंने तो इसको दिया ग़म का सागर
अलग बात उसमें भी पंकज खिला है


मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 7, 2017 at 12:30am — 6 Comments

शराफत रास दुनिया को कहां आती है कहिए भी-ग़ज़ल

1222 1222 1222 1222



वो दिन बेहतर थे जो गुजरे मेरे आवारगी में ही

शराफ़त रास दुनिया को कहाँ आती है कहिये भी



जला डाले सभी सपने ये दुनिया तो सितमगर है

कहाँ पहले कभी बिखरी थी मन पे रात की स्याही



न अब मासूमियत बाक़ी न अब बेफ़िक्री का मौसम

सहर आते थमा देती पिटारी जिम्मेदारी की



न जाने ढूँढता है क्या किधर को जा रहा है मन

भला क्यूँ रास आती ही नहीं दुनिया की ये क्यारी



गज़ब इंसानियत बदली फ़िदा है बस दिखावे पर

नज़र हर आंकती कीमत हुआ… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 3, 2017 at 11:30pm — 27 Comments

Monthly Archives

2022

2021

2019

2018

2017

2016

2015

1999

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"योग ****    छोटी छोटी बच्चियाँ, हैं भविष्य की आस  शिक्षा लेतीं आधुनिक, करतीं…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय  निलेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई इस ग़ज़ल के लिए।  "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि शुक्ल भैया,आपका अलग सा लहजा बहुत खूब है, सादर बधाई आपको। अच्छी ग़ज़ल हुई है।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
Tuesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
Monday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service