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Kanta roy's Blog – January 2015 Archive (3)

गुरू दक्षिणा (लघुकथा) :कान्ता राॅय

" वाह !! बहुत खूब रितेश गुप्ता , तुमने संस्था का नाम ऊँचा किया है । हम सबको तुम पर गर्व है । " पीठ थपथपाकर मोहित सर ने जब शाबाशी दी तो रितेश दर्प से भर उठा ।
" सर , सब आपके मार्ग दर्शन का ही नतीजा है । "
" फिर तो मुझे गुरू दक्षिणा भी मिलना चाहिए तुम से । " मोहित सर की बाँछे खिल उठी ।
" क्या बात करते है सर ...? लाखों रूपयों की फीस के बाद अब यह गुरू दक्षिणा भी ___ ...? "

कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

Added by kanta roy on January 24, 2015 at 8:00am — 14 Comments

गुरू लीला (लघुकथा) : कान्ता राॅय

धर्म के प्रति प्रगाढ़ आस्था के कारण ही सुधा आज घर द्वार सब त्याग गुरू आश्रम चली आई ।



"सुना है गुरूदेव आज रात खास आयोजन करने वाले है । जाने आज किसका भाग्योदय होने वाला है? " आश्रम में सुगबुगाहटें जारी थी ।



लगभग १२ बजे सभा गृह में सब गुरू सेविकायें उपस्थित थी कि सहसा गुरूदेव का आगमन हुआ । पीताम्बर धारण किये हुए, सिर पर मोर मुकुट सजाये हुए आज गुरूदेव कृष्ण रूप में रास के लिए राधा का चयन करने वाले थे ।



कृष्ण रूपी गुरूदेव जब सुधा के सामने ठिठके तो उसका हृदय रो उठा…

Continue

Added by kanta roy on January 23, 2015 at 8:30am — 26 Comments

महिला पार्षद (लघुकथा) :कान्ता राॅय

हर जगह चुनावी माहौल, पार्षद के चुनाव में जाने कहाँ-कहाँ से कुकुरमुत्ते की तरह  नई नई पार्टियां दिखाई देने लगी । जिन्होंने कभी घर से बाहर कदम नहीं निकाले वे स्त्रियां भी गले में माला डाले गली गली घूम रही है । जाने कौन कौन से कोटे के तहत चुनाव लड रही है । बात करने गई तो मालूम हुआ बात करने में नेताईन को पसीना भी आता है ।

"जीत जायेंगी तो कैसे संभालेंगी इतनी जिम्मेदारी ।"

पूछने पर हँसते हुए कहती है ,  

"अरे, मै कहाँ यह सब तो हमारे "वो" ही संभालेंगे । बस मुझे आप लोग जीतवा देना ।…

Continue

Added by kanta roy on January 22, 2015 at 8:00am — 21 Comments

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