ग़ज़ल
1222 1222 1222 1222
कोई कातिल सुना जो शहर में है बेजुबाँ आया
किसी भी भीड़ में छुप कर मिटाने गुलिस्तां आया
धरा रह जायेगा इन्सान का हथियार हर कोई
हरा सकता नहीं कोई वह होकर खुशगुमां आया
घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसाँ
करें कैसे मदद अपनों की कैसा इम्तिहाँ आया
अवाम अपने को आफत से बचाने में हुकूमत को
अडंगा दीं लगाए कैसा यह दौर-ए-जहाँ आया
अगर महफूज रखना है बला से अह्ल-ए-दुनिया को
कहें हम दूर रहने को जो अपने भी यहाँ आया
किसी की कर रहा तीमारदारी वह कवच पहने
खुदा का अक्स है उसमें जो बन के पासबाँ आया
मईशत ठप पड़ी है लड़ते लड़ते उससे दुनिया की
मची है खलबली हर सू कि ‘कंवर’ वह निहाँ आया
"मौलिक व अप्रकाशित"
डॉ. कंवर करतार
Comment
जनाब समर कवीर साहब ,आदाब कवूल करें I आपके सुझाव बेमिसाल हैं , अश'आर को निखारने के लिए बहुत बहुत आभारI आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है I शुक्रिया I
जनाब समर कवीर साहब ,आदाब कवूल करें I आपके सुझाव बेमिसाल हैं , अश'आर को निखारने के लिए बहुत बहुत आभारI आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है I शुक्रिया I
'धरा रह जायेगा इन्सान का हथियार हर कोई '
ये मिसरा ठीक है ।
'घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसान ' इस मिसरे को यूँ कर लें:-
'घरों में क़ैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसाँ'
'अगर महफूज रखना है इस अपनी अहल-ए-दुनिया को
रहें हम दूर सबसे ही जो अपने यहाँ वहाँ आया'
इस शैर का ऊला यूँ कर लें:-
'अगर महफ़ूज़ रखना है बला से अह्ल-ए-दुनिया को'
और सानी की बह्र ठीक नहीं,बदलने का प्रयास करें ।
समर कवीर जी ,आदाबI
'घरों में कैद होकर रह गया हर कोई इंसान ' भी गलत होगा इसकी जगह ...
'घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसान ' कैसा रहेगा ?
समर कबीर जी आदाब ,मैं आपकी टिपणी के लिए उत्सुक था I आपके सुझाव सदैव रचना को उत्कृष्ट करते हैं I
'धरा रह जायेगा इन्सान का कोई भी हो हथियार' की जगह
'धरा रह जायेगा इन्सान का हथियार हर कोई '
और
'घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब ही लोग' की जगह
'घरों में कैद होकर रह गया हर कोई इंसान ' कर दें तो कैसा रहेगा I
'अगर महफूज रखना है इस अपनी अहल-ए-दुनिया को
रहें हम दूर सबसे ही जो अपने यहाँ वहाँ आया'
इस शे'र के ऊला में इस अपनी में अलिफ़ वस्ल की छूट ले रहा हूँI हाँ, सानी में क्या 'यहाँ' को 'याँ' -2 लेना उचित रहेगा ?
'मईशत ठप पड़ी है लड़ते लड़ते उससे दुनिया की'
इस मिसरे को ----
'पड़ी है ठप मईशत लड़ते लड़ते उससे दुनिया की' लेने का आपका सुझाव अति उत्तम है और शिरोधार्य है I मेरी गुजारिश है कि मेरी उपरोक्त जिज्ञासा पर अपनी टिप्पणी जरूर दें I सादर I
I
जनाब कंवर करतार जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन अभी शिल्प पर मिहनत करने की ज़रूरत है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'धरा रह जायेगा इन्सान का कोई भी हो हथियार'
'घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब ही लोग'
आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ कि 1222 1222 1222 1222 इस बह्र में मिसरे के अंत में एक साकिन लेने की इजाज़त नहीं है,देखियेगा ।
'अगर महफूज रखना है इस अपनी अहल-ए-दुनिया को
रहें हम दूर सबसे ही जो अपने यहाँ वहाँ आया'
इस शैर के ऊला में शब्दों की तरतीब ठीक नहीं,और सानी मिसरा बह्र में नहीं है,देखियेगा ।
'मईशत ठप पड़ी है लड़ते लड़ते उससे दुनिया की'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,मिसरा यूँ कर लें तो ये ऐब निकल जायेगा:-
'पड़ी है ठप मईशत लड़ते लड़ते उससे दुनिया की'
आवश्यक सूचना:-
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