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आदरणीय साहित्य-प्रेमियो,

सादर अभिवादन.

 

ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक- 36 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.

 

वसंत के आगमन के बाद से प्रकृति अपने पूर्ण यौवन पर है. इसकी पराकाष्ठा होली त्यौहार के रूप में हमारे सामने आती है.

होली वस्तुतः उत्सवधर्मिता के अतिरेक और सामाजिक सौहार्द्र की शिष्टता का सर्वश्रेष्ठ मानवीय अभिव्यक्ति है. छांदसिक हुआ मनोभाव न केवल पलाश-सरसों के लाल-पीले रंगों के साथ उत्फुल्ल हुई हरीतिमा के सापेक्ष गीतमय हो उठता है, बल्कि प्रकृति-सुषमा के विविध आयाम सुखानुभूति और आह्लाद के रंग लिए सांसारिक से हो उठते हैं. ललित-भावों से पगा मानवीय मन सामाजिक वर्जनाओं की शक्तता को चुनौती देता हुआ एकबारग़ी उन्मुक्त हो उठता है. किन्तु, इस चुनौती में सात्विक परंपराओं के प्रति अनुमन्यताएँ होती हैं.

 

आइये, हमसब भी इस बार ;काव्यमय होली’ मनावें.. .

 

 

 

इस आयोजन में प्रयुक्त चित्र अंतरजाल (Internet) के सौजन्य से प्राप्त हुआ है.


आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ

15 मार्च 2014 दिन शनिवार

से

16 मार्च 2014 दिन रविवार

 

 

 

 

पिछले आयोजनों की तरह इस बार भी चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के मूल स्वरूप को स्थायी रखते हुए किया गया व्यावहारिक परिवर्तन लागू रहेगा.

यानि, छंदोत्सव का आयोजन अबसे निर्धारित छंदों पर ही आधारित होगा.

 

इस बार के आयोजन के लिए दो छंदों का चयन किया गया है, छन्नपकैया (सार छंद) और कह-मुकरियाँ छंद.

 

एक बार में अधिक-से-अधिक सात छन्नपकैया तथा/या पाँच कह-मुकरियाँ छंद प्रस्तुत किये जा सकते है.

 

ऐसा न होने की दशा में प्रतिभागियों की प्रविष्टियाँ ओबीओ प्रबंधन द्वारा हटा दी जायेंगीं.

 

उन सदस्यों के लिए जो छन्न-पकैया और कह-मुकरियाँ छंदों के आधारभूत नियमों से परिचित नहीं हैं, उनके लिये इनके संक्षिप्त विधान प्रस्तुत किये जा रहे हैं.

 

छन्न-पकैया के आधारभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें.

 

कह-मुकरियाँ के आधारभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें.

 

 

लेकिन उससे पूर्व मात्रिक छंदों में गेयता की सुनिश्चितता हेतु निम्न विन्दुओं पर एक बार फिर से ध्यान से देखें.

 

शब्दों के उच्चारण और उसकी मात्राओं के समवेत स्वरूप के अनुसार शब्दों के कल बनते हैं. जैसे, शब्दों के द्विकल, शब्दों के त्रिकल, शब्दों के चौकल, षटकल आदि. इसी के अनुसार पदों का प्रवाह निर्धारित होता है.

द्विकल, चौकल आदि शब्दों को सम मात्रिक शब्द कहते हैं.

जैसे, हम, वह, निज आदि.

जबकि त्रिकल या षटकल आदि शब्दों को विषममात्रिक शब्द कहते हैं.

जैसे, हुआ, बड़ा, कहाँ आदि त्रिकल हैं.

 

यों, कोई शब्द षटकल हो तो वह उच्चारण के लिहाज से सममात्रिक ही हुआ करता है. यानि वह दो विषम शब्दों का पूर्ण स्वरूप होने से सम शब्द ही माना जाता है.

दीवाना, आवारा, परंपरा आदि षटकल शब्द हैं.

व्यवहार जैसा शब्द द्विकल और त्रिकल के समूह है. व्यव द्विकल तथा हार त्रिकल.

 

इस तथ्य को समझ लेने से चरणों के कुल शब्दों की मात्रा को गिनने के अलावे शब्द-विन्यास को निर्धारित करने में भी सहुलियत हो जाती है. साथ ही साथ, गेयता को सुचारू रूप से निर्धारित करने के लिए मात्रिकता को निभाना भी सहज हो जाता है.

यानि यह अवश्य मान लें कि कोई मात्रिक पद (छंद की एक पंक्ति) मूलतः सम शब्दों का ही समुच्चय बनाता है.

अर्थात कोई विषम शब्द हो तो उसके ठीक बाद विषम शब्द रख कर षटकल बनाने से सम मात्रिकता का निर्वहन हो जाता है. यानि विषम शब्द के बाद विषम शब्द ही आवे और सम के बाद एकदम से विषम शब्द न आवे. आवे भी तो उस विषम के बाद एक और विषम शब्द रख कर सभी शब्दों के समुच्चय को सम मात्रिक बना लेते हैं.

जैसे, बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर जैसे पद में बड़ा त्रिकल के बाद हुआ भी त्रिकल है. दोनो मिल कर षटकल का निर्माण करते हैं जो कि सम संख्या भी है. इस तरह गेयता या पढ़ने के (वाचन) प्रवाह में कोई दिक्कत नहीं आती.

 

आयोजन सम्बन्धी नोट :

(1)फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 15 मार्च दिन शनिवार से 16 मार्च दिन रविवार यानि दो दिनों के लिए रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

 

विशेष :

यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

अति आवश्यक सूचना :

आयोजन की अवधि के दौरान सदस्यगण अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक के हिसाब से पोस्ट कर सकेंगे. ध्यान रहे प्रति दिन एक प्रविष्टि, कि एक ही दिन में दो प्रविष्टियाँ.

 

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.

नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.

 

सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

 

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.

 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

 

रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

 

मंच संचालक

सौरभ पाण्डेय

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

 

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Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

छन्न पकैया छन्न पकैया ,  आज हुआ आभारी

छोटी बातों की तारीफें , कर दी भारी भारी

छन्न पकैया छन्न पकैया , चाहे रंग लगाओ
हाथ पैर फैलाओ, आओ , थोड़ा नाचो गाओ  


छ्न्न पकैया छ्न्न पकैया , नीला लाल गुलाबी
जो भी आये रंगे मुझको , दूरी रखें शराबी

वाह वाह गिरिराज जी बधाई स्वीकारें

आदरणीय सुंदर रचना के लिए बधाई ।

होली की अग्रिम शुभकामनायें ...

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब सादर, सुन्दर छंद रचे हैं सादर बधाई.

बहुत सुन्दर छन्न आदरणीय 

छन्न पकैया छन्न पकैया , रंग-भांग की गोली
दोनों मिल जाये तो कह दूँ, अपनी होली होली 

छन्न पकैया छ्न्न पकैया , किससे  खेलूँ होली 
मित्र गये परदेश, इधर मैं, खोज रहा हमजोली

आदरणीय गिरिराज सर बहुत बहुत बधाई इस रचना पर

छन्न पकैया छन्न पकैया , जय जय जय भंडारी
मित्र गए परदेस ढूँढिये,          होरी के दिन सारी..................................[सारी= साली ]

छन्न पकैया छन्न पकैया, गाओ फाग ददरिया
खूब बजाओ ढोल नगाड़ा, गूंजे आँगन - कुरिया .....

छन्न पकैया छन्न पकैया ,खाओ खुरमी चीला
किन्तु ठेठरी को मत भूलो,   मौसम है रंगीला ........

बढ़िया रचना !!!

वाह!वाह! बहुत खूब! आपको हार्दिक बधाई!

प्रथम प्रस्तुति -

छन्न पकैया छंद

छन्न पकैया छन्न पकैया,  मस्ती में हमजोली ।
हाथ धरे गुलाल चिल्लायें,  होली है रे होली ।।1।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, मुख पर गुलाल मल के ।
रंग रंग के गुलाल साथी,  थाल रखें हैं भर के ।।2।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  खूब गुलाल उड़ायें ।
दे दे बुलऊवा राधे को, फाग गीत ये गायें ।।3।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, शक्ल कौन पहचानें ।
मुख पर रंग गुलाल पुते हैं, टोली में मस्तानें ।।4।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  देखो अपने मन से ।
कोई उठाये हाथ अपना, कोई नाचे तन से ।।5।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  मिलकर खेले होरी।
एक रहे चेहरा छुपाये,  एक करे बरजोरी ।।6।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  रंग सा दिल मिला के ।
रंग संग मिल उमंग भरते,  होली होली कह के ।।7।।

(संशोधित)

द्वितीय प्रस्तुति -
कह मुकरियां

मेरे तन वह घुल मिल जाये ।
अपने रंग मुझे रंगाये ।।
मुखड़ा देख करूं मै मलाल ।
क्या सखि साजन ? ना सखि गुलाल ।।1।।

नाच रहे धरे रंग गुलाल ।
मेरे मुख का करते  हलाल ।।
वर्श एक बार आते बहोरी ।
क्या सखि साजन ? ना सखि होरी ।।2।।

मुख पर इंद्रधनुष की शोभा ।
जो देखे उनके मन लोभा ।।
बच्चे करते है खूब तंग
क्या सखि साजन ? ना न सखि रंग ।।3।।

श्‍याम रंग पगड़ी सोहे है ।
लाल रंग कलगी मोहे हैं ।
देख मेरे मन है उल्लास ।
क्या सखि साजन ? ना सखि पलाश ।।4।।
---------------------------
मौलिक अप्रकाशित


छन्न पकैया छन्न पकैया, क्या हम बात करेंगे
बिना पढ़े ही नियमावलियाँ, जब यों पोस्ट धरेंगे

छन्न पकैया छन्न पकैया, सार छंद आधारित
मगर ’छन्न’ की विधा अलग है, काव्यशास्त्र से पारित  

आदरणीय रमेशजी, इस आयोजन की नियमावलि के अनुसार प्रविष्टियाँ सार छंद की नहीं बल्कि छन्न पकैया और कह-मुकरी की होनी चाहिये. आपकी पहली प्रस्तुति नियमानुसार हटा दी जायेगी.


कह-मुकरियों में गेयता हेतु शब्दसंयोजन पर बहुत-बहुत अभ्यास करने की आवश्यकता है.
बहरहाल, आपकी कोशिश और इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद.

होली की अनेकानेक शुभकामनाएँ, भाईजी.
सादर
 

आदरणीय मंच संचालक /एडमिन मोदय,

भूलवश मै सारछंछ एवं छन्न पकैया छंद में अंतर नही पढ पाया था जिसके कारण सार छंद पोष्ट कर दिया थ जिसके हार्दिक क्षमा याचना करता हू, साथ ही निवेदन करता हूं कि आज के इस आयोजन में मेरे निम्न छंद पकैया को स्थान देने की असीम क़पा करे -

छन्न पकैया छंद

छन्न पकैया छन्न पकैया,  मस्ती में हमजोली ।
हाथ धरे गुलाल चिल्लायें,  होली है रे होली ।।1।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, मुख पर गुलाल मल के ।
रंग रंग के गुलाल साथी,  थाल रखें हैं भर के ।।2।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  खूब गुलाल उड़ायें ।
दे दे बुलऊवा राधे को, फाग गीत ये गायें ।।3।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, शक्ल कौन पहचानें ।
मुख पर रंग गुलाल पुते हैं, टोली में मस्तानें ।।4।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  देखो अपने मन से ।
कोई उठाये हाथ अपना, कोई नाचे तन से ।।5।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  मिलकर खेले होरी।
एक रहे चेहरा छुपाये,  एक करे बरजोरी ।।6।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,  रंग सा दिल मिला के ।
रंग संग मिल उमंग भरते,  होली होली कह के ।।7।।

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