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ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 27 की समस्त रचनाएँ

सुधिजनो !

दिनाँक 23 जून 2013 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 27 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी है.

इस बार के छंदोत्सव में कहना न होगा दोहा और कुण्डलिया छंदों पर आधारित प्रविष्टियों की बहुतायत थी.

इसके बावज़ूद आयोजन में  19 रचनाकारों की दोहा छंद और कुण्डलिया छंद के अलावे

वीर छंद,

पज्झटिका छंद,

चौपाई छंद, 

कामरूप छंद,

ललित/सार छंद

मनहरण घनाक्षरी छंद

जैसे सनातनी छंदों में सुन्दर रचनाएँ आयीं, जिनसे छंदोत्सव समृद्ध और सफल हुआ.

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

इस बार रचनाओं को संकलित और क्रमबद्ध करने का दुरुह कार्य ओबीओ प्रबन्धन की सदस्या डॉ.प्राची ने बावज़ूद अपनी समस्त व्यस्तता के सम्पन्न किया है. ओबीओ परिवार आपके दायित्व निर्वहन और कार्य समर्पण के प्रति आभारी है.

सादर

सौरभ पाण्डेय

संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव

********************************
1. श्री लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला जी

(1)शतको की बौछार (दोहे)

शक्ति देख फुटबाल में, हाकी में अभ्यास,
मौके मिले क्रिकेट में, भुना सके वह पास|

शॉट लगा कर गेंद को, करदी सीमा पार
तेंदुलकर से हो रही, शतको की बौछार |

बल्ले से लगकर गई, पंहुँची सीमा पार,
बल्लेबाज लगा रहे, चौको का अम्बार|

बल्लेबाज दौड़ रहा, पहुँच न पाया छोर,
गेंद गिरावे गिल्लियां, आउट का हो शोर|

उडी गेंद से गिल्लियां, खड़ी दण्डिका तोड़,
यह तो ऐसा खेल है, झट आ जावे मोड़|

देख खिलाडी हो रहे, खुले आम नीलाम,
माया मद में मन रमा,खेलो का है नाम|

दिनभर क्रिकेट खेलते, ये इनका व्यापार
इनके अब दिखते नहीं, चहरे पानीदार |

कुछ खिलाडी खेल रहे, कुछ सट्टे में लिप्त,
नेता है हर पाँत में, खेलो के अतिरिक्त |

(2) कुंडलिया छंद
अँगुली ऊपर उठ गयी,गेंदबाज को नाज
गेंदबाज जब लपक ले, लौटे बल्लेबाज |
लौटे बल्लेबाज, नये को आकर जमना
पहुंचे सीमा पार, चौके समझलो लगना
गेंदबाज के हाथ,फेंक सकता वह गुगली
अम्पायर का राज, उठा दे झट से अँगुली|

चोके छक्के लग रहे,खुशियों का इजहार
फुलटाँस गेंद फेंक दी,पहुँचे सीमा पार |
पहुँचे सीमा पार, दर्शक ख़ुशी से उछले
फिल्डर का कप्तान,सुन्दर रणनीति रचले
इसमें उसकी शान, खोवे न कोई मौके
हो ना सीमा पार, लगे न फिर से चोके |
*************************************************

2. श्री अरुण कुमार निगम जी

वीर (आल्हा) छंद

संक्षिप्त विान -  16,15 मात्राओं पर यति, प्रथम चरण का अंत गुरु से, पदांत दीर्घ लघु

अँगरेजों का खेल मूलत: , अँगरेजी जैसा बलवान
भारत को इण्डिया कर गया , देख हुए हम तो हैरान ||

इस क्रिकेट का नशा नशीला , ज्यों कोई करता मयपान
पलभर का सुख समय-शक्ति का,होता जाता है नुकसान ||

द्वापर में कालिन्दी - तट पर, कन्दुक खेले थे भगवान
किया कालिया-मर्दन पल में , और बचाई लाखों जान ||
कहा गया था इसी भूमि पर , बिल्कुल मत चूको चौहान
प्रत्यंचा खिंच ना पाती थी , शब्द भेदते तीर-कमान ||

गई कबड्डी की हू तू तू , गई अखाड़ों की वह शान
मल्ल-खम्ब है लुप्तप्राय-सा , मल्ल-युद्ध भी अंतर्ध्यान ||
ध्यान चंद का जादू थी वह , हाकी नित खोती पहचान
खो-खो खोया गिल्ली-डण्डा , मानों गूलर-फूल समान ||

शामिल होते देर नहीं बस , दल में मिलता है सम्मान
विज्ञापन में चाँदी कटती , लछमी का मिलता वरदान ||
खेल रहे वे लाभ कमायें , रातों-रात बने धनवान
रात-दिवस देखें जो दर्शक , क्या पाते सोचें श्रीमान ||

*************************************************

3. श्री अलबेला खत्री जी

(1)छन्द मनहरण

संक्षिप्त विधान -  8,8,8,7  पर यति. पदांत गुरु से


क़ातिल कठोर क्रूर,
काली कलमुंही गेंद,
आई और रख दिया विकेट उखाड़ के
खेल ये खतरनाक,
ऐसा खेला बादलों ने,
रख दिया धरती का, पिच ही उजाड़ के
उत्तर के प्रश्न पर,
दिल्ली भी निरुत्तर है,
बैठी बरबादी वहां, तम्बू ऐसा गाड़ के
फूट फूट रोये होंगे,
गौरी संग महादेव,
दृश्य जब दिखे होंगे, उनको पहाड़ के

(2) मनहरण घनाक्षरी (कवित्त) 


सृष्टि के स्टेडियम में,
धरती की पिच पर,
श्वास श्वास ओवर है, प्राण का विकेट है
काल गेंदबाज़ और
देह बल्लेबाज़ है जी,
अम्पायर धर्मराज, कर्म रन रेट है
फ़ील्डिंग बीमारियों ने,
रखी है सम्हाल और
विकेट कीपिंग पर यमराज सेट है
एक दिन गिल्लियों का,
उड़ना सुनिश्चित है,
ऐसा लगता है मानो जीवन क्रिकेट है

(3) दोहा / 13, 11 
ओ बी ओ परिवार में, छन्दोत्सव की धूम
विकेट हैं थर्रा रहे, गेन्द रही है घूम

बादल शीतल शांत हैं, भड़क रही है बॉल
रह रह कर यह दे रही, हमले की मिस कॉल

गुस्से में है दीखती, पूरी लालोलाल
तोड़ ही न दे डंडियाँ, गेन्द भई विकराल

दायीं वाली उड़ गयी, बायीं है भयभीत
थर थर काम्पे गिल्लियां रंग पड़ गया पीत

गेन्द अभी आई नहीं, गिल्ली उड़ गयी यार
चमत्कार दिखला रहा, ओ बी ओ परिवार

****************************************************
4. श्री संजय मिश्रा 'हबीब' जी

कुण्डलिया

हाकी गुमसुम देखती, स्तब्ध खड़ी लाचार।
जब से यह घुसपैठिया, आया सरहद पार॥
आया सरहद पार, सभी के सर चढ़ नाचे।
फिक्सर सट्टेबाज, भरे संग सङ्ग कुलांचे॥
कलुषित यह गठबंध रहे मत आगे बाकी।
इन्हें भगाएँ हाथ, उठा हम अपनी हाकी॥

***********************************************

5. श्री सौरभ पाण्डेय जी

छंद - पज्झटिका छंद
विधान -
मान्य - प्रत्येक चरण में 8 मात्राओं के पश्चात एक गुरु, इसी क्रम में पुनः 4 मात्राओं के पश्चात एक गुरु. यानि प्रति पद 16 मात्राएँ.
निषेध - किसी चौकल में जगण यानि 121 या ।ऽ। न पड़े.
सूत्र - 8+ग+4+ग / जगण निषेध
*************************

क्रीड़ा है तप, यज्ञ-तपस्या, होड़ परस्पर कौन समस्या ?
ऐसा हो हर खेल निराला, मिहनत-कसरत-ताकत वाला

लेकिन क्यों दुर्भाव भरा है, अन्य खेल हित चाव मरा है
खेलो किरकट या खिलवाओ, देसी खेलों की सुधि गाओ

गेंद व बल्ला जोड़ रखा है, उसमें मन को मोड़ रखा है
बॉलिंग-फिल्डिंग संग पगी तो, उड़ती गिल्ली गेंद लगी जो

सभी खिलाड़ी मस्त रमे हैं, नाम करे हैं, खूब जमे हैं
उन्नत इसका पार्श्व बखानूँ, वर्तमान पर लानत जानूँ

जोशीला माहौल रहे ये, जुआ नहीं बस खेल लगे ये
बड़े धुरंधर व्यापारी हैं, डोरे डाले जो भारी हैं

तन-मन धन से मोहित भोले, दर्शक उत्साही को लोले
ठगा-छला महसूस करें हैं, सट्टाबाज़ी देख गड़ें हैं

खेल वही मन मुग्ध करे जो, तन-मन को परिशुद्ध करे जो
मन का रंजन तो होता है, आपसदारी भी बोता है

***********************************************

6. श्री अशोक कुमार रक्ताले जी

(1)ललित छंद ( १६,१२ मात्राओं पर यति के साथ प्रत्येक चरण के अंत में एक गुरु होना उचित है, दो गुरु से पदांत रुचिकर होता है)

छन्न पकैया छन्न पकैया, उडी खेल में गिल्ली |
दूर दूर बैठे ठग सारे, उड़ा रहे हैं खिल्ली ||

छन्न पकैया छन्न पकैया, गेंद कहाँ से आयी |
जमे हुए थे दिग्गज सारे, उनसे जा टकरायी ||

छन्न पकैया छन्न पकैया, पीट रहे क्यों छाती |
हार जीत का साथ सदा ही, जैसे दीया बाती ||

छन्न पकैया छन्न पकैया, अब है किसकी बारी |
काल कोठरी उसे बुलाती, करले वह तैयारी ||

छन्न पकैया छन्न पकैया, पूरा खेल दिखाओ |
आधे डंडे गिल्ली का क्या, राज हमें समझाओ ||

(2) दोहा छंद

खेल विकट है नामवर, क्रिकेट नाम कहाय |
देश-देश मोफत भ्रमण, धन की सेज सजाय ||

आये फिरकी गेंद तो, गिल्ली देय उड़ाय |
कैसा होगा द्रश्य वो, छाया-चित्र दिखाय ||

बल्ले बल्ले हो रही, उनकी जो सरदार |
फेकें ऐसी गेंद सब, होती सीमा पार ||

लटक रही है रात-दिन, उनके सिर तलवार |
खेल-खेल में कर रहे, जो अनुचित व्यापार ||

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत |
गुणी सुधी जन कह गए, यही जगत की रीत ||

वृत्त की परिधि पर हुआ, अनावृत्त इक खेल |
मनु ने ही की थी खता, मनुज रहा खुद झेल ||

(3) गीतिका छंद

संक्षिप्त विधान - 26 मात्राओं का सम-मात्रिक छंद, इसमें बारह या चौदह मात्राओं के बाद विश्राम होता है. पदांत गुरु लघु गुरु यानि रगण (२१२) से

देखते ही देखते ये खेल कैसे हो गया,
उड़ गयी हैं गिल्लियां भगवान जैसे सो गया,
शोर चारों ओर देखो है स्वजन के वास्ते,
बंद हैं केदार जाने के सभी अब रास्ते ||

खेल में ही खेल होता है अनोखा मन्त्र ये,
चोर देता फैसला खुद है अनूठा तंत्र ये,
खेल को बदनाम करते हैं यहाँ दिग्गज कई,
मिल गयी है खेल में इक राह धन की अब नई ||

तीन तिरकिट डंडियों पर हैं धरी दो गिल्लियां,
गेंदबाजों के लिए है केंद्र तीनो बल्लियाँ,
एक फट्टा हाथ में धर एक बल्लेबाज है.
मारता हर गेंद को जो आज उसका राज है ||

*****************************************

7. सुश्री गीतिका 'वेदिका' जी

(1)गीतिका छंद :

खेल कैसा आ गया यह, यह मुझे भाया नही
छा गया संसार पर यह, पर मुझे आया नही
किस तरह का शब्द 'छक्का', ये कहो तो कौन हैं
खेल के बाइस खिलाडी, सर चढ़ा क्यों मौन हैं

(2) दोहा छंद

पश्च दिशा से खेल यह, लाये थे अंग्रेज
देशज थाती त्याग हम, उनके लिए सहेज

भूले डंडा गुल्लियाँ, कंचा और गुलेल
शेष और जो खेल थे, वे अब बेंचे तेल

छोटे मोटे खेल हम, खेला यही महान
देख सखी री संग में, पैसों भरी खदान

इसके कितने फायदे, आता सुबहो शाम
वे गलियाँ सुनसान है, जिन पर लगता जाम

*************************************************

8. श्री अविनाश बागडे जी

दोहे

एक बॉल ,दो गिल्लियां ,संग है तीन विकेट
बाईस मानव खेलते , इसका नाम क्रिकेट ..

भद्र जनो का खेल है , संभल संभल कर खेल
अंपायर के हाथों में , सौंपी गई नकेल ....

पांच दिनों का होता था ,आज बचा है शो
बीस बीस ही ओव्हर में ,गेट सेट एंड गो !!!

लोग बचे इस खेल से , और बचाए जान।
'संत' जुटे है फिक्सिंग में,होय जगत कल्यान ?????

***********************************************

9. श्री के0पी0सत्यम जी

(1) दोहे

तीन दण्ड दो गिल्लियां, खड़े रहे निष्पाप।
लाल गेंद ने तोड़ दी, कमर दण्ड की नाप।।1

नील गगन के छत्र में, दण्ड दिखे हैं तीन।
उस पर गेंद नाच रही, कोई बजाय बीन।।2

श्वेत मेघ उड़ रहे हैं, मस्त गगन हमराज।
गिली दण्ड से सच कहे, मेह-गेंद को खाज।।3

आती है जब दूर से, सन्न, गेंद आवाज।
जैसे पहुचे पास में, बल खाए अस नाज।।4

झट से गिल्ली ले उड़े, दण्ड गए बिखराय।
गेंद झूमती हवा में, गिल्ली समझ न पाय।।5

कमर दण्ड की नाप के, फेंकी गेंद घुमाय।
धरा चूम कर ज्यों उड़ी,दण्ड-गिली चटकाय।।6

है क्रिकेट का खेल जो, अति महॅगा यह शौक।
दीन-हीन से नहि सधे, महॅगाई बन हौक।।7

बड़ा विकट सट्टा सुनों, बट्टा हरपल साख।
राजनीति या खेल हो, क्रिकेट बिलकुल राख।।8

(2) मनहरण कवित्त-(घनाक्षरी)

(16+15)= 31 वर्ण के चार चरण अन्त में एक गुरू होता है।
8, 8, 8, 7 पर यति बेहतर होती है।

यह क्रिकेट का खेल, दिखाए सट्टा औ जेल, मजे लूटे बिचौलिए, रोती प्यारी जनता।
सच्ची शतको के शाह, धुरंधर धूनी वाह, कमाएं खुद के लिए, रोती प्यारी जनता।।
क्रिकेट खेलों का ताज, गिराता सब पर गाज, शान अपनों के लिए, रोती प्यारी जनता।
मैचों मे अथाह भीड़, दर्शक खोजते नीड़, पुलिस लाठी है लिए, रोती प्यारी जनता।।
(संशोधित)

दोहे
(3) डण्डे बेटे तीन हैं, गिल्ली रानी दोउ।
दूल्हे राजा लाल मन, संग भगे हर कोउ।।1

नैयहर में भीड़ रहे, *गॅवई दो ही आय।..........*अतिथि
रसगुल्ले को देख कर, चौके-छक्के भाय।।2

पण्डित दोनों छोर पर, गर्दन-हाथ हिलाय।
रसगुल्ले के होड़ में, दण्ड-गिली भहराय।।3

डण्डे पहलवान गिरे, हल्ला बहुत मचाय।
दोनों पण्डित ध्यान से उॅगली एक दिखाय।।4

गॅवई गॅवांर शहर का, *दांव धोबी पछाड़।.....*हुक शॅाट
भैया गेंद पकड़ रहा, फिसले पाय लताड़।।5

गेंद जी श्रीमान हुए, सबकी निकली आह।
डण्ड टै्फिक पोल बने, गिल्ली दिखाय राह।।6

***********************************************

10. सुश्री शुभांगना सिद्धि बघेल जी

चौपाई छंद प्रत्येक में सोलह मात्राएँ

जय बाबा किरकेट तिहारी
खाते हो तुम जान हमारी

देन तिहारी सट्टा शेट्टी
फिर भी पढ़े न कोई पट्टी

भूले गयेफुटबॉल कबड्डी
चले जेल में टूटी हड्डी

संत श्री कोई नर व नारी
आनी है फिर सबकी बारी

**************************************************

11. सुश्री राजेश कुमारी जी

(1)कुण्डलिया (व्यंग्य)

खेलों में इक खेल था ,जिसका नाम क्रिकेट
सट्टे बाजी खा गई ,करके मटिया मेट
करके मटिया मेट,देश की नाक कटाई
पचा सका ना पेट ,जुए से हुई कमाई
करके अब खिलवाड़ ,सुबकते हैं जेलों में
नहीं रहा विश्वास ,मनुष्यों का खेलों में

(2) छंद 'कामरूप'

संक्षिप्त विधान - चार चरण, प्रत्येक में 9, 7, 10 मात्राओं पर यति, चरणान्त तुकान्त ,गुरु-लघु से

दे दन दनादन ,लकड़ बट्टम ,गोल गट्टम फोड़
छह मार छक्के,चार चौके ,अगड़ बागड़ छोड़
नाचे नचनिया , दो गिल्लियां , वार ताबड़ तोड़
प्रतिद्वंद पछाड़ ,स्तंभ उखाड़ , रख विजय की होड़
****************************************************

12. श्री सुभाष वर्मा ‘सुखन भोगामी’जी

छंद- कुंडली

गिल्लीं उड़ गयीं देश के, लोकतंत्र की आज !
हुए बोल्ड सब रहनुमा, बची न इनकी लाज !!
बची न उनकी लाज, आज सब हो गए नंगे !
बहुत मचाई लूट, कराए झगडे दंगे !!
कहँ "सुभाष" कविराय, खेल भी खा गयी दिल्ली !
बची खुची फिक्सिंग के कारण उड़ गयीं गिल्ली !!

************************************************

13. श्री केशव मोहन पाण्डेय जी

(1)कुण्डलिया

अद्भूत है क्रिकेट यह, समझो देकर ध्यान।
तेरह जन के खेल में, फंसती कोटिक जान।।
फंसती कोटिक जान, कोटिक पैसा दाव पर।
जीता हुआ रगड़े, नमक हारे के घाव पर।
फिक्सिंग कर कई करते, गंदा जैसे द्यूत।
फिर भी सबके सिर चढ़ा, क्रिकेट यही अद्भूत।।

(2) कुण्डलिया

विकेट-तीनों काल को, जोड़े गिल्ली-ज्ञान।
कुशल खिलाड़ी रक्षक है, बैट से कर संधान।।
बैट से कर संधान, क्रिकेट की रक्षा रहता।
अविवेकी जीव ही, है मेहनत से डरता।
कुछ ओछे लोग ही, पहले हो जाते सेट।
तौलिया सफ़ेद, करे है काला विकेट।।

***********************************************

14. श्री बृजेश नीरज जी

गीतिका छंद

खेल ऐसा ये अनोखा हम सभी को भा गया
देश का हर खेल छूटा, यह विदेशी छा गया
खेल की दीवानगी है, रंग ऐसा चढ़ गया
छोड़ के सब काम अपने, मन इसी में रम गया

आड़ में इस खेल की बाजार अब सजने लगे
बोलियां अब लग रहीं, ईमान अब बिकने लगे
लोभियों ने यूं डसा है, दंश अब चुभने लगे
अब नियंता खेल के, इस खेल को छलने लगे

लालचों ने जाल ऐसा कुछ बुना इस खेल में
भावना पीछे गयी, बस धन बचा इस खेल में
लोमड़ी, गिरगिट सभी का घर बसा इस खेल में
बिक गए हैं अब खिलाड़ी, क्या बचा इस खेल में

****************************************************

15. श्री अरुण शर्मा ‘अनंत’ जी

दोहा छंद.

नील गगन में देखिये, उड़ते बादल श्वेत ।
छंदोत्सव का चित्र है, आउट का संकेत ।।

आउट जीरो पर कभी, कभी करे सौ पार ।
अधिक जनों को है जँचें, बैट बॉल का वार ।।

सिर के ऊपर से गई, बॉल हुई नोबॉल ।
जितना बाहर शुद्ध है, उतना अन्दर झोल ।।

लाखों में है सैलरी, फिर भी लालच हाय ।
जबसे देखी धांधली, तबसे खेल न भाय ।।

तरह तरह की बॉल पे, तरह तरह के शॉट ।
बिकते पाकर हैं सभी, मन के माफिक नोट ।।

दण्ड सभी को है मिले, कर्मो के अनुरूप ।
बचता कोई भी नहीं, निर्धन हो या भूप ।।

****************************************************

16. सुश्री महिमा श्री

सरसी छंद

संक्षिप्त विधान - जिसके प्रत्येक चरण में 27 मात्राएँ हैं चरण के अंदर 16वी मात्रा पर यति होती है और अंत में गुरु –लघु होते हैं

कई नामी हस्तियाँ जो हैं भारत की पहचान
कपिल ,गावस्कर, सचिन ने दी जन में इसको मान
क्रिकेट भारत का कभी था आन बान औ शान
अब बस समय बिताने का रह गया संधान

चिअर्स लीडर्स ड्रग्स व् दारू है लालच में जान
गिल्लियां चिटक गई अधर में गेंद है आसमान ..
******************************************************

17. श्री राम शिरोमणि पाठक जी

दोहा
किरकिट देखो बन गया, बस पैसे का खेल।
लालच में जो जो फँसे, जाते हैं वे जेल ॥

मन से खेलें खेल ना, धन को माने बाप
बेच शर्म औ लाज़ को ,लूट रहें चुपचाप !!

यहां रनों का लग रहा , उसी तरह अंबार॥
जैसे नेता देश को, लूटें बारम्बार !!

देखो इसकी गन्दगी ,देखो इसका काम !
महफ़िल लगती रात में ,पीते जमकर जाम !!

*************************************************

18. श्री सत्यनारायण शिवराम सिंह जी
कुण्डलिया छंद

सट्टे से बट्टा लगा, हुआ खेल बदनाम।
भद्रजनों का खेल है, खेलों में सरनाम।।
खेलों में सरनाम, लालची हुए खिलाड़ी।
हुयी टीम नीलाम, मारी पाँव कुल्हाड़ी।।
कहे सत्य कविराय, रहो नित हट्टे कट्टे।
स्वस्थ नहीं वह खेल, जहाँ पर लगते सट्टे।।

ताली सीटी लूटकर, हुयी आज सरनाम।
मन का रंजन कर रही, मुन्नी हो बदनाम।।
मुन्नी हो बदनाम, खेल सिद्धांत निराला।
होकर के बदनाम, खेल मत खेलो लाला।।
कहे सत्य कविराय, खेल धन लालच पाली।
निश दिन गाली खाय, जेल की घूरे ताली।।

***************************************************
19. सुश्री सरिता भाटिया जी
दोहे

गेंद उडाए गिल्लियां ,खड़ी दंडिका तीन
चीयर गर्ल्स नाच रही ,दर्शक बजाय बीन

नीलाम हुए खिलाडी , बिगड़ा सारा खेल
तौलिय रिस्ट बैंड से पहुँच गए सब जेल

नीलगगन में उड़ रहे ,बादल हैं सब श्वेत
खेल मगर काला हुआ, मिले गलत संकेत

उंगल उसकी उठ गई ,बाल लगी जो एक
खड़ी दंडिका तीन हैं ,गिल्ली रह गइ एक

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Replies to This Discussion

छन्दोत्सव की सभी रचनाओं के त्वरित संकलन हेतु प्रिय प्राची जी एवं आदरणीय सौरभ जी को हार्दिक बधाई |

सादर धन्यवाद आदरणीया

आदरणीय श्री बहुत ही सुन्दर छंदोत्सव की सभी रचनाएँ एक साथ देखकर बड़ी प्रसन्नता हो रही है, हार्दिक बधाई स्वीकारें.

हार्दिक धन्यवाद, भाई

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Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

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