दोहे (प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा )
वंदना श्री गणेश जी , वंदहु श्री हनुमान
वंदना माँ सरस्वती , दीजिए विद्या दान
माधव चरण शीश धरे, अर्जुन माँगत ज्ञान
कुटुंब सारा सामने , कैसे लूँ मैं प्रान
बोले कृष्ण सप्रेम तब , कर्म करो निष्काम
गति अंतिम सबकी यही, भेजो इनके धाम
अर्जुन तू ज्ञानी बड़ा , ऐसा क्यों व्यवहार
धरम अपना भूल गया ,धारण कर हथियार
ज्ञानी तो मैं था नही , जानत सकल जहान
आयो शरण जब तेरी , पायो कीरति मान
मौलिक/ अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
१० -०८ - २०१४
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आदरणीय श्री विजय मिश्र जी
सादर
प्रोत्सहन हेतु आभार . स्नेह बनाये रखिये
भक्तिमय दोहे अतिसुन्दर ,कहीं कहीं गेयता बाधित है.इन उत्कृष्ट भाव पूर्ण दोहों के लिए हार्दिक बधाई सादर
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