अद्वित्तीय देव गणेश
जय गणेश देवा तेरी अद्भुत कहानी
दाये बाए रिद्धि सिद्धि दो दो रानी
कोई नहीं है देवलोक में तेरा सनी
कहाता अजर अमर ब्रह्मचारी ज्ञानी
गजानंद हो गणनायक गणराज
आगमन कर सकल सिधारे काज
निर्धन की सदा ही रखते हो लाज
जय जय जय गणपति गजराज |
स्पष्टीकरण - जो पुरुष अमावस चौदस पूर्णिमा व्यतिपात योग पूर्वजों के श्राद्ध के दिवस
रविवार मंगलवार शनिवार ऋतुकाल के आरंभिक ४ दिवस का त्याग करके मात्र ऋतुकाल
के १६ रात्रियों में ही स्त्री संसर्ग करता है और ऋतुकाल की पांचवीं और सातवीं रात्रि का भी
संसर्ग में त्याग कर देता है तथा ऋतुकाल व्यतीत हो जाने पर स्त्री संसर्ग का त्याग करता है,
स्मृति में ऐसे पुरुष को ब्रम्हचारी ही कहा गया है. इसी कारण गणेश जी के २ पत्नियां ऋद्धि
और सिद्धि होने के बाद भी उन्हें ब्रम्हचारी ही कहा जाता है |
लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
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जय जय जय गणपति गजराज ,
श्री गणकऋषिजी ने "ओँम गँ गणपत्येय नमः "मँत्र रचना करी है ।
श्री गणकऋषिजी की गणेशवि्धा के विज्ञान मुताबिक..........
"गँ".....बीजमँत्र है ।
जिस तरह एक छोटे से बीज मेँ ही एक पेड-पौधा,फल-फूल,रँग-रुप-सुगँध है,
वैसे ही यह "बीजमँत्र" मेँ श्री गणेशजी परब्रह्मरुप पकट है ।
श्री गणकऋषिजी ने "ओँम गँ गणपत्येय नमः "मँत्र रचना करी है ।
श्री गणकऋषिजी की गणेशवि्धा के विज्ञान मुताबिक..........
"गँ".....बीजमँत्र है ।
जिस तरह एक छोटे से बीज मेँ ही एक पेड-पौधा,फल-फूल,रँग-रुप-सुगँध है,
वैसे ही यह "बीजमँत्र" मेँ श्री गणेशजी परब्रह्मरुप पकट है ।
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