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प्रथम रुषाली कर्ण की पत्नी

जिसे पितृ इच्छा से पाता

दूसरी कहलाती सुप्रिया, खास भानुमती से जिसका नाता||

 

अंसावरी को वही बचाता

था आतंकवादियों ने जिसको घेरा  

प्रेम करती उससे पहले, फिर सुतपुत्र कह धुत्कारा||

 

स्वयंवर जीता अंसावरी का

प्रेम था उससे करता

धुत्कार जिससे सह चुका था, अब स्वीकार न उसको करता||

 

दासी पद्मावती उससे प्रेम थी करती

विनती राजा से उसकी करता

अटूट रिश्ता सदा उससे रहता, सच्ची संगनी जग पद्मावती को उसकी कहता||

 

द्रौपदी स्वयंवर में आया कर्ण

दुर्योधन का सहायक बनता

पहली नजर में दिल हारता, जब द्रौपदी के सम्मुख पड़ता||

 

स्वीकार न करती अपमानित करती  

वक़्त उसको फिर से छलता

अजीब स्थिति से उलझता हरदम, भावुक हृदय सूतपुत्र था||

 

दासियों ने ही स्वीकारा जिसको

जो महान धनुर्धर अपने वक़्त का

छलती आयी नियति हमेशा, पर वो सदा अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ता||

 

उसके होने न होने से फर्क न पड़ता

अजीब जीवन का किस्सा

दुर्योधन और कृष्ण समझते, मर्म उसके तड़पते मन का||

 

उनसे हमेशा धुत्कार है खाता

जिनसे प्रेम सच्चा करता

सूतपुत्र होने का बड़ा मोल चुकाता, खुद को फिर भी जिंदा रखता||

 

रुषाली-सुप्रिया बनी कई पुत्रों की माता

सुत युद्ध की बलि में चढ़ता

महाकाल का तांडव जिसमे, जिंदा वृषकेतु ही बचता||

 

इन्द्रप्रस्थ का राजा उसे बनाकर

युधिष्ठिर गज़ब का निर्णय सुनाता

अनूठा रिश्ता उससे निभाकर, अपने धर्म के पक्ष को रखता||

 

धर्म की स्थापना कर सभी ने

धर्म को जिंदा रखा

अपने-अपने कर्तव्य में निपुण रहे सब, सबका सुख-सुविधा में जीवन कटता||

स्वरचित व मौलिक रचना 

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