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आत्मीय स्वजन,
पिछले दिनों OBO लाइव महाइवेंट ने एक नया इतिहास रचा है और कई नए फनकारों को भी इस परिवार से जोड़ा है| यूँ तो पहले से नियत तिथियों के अनुसार तरही मुशायरे की घोषणा ११ तारीख को ही करनी थी परन्तु महा इवेंट की खुमारी ने जागने का मौका ही नहीं दिया और आज दबे पांव १५ तारीख आ गई| तो चलिए विलम्ब से ही सही १ बार फिर से महफ़िल जमाते है और तरही मुशायरा ५ के लिए मिसरे की घोषणा करते हैं|

"हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है"
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन
रद्दीफ़: "है"
बहर: बहरे हज़ज़ मुसमन सालिम

इस बहर को कौन नहीं जानता या ये कहूँ किसने "कोई दीवाना कहता है " नहीं सुना है| सबके दिलों में जगह बना चुके डा० कुमार विश्वास के कई मुक्तक इसी बहर पर हैं|


इतना अवश्य ध्यान रखें कि यह मिसरा पूरी ग़ज़ल में कहीं न कही ( मिसरा ए सानी या मिसरा ए ऊला में) ज़रूर आये|
मुशायरे की शुरुवात २०/११/१० से की जाएगी| एडमिन टीम से निवेदन है कि रोचकता को बनाये रखने के लिए फ़िलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद कर दे जिसे २०/११/१० लगते ही खोला जाय| मुशायरे का समापन २३/११/१० को किया जायेगा| पिछले कई मुशायरों में लोगो को यह दिक्कत हो रही थी कि अपनी गज़लें कहा पर पोस्ट करे तो एक बार फिर से बता देता हूँ की Reply बॉक्स के खुलते ही आप अपनी ग़ज़लें मुख्य पोस्ट की Reply में पोस्ट करें|

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Replies to This Discussion

ग़ज़ल पर ग़ज़ल कहे जा रहे हैं बृजेश जी और एक से बढ़कर एक शानदार। बधाई
Dharmendra ji , shukriya aapko ye gazal pasand aayi... ye iinam hai mera ...mujhe qubool hai
आपकी नज़र..

ना जाने ये दोस्ती कब इबाद्त बन गयी,
एक मुलकात मे ही वो मेरी आदत बन गयी.
नजर उठा के अभी तो देखा भी नही,
हंगामा हो गया, लो प्यार भी सियासत बन गयी.
अए दोस्त नही मिलने देंगे ये दुनियवाले ,
चल कही ओर चले ये जगह फिर विलायत बन गयी."
kya baat hai brijesh sir...ekdam dhamaka kiye hue hain aap....

ek aur shaandaar prastuti.....
५ शेयरों में पूरे तरही का अन्दर बाहर आपने बयां कर दिया ब्रिजेश भाई जी !
वाह सर वाह, गज़ब ढाने का इरादा है आपका , बेहद खुबसूरत , मतला के साथ कहियेगा तो और मजा आयेगा |
वाह एक और कमाल की गिरह..वाकई में ऐसा मेरे साथ भी होता है|
Good Hilal Saheb, Tarhi mushaaira , asli hunar dikhaata hai. Shukriya
मुक्तिका:

काँप जाता है

संजीव 'सलिल'
*
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है
कहो नेता मगर मैं जानता हूँ साँप जाता है..

उघाड़ी हैं सदा कमियाँ सुधारूँगा उन्हें खुद ही.
वो अफसर जाने क्यों आ-आके उनको ढाँप जाता है?

तनिक दूरी रहे तो मिल-जुदा होना न अखरेगा.
मगर वो है कि बाँहों में उठाकर चाँप जाता है..

ज़माने से जो टकराया नहीं फिर भी झुका किंचित.
मिलाकर आँख आईने से अक्सर हाँप जाता है..

छिपाता है 'सलिल' सच खुद से, साये से, ज़माने से.
शरीके-ज़िंदगी कुछ कहे बिन, चुप भाँप जाता है..

********************
मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'
*
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है.
कहा धरती ने यूँ नभ से, न क्यों सूरज उगाता है??
*
न सूरज-चाँद की गलती, निशा-ऊषा न दोषी हैं.
प्रभाकर हो या रजनीचर, सभी को दिल नचाता है..
*
न दिल को बिल चुकाना है, न ठगना या ठगाना है.
लिया दिल देके दिल, सौदा नगद कर मुस्कुराना है.
*
करा सौदा खरा जिसने, जो जीता वो सिकंदर है.
करें हम मौज, क्यों बागी बनें?, क्या सिर कटाना है??
*
जिसे भी सिर कटाना है, कटाये- हम तो नेता हैं.
हमारा काम- अपने मुल्क को ही बेच-खाना है..
*
करें क्यों मुल्क की चिंता?, सकल दुनिया हमारी है..
हो बंटाढार हमको चाँद या मंगल पे जाना है..
*
न मंगल अब कभी जंगल में कर पाओगे ये सच है.
हमें मंगल पे जाके अब उसे भी बेच-खाना है..
*
न खाना और ना पानी, मगर बढ़ती है जनसँख्या.
जलेगा रोम तो नीरो को बंसी ही बजाना है..
*
बजी बंसी तो सारा जग, करेगा रासलीला भी.
तुम्हें दामन फँसाना है, हमें दामन बचाना है..
*
लगे दामन पे कोई दाग, तो चिंता न कुछ करना.
बताते रोज विज्ञापन, इन्हें कैसे छुड़ाना है??
*
छुड़ाना पिंड यारों से, नहीं आसां तनिक यारों.
सभी का एक मकसद, हमको नित चूना लगाना है..
*
लगाना है अगर चूना, तो कत्था भी लगाओ तुम.
लपेटो पान का पत्ता, हमें खाना-खिलाना है..
*
खिलाना और खाना ही हमारी सभ्यता- मानो.
मगर ईमानदारी का, हमें अभिनय दिखाना है..
*
किया अभिनय न गर तो सत्य जानेगा जमाना यह.
कोई कीमत अदा हो किन्तु हमको सच छिपाना है..
*
छिपाना है, दिखाना है, दिखाना है छिपाना है.
है घर बिग बॉस का यारों, हरेक झूठा फ़साना है..
*
फ़साना क्या?, हकीकत क्या?, गनीमत क्या?, फजीहत क्या??
खा लिये हमने सौ चूहे, हमें अब हज पे जाना है..
*
न जाना है, न जायेंगे, महज धमकाएंगे तुमको.
तुम्हें सत्ता बचाना है, कमीशन हमको खाना है..
*
कमीशन बिन न जीवन में, मजा आता है सच मानो.
तुम्हें रिश्ता निभाना है, हमें रिश्वत कमाना है..
*
कमाना है, कमाना है, कमाना है, कमाना है.
कमीना कहना है?, कह लो, 'सलिल' फिर भी कमाना है..
dhanyavad.
एक शानदार ग़ज़ल आचार्य जी की कलम से बस एक शंका है हाँप होता है या हाँफ। अगर हाँप शब्द का कोई ख़ास अर्थ हो तो कृपया बताकर शिष्यों का ज्ञानवर्धन करें।
आप सही कह रहे हैं. 'हाँफ' के स्थान पर 'हांप' टंकित हुआ है. हिंदी में एक संवर्ग (उच्चारण के आधार पर) के अक्षरों का प्रयोग स्वीकार्य है. उर्दू में है या नहीं जानकार बतायें.

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