For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस बार का तरही मिसरा 'बशीर बद्र' साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई"
वज्न: 212 212 212 212
काफिया: ई की मात्रा
रद्दीफ़: रह गई
इतना अवश्य ध्यान रखें कि यह मिसरा पूरी ग़ज़ल में कहीं न कही ( मिसरा ए सानी या मिसरा ए ऊला में) ज़रूर आये|
मुशायरे कि शुरुवात शनिवार से की जाएगी| admin टीम से निवेदन है कि रोचकता को बनाये रखने के लिए फ़िलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद कर दे जिसे शनिवार को ही खोला जाय|

इसी बहर का उदहारण : मोहम्मद अज़ीज़ का गाया हुआ गाना "आजकल और कुछ याद रहता नही"
या लता जी का ये गाना "मिल गए मिल गए आज मेरे सनम"

विशेष : जो फ़नकार किसी कारण लाइव तरही मुशायरा-2 में शिरकत नही कर पाए हैं
उनसे अनुरोध है कि वह अपना बहूमुल्य समय निकाल लाइव तरही मुशायरे-3 की रौनक बढाएं|

Views: 8747

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

प्रेम की नाव मँझधार ही रह गई,
याद पतवार सी तैरती रह गई।

जीत कर ये जहाँ भी समझ ना सका
जिन्दगी में तुम्हारी कमी रह गई।

लाल जोड़ा पहन साँझ बिछड़ी जहाँ,
साँस दिन की वहीं पर थमी रह गई।

रात ने ग़म-ए-दिल तो छुपाया मगर
दूब की शाख़ पर कुछ नमी रह गई।

नाम तेरा जहाँ आ गया ऐ सनम,
हर ग़ज़ल बस वहीं पर रुकी रह गई।
वाह वाह धर्मेन्द्र जी, क्या बाकमाल ग़ज़ल कही है आपने, बेहतरीन ! आपकी बहुत ही प्रौढ़ काव्य सोच की परिसूचक इस ग़ज़ल ने मन मोह लिया ! ये दो शेअर दिल को छू गए :

//लाल जोड़ा पहन साँझ बिछड़ी जहाँ,
साँस दिन की वहीं पर थमी रह गई।
//रात ने ग़म-ए-दिल तो छुपाया मगर
दूब की शाख़ पर कुछ नमी रह गई।//

बहुत खूब, अल्लाह करे जोर-ए-कलम और ज्यादा !
धर्मेन्द्र जी ..आपको पाठशाला में तो पढ़ता ही रहता हूँ ...मुशायरे में आपका बहुत बहुत स्वागत है|
हर शेर में आपका प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण दिखाई देता है|

रात ने ग़म-ए-दिल तो छुपाया मगर
दूब की शाख़ पर कुछ नमी रह गई।
वाह ...बेहतरीन...

जीत कर ये जहाँ भी समझ ना सका
जिन्दगी में तुम्हारी कमी रह गई।
गिरह भी कमाल की लगाई है....सब हासिल करने के बाद बस तुम्हारी कमी रह गई
वाह ..... दिली दाद कबूल कीजिये|
धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, कमल की ग़ज़ल कही आपने - ये शेअर बहुत अछा लगा है
रात ने ग़म-ए-दिल तो छुपाया मगर
दूब की शाख़ पर कुछ नमी रह गई।
बहुत अच्छी रचना.

लाल जोड़ा पहन साँझ बिछड़ी जहाँ,
साँस दिन की वहीं पर थमी रह गई।

इस शे'र ने एक मरहूम दोस्त स्व. मनकामेश्वर राजावत की याद दिला दी. उसने कभी लिखा था:

संध्या के माथे पर सूरज सिन्दूर.
बाँटता-बिखेरता नीलाभी नभ नूर..
प्रेम की नाव मँझधार ही रह गई,
याद पतवार सी तैरती रह गई।

जीत कर ये जहाँ भी समझ ना सका
जिन्दगी में तुम्हारी कमी रह गई। jabrdast sher hain .. bemishal .. aaj ka mushyara to wakai lazawb rha
लाल जोड़ा पहन साँझ बिछड़ी जहाँ,
साँस दिन की वहीं पर थमी रह गई।
बहुत खूब धर्मेन्द्र साहब, अच्छी ग़ज़ल निकाली है, दाद देता हूँ ,
बेहतरीन ग़ज़ल ...
दीपक शर्मा कुल्लुवी जी कहते है

ज़िन्दगी में तुम्हारी कमीं रह गयी
अपनीं यादें जहाँ थी,वहीँ रह गयी

दुनियां वाले लगाते रहे तोहमतें
अपनें हिस्से में ग़म,बेबसी रह गयी

ऐसा मुमकिन नहीं भूल पाओ हमें
हम जो रुखसत हुए आँखें नम रह गयी

'दीपक कुल्लुवी' ना जानें कहाँ चल दिया
महफिलें तो सजी की सजी रह गयी

कहते हैं जिंदा है, पर ये लगता नहीं
सांसें तो उसकी बाकी यहीं रह गयी
deepak jee ghajal to bahut sunder likha hai aapne.per ye line दुनियां वाले लगाते रहे तोहमतें
अपनें हिस्से में ग़म,बेबसी रह गयी..kuch jama nahi... dhanyabaad
अच्छी कोशिश.
दुनियां वाले लगाते रहे तोहमतें
अपनें हिस्से में ग़म,बेबसी रह गयी

ऐसा मुमकिन नहीं भूल पाओ हमें
हम जो रुखसत हुए आँखें नम रह गयी bahut bahut sundar dil ko chhu lene wale sher

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"२२ २२ २२ २२ २२ २२  आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए अशेष बधाईयाँ…"
13 minutes ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"दोहा सप्तक. . . . अपने अपनों से क्यों दुश्मनी, गैरों से क्यों प्यार ।उचित नहीं संसार में, करना यह…"
43 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"2122 - 2122 - 2122 - 212 क़ब्रगाहों से गड़े मुर्दे उखाड़े जाएँगे  इस तरह जलते हुए मुद्दे दबाए…"
49 minutes ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय अखिलेश जी सादर अभिवादन  कान्हा को छत्तीसगढ बुलाने की यह मनुहर बहुत प्यारी लगी। हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई . कान्हा से भक्त की भोली इच्छा की मांग अच्छी लगी , गीत रचना के लिए बधाई |  कुछ…"
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी  इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें"
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी इस सुन्दर गजल के लिए बधाई स्वीकार करें सभ्य जगत ही बढ़चढ़ उनको पूज रहाजो…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"मंगल फान्ट में कुछ समस्या है अतः मोबाइल और फिर फ़ाइल के माध्यम से संक्षिप्त टिप्पणी का प्रयास…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक बार फिर आओ कान्हा =================== एक बार फिर आओ कान्हा, लीला मधुर दिखाओ ना। छोड़ कन्हाई ब्रज…"
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी देश प्रेम में ओतप्रोत बहुत सुन्दर भावसंपन्न रचना के लिए बधाई स्वीकार…"
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सादर अभिवादन  एक लंबे अर्से बाद आपको पटल पर देखकर बहुत अच्छ लगा। घर…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय प्रतिभा जी , आपने बचपन के दिनों की याद दिला दी , बहुत सुन्दर गीत रचना की है , बधाई आपको "
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service