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"OBO लाइव महा उत्सव" अंक २२ (Now closed with 1165 Replies)

आदरणीय साहित्य प्रेमियों

सादर वन्दे,

"ओबीओ लाईव महा उत्सव" के २२ वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. पिछले २१ कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने २१  विभिन्न विषयों पर बड़े जोशो खरोश के साथ और बढ़ चढ़ कर कलम आजमाई की, जैसा कि आप सब को ज्ञात ही है कि दरअसल यह आयोजन रचनाकारों के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है, इस आयोजन पर एक कोई विषय या शब्द देकर रचनाकारों को उस पर अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है:-

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक २२      

विषय - "चाँद"

आयोजन की अवधि- ८ अगस्त २०१२ बुधवार से १० अगस्त २०१२ शुक्रवार तक  

तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दे डालें अपनी कल्पना को हकीकत का रूप, बात बेशक छोटी हो लेकिन घाव गंभीर करने वाली हो तो बात का लुत्फ़ दोबाला हो जाए. महा उत्सव के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है |


उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है: -

  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. हास्य कविता
  4. गीत-नवगीत
  5. ग़ज़ल
  6. हाइकु
  7. व्यंग्य काव्य
  8. मुक्तक
  9. छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि) 

 

 

अति आवश्यक सूचना :- "OBO लाइव महा उत्सव" अंक- २२ में सदस्यगण  आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ  ही प्रस्तुत कर सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो बुधवार ८ जुलाई लगते ही खोल दिया जायेगा ) 

 

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"महा उत्सव"  के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

मंच संचालक

धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)

(सदस्य कार्यकारिणी)

ओपन बुक्स ऑनलाइन  

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Replies to This Discussion

वाह अविनाश जी क्या कहने है दो अलग अलग

आयामों में सुन्दर अभिव्यक्ति सजाई है

बहुत बहुत बधाई

आभार भाई जी.

भाई अविनाशजी, आपकी दोनों कुण्डलियों के लिये बधाई. दो ध्रुवों को आपने साथ बयान किया है.  वाह !

एक बात :

चाँद को  प्रेमी ने, नभ से है खींच  लाया..   प्रस्तुत पंक्ति दुरुस्तगी की मांग कर रही है. .. . सादर

आपकी ये  हौसला अफजाई...मेरा सौभाग्य..

आदरणीय अविनाश सर जी सादर नमन बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ दोनों ही अलग अलग आयाम लिए वाह क्या बात है
इस सुन्दर छंद रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई

आभार भाई जी.

दोनों कुण्डलिया बहुत ही लाजवाब लिखी हैं आदरणीय अविनाश जी.
प्रथम शब्द चित्र में वात्सल्य का बहुत सुन्दर रूप उभरा है, पर आज कल के बच्चों को दूध पिलाना, चंदा का फंदा भी नहीं काम आता..
और दूसरी कुण्डलिया भी बहुत ही सुन्दर शब्द-चित्र उकेर रही है.
बधाई इन सरस सुन्दर सुगढ़ कुण्डलिया छंद के लिए.

मेरी  रचना  ने आपके ह्रदय   को स्पर्श किया ...अभिभूत हूँ डॉ प्राची मेम...

चाँद को अलग-अलग दृष्टि से देखने का बहुत बढ़िया प्रयास 
पर अविनाश जी दोहों मे क्यों कमी छोड़ दी ??????????

दोनों ही दोहों के तीसरे चरण मे नज़र डालिए  फिर से "दूध कटोरे मे आए..१४ 

.................................................................संग  सितारें भी इसमे ....१४ 

बहुत-बहुत आभार.

दो कुण्डलियाँ लिखकर बहुत सुन्दर बेलेंस बनाया है.वाह! बागडे साहब.

 

अशोक भाई बहुत-बहुत आभार.

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