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ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा- अंक 34(Now Closed with 754 replies)

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 34 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. इस बार का तरही मिसरा जनाब अनवर मिर्ज़ापुरी की बहुत ही मकबूल गज़ल से लिया गया है. इस गज़ल को कई महान गायकों ने अपनी आवाज से नवाजा है, पर मुझे मुन्नी बेगम की आवाज़ में सबसे ज्यादा पसंद है . आप भी कहीं न कहीं से ढूंढ कर ज़रूर सुनें.

पेश है मिसरा-ए-तरह...

"न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये "

1121 2122 1121 2122

फइलातु फाइलातुन फइलातु फाइलातुन

(बह्र: रमल मुसम्मन मशकूल)
 
रदीफ़     :- न जाये
काफिया :- अल (ढल, चल, जल, निकल, संभल आदि)
मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 अप्रैल दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 29 अप्रैल दिन सोमवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

अति आवश्यक सूचना :-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम दो गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं
  • एक दिन में केवल एक ही ग़ज़ल प्रस्तुत करें
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिएँ.
  • तरही मिसरा मतले में इस्तेमाल न करें
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी रचनाएँ लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये  जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  27 अप्रैल दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.


मंच संचालक 
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह) 
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम 

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Replies to This Discussion

कुछ ही देर में प्रारंभ होने वाला है मुशायरा| आप सभी का स्वागत है|

राणा भाई, आपके सौजन्य से हम भी सभी का इस मुशायरे में इस्तकबाल करते हैं .. .

आप दोनों के स्वर में स्वर मिलाते हुए हम भी सभी का इस मुशायरे में इस्तकबाल करते हैं  । 

मुशायरे में सभी का स्वागत ...........कार्यक्रम  की सफलता के लिए शुभकामनाएं 

मुशायरे के शुभारंभ पर बधाई और आयोजन की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं 

तरही मुशायरा अंक-34 में सभी का स्वागत है.....

तहरी मुशायरा अंक में सभी का स्वागत है , शुभकामनाये सभी को 

सभी को सादर प्रणाम, स्वागत है तरही मुशायरा अंक ३४ वें में. 

कार्यालय के कारणों से सुबह से बाहर था. अभी आना संभव हो पा रहा है. शुभ-शुभ

क्या कहने गुलशन भाई 

पत्थर को आज शीशा दिखला रहा हैं आंखें 
कहीं लहजा पत्थरों का देखो बदल न जाये........सच कहा 

बच्चों पे है नवाज़िश  उसका ही सब करम है 
रहता है माँ का साया जब तक संभल न जाये.......बहुत खूब 

है शब-ए-विसाल इसमें सुनो मेरी कुछ कहो तुम 
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये......वाह 

बहुत ख़ूब अंदाज़ में आपने आग़ाज किया आपने ग़जल का 

बहुत खूबसूरत गजल ...बहुत उम्दा शेर ...हर शेर बखूबी ...वाह वाह अशफ़ाक अली जी!

बच्चों पे है नवाज़िश  उसका ही सब करम है
रहता है माँ का साया जब तक संभल न जाये

गुलशन साहिब इन दो अशआर पर खास तौर पर दाद क़ुबूल करें ...

ज़रा रहम कर खुदरा मेरे दिल के गुलसितां पर
न गिराना बर्क इसपर कोई साख़ जल न जाये

है शब-ए-विसाल इसमें सुनो मेरी कुछ कहो तुम
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाये

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