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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १७

परम आत्मीय स्वजन,

"OBO लाइव महाउत्सव" तथा "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता में आप सभी ने जम कर लुत्फ़ उठाया है उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १७  और इस बार का तरही मिसरा प्रसिद्ध शायर जनाब कुँवर बेचैन साहब की गज़ल से हम सबकी कलम आज़माइश के लिए चुना गया है | इस बहर पर हम पहले भी मुशायरे का आयोजन कर चूके है जिसे यहाँ क्लिक कर देखा जा सकता है | तो आइये अपनी ख़ूबसूरत ग़ज़लों से मुशायरे को बुलंदियों तक पहुंचा दें |

"ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते"

(ये मिहनत गाँ/व में करते/ तो अपना घर/ बना लेते)

1222               / 1222         /  1222            / 1222

मफाईलुन            मफाईलुन       मफाईलुन        मफाईलुन

बहर :- बहरे हजज मुसम्मन सालिम

कफिया: अर ( सर, घर, पत्थर, दर, पर, बेहतर,... आदि )
रदीफ   : बना लेते 

विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिक कर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें| 

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २७ नवम्बर दिन रविवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक २९ नवम्बर दिन मंगलवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक १७ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती   है ...

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २७ नवम्बर दिन रविवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

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        मंच संचालक
     योगराज प्रभाकर

    (प्रधान सम्पादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन

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Replies to This Discussion

//थकी ये देह ढकने को गगन चादर बना लेते
कभी मेरी तरह तुम भी धरा बिस्‍तर बना लेते//

बहुत खूबसूरत मतला कहा है आपने ! इन बेहतरीन प्रतिमानों का जवाब नहीं !

 

//भुलाकर तल्खि़यॉं मन प्रेम की गागर बना लेते
अगर मन साफ़ रख पाते, खुदा का घर बना लेते।//

काश! ऐसा हो पाता....... ऐसी प्रेम-गागर हम ईश्वर को भेंट कर पाते ! बेहतरीन हुस्न-ए-मतला

 

//किसी बच्चे के अधरों पर खिली इक मुस्‍कराहट का

हुनर हम जानते तो जि़न्‍दग़ी बेहतर बना लेते।//

वाह वाह वाह .......क्या गज़ब का संदेश है इस शेर में ........बहुत-बहुत  बधाई .......


//हमारे बीच की इन दूरियों में कुछ कमी आती
अगर कड़वे वचन को प्रेम का अक्षर बना लेते।//

जय हो जय हो !! यह तो प्रेम का मूल मंत्र ही कह दिया आपने !

 

//हमें भी बख्‍शता आलम खुदा गर बेखुदी का हम
तुम्‍हारी याद को ही खुशनुमा बिस्‍तर बना लेते।//

वाह वाह वाह ! बेहतरीन ......

 

//खुदा, जब दिल दिया तो साथ में फि़त्रत हमें देता

कभी रोने पे आता तो इसे पत्‍थर बना लेते।//

बिलकुल सत्य कहा आदरणीय  ! यही तो हो रहा है अब ....

 

//यहॉं दिन-रात खट कर ही मिली दो वक्‍त की रोटी,

ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते।//

वाह वाह वाह ! कमाल की गिरह लगाईं है आपने...... काश! इसे सभी समझ पाते तो गाँव की रौनक में चार चाँद लग जाते !


//अगर वाकिफ़ नहीं होते हकीकत से परिन्‍दों की

नये इक ख्‍वाब से पहले नये कुछ पर बना लेते।//

बहुत दूर की सोंच! इसे दिल से सलाम !


//
समझ हमको अगर होती, बुज़ुर्गों की दुआओं की
जहॉं पग रख दिया मॉं ने, खुदा का दर बना लेते।//

यही सच है आदरणीय ! माँ के क़दमों में ही तो ज़न्नत है !


//बहुत चाहत रही खुद को कभी मस्‍ती के आलम में
किसी बच्‍ची के पॉंवों में बँधी झॉंझर बना लेते।//

 बहुत खूब आदरणीय ! उस झांझर की अमृत ध्वनि के क्या कहने !

//भला किस चीज की 'राही' कमी रहती कभी हमको
खुदा के नूर का खुदको अगर दिलबर बना लेते।//

यदि हम सब कुछ ईश्वर को समर्पित कर ही दें तो कमी किस बात की ! वाह वाह वाह ! इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिली दाद क़ुबूल फरमाएं !

 

अंबरीश जी हर शेर पर टिप्पणी के लिए किए गये आपके प्रयास वंदनीय हैं! आभारी हूँ!

स्वागत है आदरणीय !

किसी बच्चे के अधरों पर खिली इक मुस्‍कराहट का

हुनर हम जानते तो जि़न्‍दग़ी बेहतर बना लेते। 

 

Kya Kehna hai Aap ka !! आदरणीय तिलकराज जी

 

yeh aashar ka to main fan ho gaya !!! Thanks Tilak ji !! 

 

aadarneey

aapke in classical sheon ke liye sadhuwad...inme sundar sandesh to hai hi ...mantramugdh kar dene ki takat bhi hai....badhai

जहाँ का हाल थोड़ा और भी बहतर बना लेते
अगर इंसानियत का इक यहाँ मन्दर बना लेते

बहुत उँची इमारत है जिसे अपनी वो कहते हैं
मजा आता अगर वो इस मकाँ को घर बना लेते

गवारा था नहीं सौदा हमें ही रूह का वरना
महल उंचा खुदा की आँख से गिरकर बना लेते

नहीं चलता है बस इनका मेरे इस देश पे वरना
कई नेता महल अपने मज़ारों पर बना लेते

शहर का बोझ ढोकर भी जो सड़कों पर ही सोते हैं
ये मेहनत गाँव मे करते तो अपना घर बना लेते

अगर मालूम होता ये की तोड़ेगा कोई इक दीन
अरज करके खुदा से दिल को हम पत्थर बना लेते

सड़क पे घूमना पड़ता नहीं मासूम तुमको भी
जगह थोड़ी किसी के दिल के अंदर बना लेते

पल्लव पंचोली (मासूम)

बहुत उँची इमारत है जिसे अपनी वो कहते हैं
मजा आता अगर वो इस मकाँ को घर बना लेते

बहुत खूब पल्लवजी ................... बधाई हो

भाई बहुत उम्दा और मुकम्मल शेर कहे हैं, बधाई!

गवारा था नहीं सौदा हमें ही रूह का वरना
महल उंचा खुदा की आँख से गिरकर बना लेते......आय हाय, क्या बात कही है पल्लव, बहुत बड़ी बात, सीधे सनसनाते हुए यह शेर दिल में उतर गया |

 

नहीं चलता है बस इनका मेरे इस देश पे वरना
कई नेता महल अपने मज़ारों पर बना लेते

इस शेर का मिसरा सानी का कथ्य स्पष्ट नहीं है अपने मजार पर कैसे महल बना लेंगे ?

 

शहर का बोझ ढोकर भी जो सड़कों पर ही सोते हैं
ये मेहनत गाँव मे करते तो अपना घर बना लेते

वाह, सुन्दर गिरह बाँधी है |

 

खुबसूरत प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें |

नहीं चलता है बस इनका मेरे इस देश पे वरना
कई नेता महल अपने मज़ारों पर बना लेते

इस शेर का मिसरा सानी का कथ्य स्पष्ट नहीं है अपने मजार पर कैसे महल बना लेंगे ?

कई नेता महल अपने, मजारों पर बना लेते.
मुझे ऐसा लग रहा है कि यह शे'र नेताओं द्वारा जमीनों पर कब्ज़ा कर इमारतें बनाने की प्रवृत्ति पर कहा गया है.

आदरणीय, हो सकता है कि जो आप बता रहे हो वही बात शायर भी कहना चाह रहा हो, किन्तु कथ्य इतना स्पष्ट होना चाहिए कि एक आम पाठक भी झट से समझ जाय,सोचना ना पड़े | 

जहाँ का हाल थोड़ा और भी बहतर बना लेते
अगर इंसानियत का इक यहाँ मन्दर बना लेतेwah.

बहुत उँची इमारत है जिसे अपनी वो कहते हैं
मजा आता अगर वो इस मकाँ को घर बना लेते umda.

गवारा था नहीं सौदा हमें ही रूह का वरना
महल उंचा खुदा की आँख से गिरकर बना लेतेbehatareen.

नहीं चलता है बस इनका मेरे इस देश पे वरना 
कई नेता महल अपने मज़ारों पर बना लेते....gahra katahsh...wah.

शहर का बोझ ढोकर भी जो सड़कों पर ही सोते हैं
ये मेहनत गाँव मे करते तो अपना घर बना लेते....sahi.



अगर मालूम होता ये की तोड़ेगा कोई इक दीन
अरज करके खुदा से दिल को हम पत्थर बना लेते

सड़क पे घूमना पड़ता नहीं मासूम तुमको भी 
जगह थोड़ी किसी के दिल के अंदर बना लेते

पल्लव पंचोली (मासूम ji).   बहुत उम्दा और मुकम्मल शेर कहे हैं....बेहतरीन ग़ज़ल

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