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"OBO लाइव महा उत्सव" अंक ११ (Now Closed with 948 Replies)

सभी साहित्य प्रेमियों को

प्रणाम !

          साथियों जैसा की आप सभी को ज्ञात है ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "महा उत्सव" का आयोजन होता है, उसी क्रम में ओपन बुक्स ऑनलाइन प्रस्तुत करते है ......

 

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक  ११

इस बार महा उत्सव का विषय है "तेरे बिना जिया लागे ना"

आयोजन की अवधि :- ८ सितम्बर २०११ गुरूवार से १० सितम्बर २०११ शनिवार तक

          महा उत्सव के लिए दिए गए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना काव्य विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है |

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है ...
  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. हास्य कविता
  4. गीत-नवगीत
  5. ग़ज़ल
  6. हाइकु
  7. व्यंग्य काव्य
  8. मुक्तक
  9. छंद [दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका वग़ैरह] इत्यादि
             साथियों बड़े ही हर्ष के साथ कहना है कि आप सभी के सहयोग से साहित्य को समर्पित ओबिओ मंच नित्य नई बुलंदियों को छू रहा है OBO परिवार आप सभी के सहयोग के लिए दिल से आभारी है, इतने अल्प समय में बिना आप सब के सहयोग से कीर्तिमान पर कीर्तिमान बनाना संभव न था |

             इस ११ वें महा उत्सव में भी आप सभी साहित्य प्रेमी, मित्र मंडली सहित आमंत्रित है, इस आयोजन में अपनी सहभागिता प्रदान कर आयोजन की शोभा बढ़ाएँ, आनंद लूटें और दिल खोल कर दूसरे लोगों को भी आनंद लूटने का मौका दें |

अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन से जुड़े सभी सदस्यों ने यह निर्णय लिया है कि "OBO लाइव महा उत्सव" अंक ११ जो तीन दिनों तक चलेगा उसमे एक सदस्य आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टि ही प्रस्तुत कर सकेंगे | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध और गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकेगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा और जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी | 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो ८ सितम्बर लगते ही खोल दिया जायेगा )

यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |

( "OBO लाइव महा उत्सव" सम्बंधित किसी भी तरह के पूछताक्ष हेतु पर यहा...

मंच संचालक

धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)

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Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion


आपका बहुत बहुत आभार.
 सादर

भाई रवि गुरू जी ! आपका यह भोजपुरी विरह गीत अच्छा बन पड़ा है ! कृपया बधाई स्वीकार करें !

dhanyabad sir ji

गुरु जी भोजपुरी में राउर रचना बहुत हो नीमन होला, बधाई सवीकार करी |

अच्छा गीत है गुरू जी, बधाई

बुझी आग जितनी गरम फिर भी ठंढी आह

जलते मन में भरी है अभी मिलन की चाह

                                 जलाने को आकुल है

                               मीत इतना व्याकुल है -१-

सुन तो ले कुछ बावरे क्यों इतना बेचैन

मन की पोथी बांचते......दीख रहे हैं नैन

                                 सैन की समझो भाषा

                                 रखो कायम अभिलाषा -२-

जब थे मेरे पास ............रही मैं ऐंठी ऐंठी

अब मन में संताप .....रूठ के क्यों मैं बैठी

                                  ये अँखियाँ रोई-रोई 

                                      रहूँ मैं खोई-खोई -३-

आएगा मधुमास ....पिया जब भी आयेंगें

पूरी होगी आस .....खुशी मन भर लायेंगे

                              यही मन को समझाऊँ  

                                 चैन फिर भी न पाऊँ  -४-

डॉ.बृजेश

                        

                                                               

 


आदरणीय डॉ. त्रिपाठी, प्रेम और विरह की विविध अवस्थाओं को बखूबी शब्द दिए हैं इस काव्यकृति में.
//सुन तो ले कुछ बावरे क्यों इतना बेचैन, मन की पोथी बांचते......दीख रहे हैं नैन // ये पंक्तियाँ  दिल की गहराइयों में उतर गयीं. तहे दिल से बधाई प्रेषित करता हूँ.

भाई धरम जी ...आपके शब्द मन में उत्साह का संचार करते हैं ह्रदय से आभार


आपका बहुत बहुत आभार.
 सादर

//बुझी आग जितनी गरम फिर भी ठंढी आह

जलते मन में है भरी अभी मिलन की चाह

                                 जलाने को है आकुल

                               मीत इतना है व्याकुल  -१-//

वाह त्रिपाठी जी रचा..…… दोहे से यह गीत

जलते मन का हो मिलन, मिले उसे मनमीत

                            मीत मिल जाये अब तो 

                           जिया अकुलाये अब तो - १-

//सुन तो ले कुछ बावरे क्यों इतना बेचैन

मन की पोथी बांचते......दीख रहे हैं नैन

                                 सैन की समझो भाषा

                                 रखो कायम अभिलाषा -२-//

बांची पोथी  तब थमा, ज्वालामुखी प्रवाह 

बेचैनी इतनी बढ़ी, मुख से निकले आह

                        आह जो मुख से निकले 

                        कलेजा बाहर  फिसले -२-

 

 इस सृजन हेतु बहुत-बहुत बधाई !            

भाई अम्बरीश जी,

 

आभारी हूँ आपका,      इतने सुन्दर बोल

नवल गीत फिर से रचूँ,, द्वार रहें हैं खोल

                             बड़ा सुन्दर विश्लेषण

                              भावनाओं का प्रेषण

धन्यवाद है आपका .....अम्बरीश कविराय

मेरे छंदों को किया ......सम्मानित हर्षाय

                              खूब उत्साह बढ़ाया

                        ह्रदय फिर से भर आया

 

  

वाह - वाह !!!!!!   .. बहुत खूब बृजेशभाईजी..

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1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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