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"OBO लाइव महा उत्सव" अंक १४ (Now Closed with 730 Replies)

आदरणीय साहित्य प्रेमियों

सादर वन्दे,


जैसा कि आप सभी को ज्ञात ही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "ओबीओ लाईव महा उत्सव" का आयोजन किया जाता है | दरअसल यह आयोजन रचनाकारों के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है, इस आयोजन में एक कोई विषय देकर रचनाकारों को उस पर अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है | पिछले १३ कामयाब आयोजनों में रचनाकारों में १३ विभिन्न विषयों बड़े जोशो खरोश के साथ और बढ़ चढ़ कर  कलम आजमाई की है ! इसी सिलसिले की अगली कड़ी में ओपन बुक्स ऑनलाइन पेश कर रहा है:


"OBO लाइव महा उत्सव" अंक  १४   

विषय - "आशा"  
आयोजन की अवधि गुरूवार ८ दिसम्बर २०११ से शनिवार १० दिसंबर २०११ 
.

"आशा" जोकि जीवन का आधार भी है और सकारात्मकता का प्रतीक भी, दरअसल मात्र एक शब्द न होकर एक बहु-आयामी विषय है जिसकी व्याख्या असंख्य तरीकों से की जा सकती है | अत: इस शब्द के माध्यम से अपनी बात कहने के लिए रचना धर्मियों के लिए एक बहुत बड़ा कैनवास उपलब्ध करवाया गया है | तो आईए वर्ष २०११ के अंतिम "ओबीओ लाईव महा उत्सव" में, उठाइए अपनी कलम और रच डालिये कोई शाहकार रचना | मित्रो, बात बेशक छोटी कहें मगर वो बात गंभीर घाव करने में सक्षम हो तो आनंद आ जाए |


महा उत्सव के लिए दिए विषय "आशा" को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है | उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है: 


  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. हास्य कविता
  4. गीत-नवगीत
  5. ग़ज़ल
  6. हाइकु
  7. व्यंग्य काव्य
  8. मुक्तक
  9. छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)

 

 अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन समिति ने यह निर्णय लिया है कि "OBO लाइव महा उत्सव" अंक- १४ में सदस्यगण  आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ   ही प्रस्तुत कर सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |


(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो गुरूवार ८ दिसंबर लगते ही खोल दिया जायेगा )


यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |


"महा उत्सव"  के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

मंच संचालक

धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)

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Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आपकी इस आशा को और जज्बे को सलाम ....

dhanyavad sir ji

भाई रवि गुरु जी ! संतुष्ट करती हुई इस रचना के लिए  मेरा भी सलाम क़ुबूल फरमाएं !

aaj main satwe aasman pe hu ambrish ji dhanyavad

स्वागत है रवि गुरूजी ! सातवें आसमान पर ???......ओ हो हो .....वाह भाई वाह !! जरूर जरूर ...... और ऊपर ???.....:-)))))))))))

hahahahahaha housla badhane ke liye dhanyavad

छोटी सी आशा मगर सुन्दर आशा - बधाई श्री रवि गुरु जी.

dhanyavad sir ji

आशा और विश्वास दोनों साथ है, कलम निश्चय ही प्रकाश बिखेरेगी.सुंदर रचना गुरु जी

गुरु जी, लेखनी को खामोश नहीं रखिये, उसे बोलने दीजिये और कुछ देर में ही बोले और बोले तो एकदम सोलिड, बहुत बढ़िया बधाई आपको |

****************************************                   

                    गीत 
***************************************
आशाएं जीवन में बढती चली जाती हैं 
एक रुके दूजा चलदे रुक नहीं पाती हैं 
आशाएं ........................................
क्या खोया है जग में सबने और क्या पाया है 
चाह लिए यहाँ इंशा भी तो खुद को रुलाया है 
आंसू भी ये गिरकर दिल के दर्द बढाती हैं 
आशाएं ..............................................
कहीं मिला है जग में सबकुछ जो भी जिसने सोचा 
कोई भटकता आस लिए तो मिला है उनको धोका 
अहसास लिए आस की ये ठेस लगाती हैं 
आशाएं .............................................
कभी तो बेटे की खनखन आँगन रोशन हो गया 
तीन पहर जो बीता तो यूँ बेटा खुद में खो गया 
हैं क्या मात-पिता पत्नी याद सताती है 
आशाएं ..............................................
आता  जो बेटा जग में तो गाये लोग बधाई 
बेटी के आने से है पिता की आँख भर आई 
सुत तो कई बार सुता इक बार रुलाती है
आशाएं .............................................. 
विश्वास किया जग में सबनें दिल में आस जगाकर 
अमृत संग विष पीना हुआ कभी तो धोका खाकर 
अपनापन है यहाँ अपनों को छल जाती है 
आशाएं ...............................................
इक लहर तो ख़त्म हुई न दूजी उठ के चल पड़ी है 
आस-निरास की इस भंवर में कितनी नाव खड़ी है 
सफ़र में ऐ माझी किसकी याद सताती है 
आशाएं ................................................
चाँद को ढूढे पागल सूरज सांझ को ढूढे सबेरा 
इक दूजे की आस में कितने करते रहे बसेरा 
कल में आज बिताकर कल की याद सताती है 
आशाएं .................................................
काम क्रोध मद लोभ में आस ने घर बनाया 
ईश पूजन में भी यहाँ तो अपना ठौर जमाया 
निश्छल भाव रहे न प्रभु की दुनिया भाती है 
आशाएं ................................................ 
फिर भी आस बड़ा है जग में जिसपे टिकी है दुनिया 
हैं चलते सब  लोग मगर कुछ एक को पूछे दुनिया  
धन के धन हो रहे अगर तो पास बुलाती है 
आशाएं ...................................................
इक आस करे हम सभी गर बात समझ में आये 
अंत समय हो सुखद यही बस कामना मन में आये 
लिख दिया "रवि" ने जो बात समझ में आती है 
आशाएं .................................................
************************************************
             अतेन्द्र कुमार सिंह "रवि" 
************************************************

आदरणीय ADMIN जी से अनुरोध है कि हमारे गीत के चौथे पैरा में भूलवश 'गए 'हो गया है उसको "गाये" तथा पांचवे पैरा में 'चल' हो गया है उसको "छल" बनाने का कष्ट करें ...

    महति कृपा होगी ........अतेन्द्र कुमार सिंह "रवि" 

अतेन्द्र जी आप के अनुरोध अनुसार वांछित सुधार कर दिया गया है |
एडमिन
2010121001

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