For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ लाइव महोत्सव अंक-56 की समस्त स्वीकृत रचनाओं का संकलन

आदरणीय सुधीजनो,


दिनांक -14जून’ 2015 को सम्पन्न हुए  “ओबीओ लाइव महोत्सव अंक-56” की समस्त स्वीकृत रचनाएँ संकलित कर ली गयी हैं. सद्यः समाप्त हुए इस आयोजन हेतु आमंत्रित रचनाओं के लिए शीर्षक “गर्मी की छुट्टी” था.

 

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस पूर्णतः सफल आयोजन के सभी  प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश यदि किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह ,गयी हो, वह अवश्य सूचित करें.

 

विशेष: जो प्रतिभागी अपनी रचनाओं में संशोधन प्रेषित करना चाहते हैं वो अपनी पूरी संशोधित रचना पुनः प्रेषित करें जिसे मूल रचना से प्रतिस्थापित कर दिया जाएगा 

सादर
डॉ. प्राची सिंह

मंच संचालिका

ओबीओ लाइव महा-उत्सव

******************************************************************************

 

 

आ० सौरभ पाण्डेय जी

गर्मी-छुट्टी (बाल-गीत)*


हम हैं क्या ?.. आज़ाद पखेरू ! 
जबसे गर्मी-छुट्टी आई ! 

नहीं सुबह की कोई खटपट 
विद्यालय जाने की झटपट 
सारा दिन बस धमा चौकड़ी 
चिन्ता अब ना, कोई झंझट !

शरबत आइसक्रीम वनीला 
चुस्की राहत बरफ-मलाई !
हम हैं क्या ? आज़ाद पखेरू.. ! 
जबसे गर्मी-छुट्टी आई ! 

होमवर्क भी कितना सारा !
अपनी मम्मी एक सहारा !!
प्रोजेक्टों का बोझ न कम है 
याद करें तो चढ़ता पारा !!

साथ खेल के गर्मी-छुट्टी --
कितनी--कितनी आफत लाई.
हम हैं क्या ? आज़ाद पखेरू.. ! 
जबसे गर्मी-छुट्टी आई ! 

बहे पसीना जून महीना 
निकले सूरज ताने सीना 
डर से उसके सड़कें सूनी 
अंधड़ लू के, मुश्किल जीना  

तिस पर रह-रह माँ की घुड़की --
’क्यों बाहर हो, करूँ पिटाई..?’
हम हैं क्या ? आज़ाद पखेरू.. ! 
जबसे गर्मी-छुट्टी आई !  
* संशोधित 

******************************************

 

आ० कांता रॉय जी

गर्मी की छुट्टी ( कविता )

ताप तपिश से पिघल रही हूँ
नयनों में जलधार लिए
निर्झर - सा झर झर करता
हवा चेतना लुप्त किये

नयनों में अब आस मिलन की
मिथ्या स्वप्न धूसरित हुए
विलुप्त आँगन की हरियाली
दिन गर्मी के छुट्टीहीन हुए

शून्य हृदय में अब सन्नाटा
कौन आकर कलरव करें
दुनिया की है सैर निराली
घर की गर्मी अब कौन सहे

सुंदर अवकाश और सुंदर बेला
क्यों सुंदर ना राग सुने
बेसुध हो सुख राग में अपने
करूण गाथाएँ कौन सुने

किलकारी गुंजन की आशा
बुढे मन की है अभिलाषा
सुख सपना मन विकल करें
व्यर्थ साँस अब निशब्द चलें

तीखे बोल जो वचन चुभे थे
उसकी चिंता कौन करें
मन सुमन नोंच खोंस कर
पर -पीड़ा चिंतन कौन करें

बुढी हड्डी अब चरमराये
द्वार ना खोले यमराज भी
संतप्त जीवन और संध्या बेला
सुप्त हो सारी व्यथा भी

चिहुँक चिहुँक मन करूणा
सिसक - सिसक आँसू बहे
आँसू धागेे बन जख्म सिले
मन क्रन्दन हो दुर्दिन सहे

स्मृतियाँ अब दिवा स्वप्न सी
ज्वालामयी क्यों जलन करें
जीवन पथ पर प्राण बावली
अब यात्रा समपन्न करें

*********************************************

 

आ० अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी

**गर्मी की छुट्टी में हम सब, नाना के घर जायेंगे।

बेल आम जामुन का मौसम, तोड़ बाग से लायेंगे॥

 

दिखती कहाँ हैं बैल गाड़ियाँ, बड़े शहर की सड़कों पर।

गाँवों में पर मज़ा और है, गाड़ी खूब चलायेंगे॥

 

सूर्योदय से पहले मामा, सब को रोज जगाते हैं।

नदी किनारे लेकर हमको, सूरज बड़ा दिखायेंगे॥

 

सुबह शाम होती है आरती, ज्ञान ध्यान की बातें भी।

आशीर्वाद बड़ों का लेकर, हम प्रसाद फिर पायेंगे॥

 

दही भात में मज़ा ख़ास है, गर्मी में ठंडक पहुँचे।

मामी देगी मीठा सत्तू , नाना भजन सुनायेंगे॥

 

सीधे सरल गाँव के बच्चे, खेलें हम गिल्ली कंचे।

हमें जिताकर खुश हों ऐसे, मित्र कहाँ हम पायेंगे॥

 

छुप्पा- छुप्पी धमा चौकड़ी , पैरावट में खेलेंगे।

मामाजी के साथ नदी में, हम भी खूब नहायेंगे॥

 

रात कहानी परियों वाली, हमें सुनाएगी नानी।

आँगन में हम लेटे- लेटे, तारे गिनते जायेंगे॥

 

जब आएगा वक्त बिदा का, प्यार और बढ़ जाएगा।

माँ नानी की भीगी पलकें, देख मौन हो जायेंगे॥

**संशोधित 

**********************************************************

 

आ० सत्यनारायण सिंह जी

 

छुट्टी गरमी की करे, मनुज भाव संपन्न।

भाव मनुज संपन्न मन, होता नहीं विपन्न।।

होता नहीं विपन्न, गाँठ मन पक्की बांधो।

अवसर को पहचान, लक्ष्य तुम  अपना साधो।।

मस्ती के हर भाव,सुखद यादों की नरमी।

अभिभावक मन बाल, जगाये छुट्टी गरमी।१।

 

बचपन अपना याद कर, पूछ रहा मन आज।

कहाँ खो गया बालपन, उसका सारा साज।।

उसका सारा साज, युगल नयनों में झलके।

पुलकित सारा गात, खुशी के आंसू छलके।।

इस गर्मी में सत्य, हुआ सच मेरा सपना।

खोया सालों साल, पा लिया बचपन अपना।२।

 

**सुधियों की गठरी खुली, मन को मिला सुकून।

जाऊँ मधु-सुधि  डूब मै, यह सर चढा जूनून।।                                         

यह सर चढा जुनून, कहर गर्मी अति ढाये।

लाये गर्मी संग, छुट्टियां मन को भाये।।

नींबू चाय अचार, संग बहु भाये मठरी।

लुभा रही मन आज, खुली सुधियों की गठरी।३।

**संशोधित 

**************************************************

 

आ० विनय कुमार सिंह जी

बचपन के दिन ( बाल गीत )

 

आखिर क्यूँ हम इतने बड़े हो गए 
बचपन के दिन जाने कहाँ खो गए 
वो खेलना जम के आइस पाईस 
गुल्ली डंडा और लट्टू की ख़्वाहिश 
दोपहर में लगती लूडो की बाज़ी
खूब खेलते थे हम चोर सिपाही
खेलते खेलते , हम वहीँ सो गए 
बचपन के दिन जाने कहाँ खो गए 
वो टायर को ले के दोपहर में दौड़ना 
वो घरों के काँच को बेहिचक तोड़ना 
नहाने के लिए था पोखर का पानी 
सुनना नानी से परियों की कहानी 
गर्मियों की छुट्टी के , वो प्यारे पल 
काश मिलता एक बार फिर वो कल 
उन पलों की याद में फिर से रो दिए 
बचपन के दिन जाने कहाँ खो गए !!

**************************************

 

आ० गिरिराज भंडारी जी

अतुकांत -- गर्मी की छुट्टी

 

सूरज ..रोज निकलता है

तभी तो रोशनी मिलती है हम सभी को ,

हर रोज़ , नियत समय में उजाला

इस क्षितिज से उस क्षितिज तक

साथ आवश्यक गर्मी भी

न निकले तो ?

भारी परेशानी में पड़ जायेगी , सारी सृष्टि

ऋतुयें ही खत्म हो जायेंगी सारी

निकलना ही पड़ता है

चाहे कितनी भी थकावट हो

 

ज़िम्मेदार जो है

बिलकुल हम ग़रीबों की तरह है सूरज भी 

जैसे उसे भी रोज़ कमाना और रोज खाना हो

न जायें कमाने तो फाँके निश्चित है

 

कहाँ की बात करते हो भाई !

हम कहाँ मौसमों को जी पाते हैं

मौसम सारे

हमें तो बस मारने ही आते हैं

 

हमें कहाँ छुट्टियाँ गर्मियों की , सर्दियों की  

हम भी अगर आपकी तरह छुट्टियाँ बितायें

काम पर न जायें

तो खुद ही न बीत जायें

 

छोड़िये भी

ये सब अमीरों के चोचले हैं

देर न हो जाये

काम में जाने के लिये

 

बातें तो बातें हैं , होतीं रहेंगी फ़ुर्सत से ,

बातों का क्या ?

वैसे विषय अच्छा है - गर्मी की छुट्टियाँ  ........

***********************************************

 

आ० राजेश कुमारी जी

कुण्डलियाँ

(१)

**छुट्टी गर्मी की शुरू,हुई पढ़ाई बंद|

ताप चढ़ा है मात को ,बालक राज  स्वछन्द||

बालक राज स्वछन्द ,शीश पर चढ़के नाचें|

हिरणों की मानिंद ,भरें दिन रात कुलांचें||

खोल रही माँ द्वार ,बाँध माथे पर पट्टी|

खड़ा ननद परिवार ,मनाने आया छुट्टी||

(२ )

**आई आई छुट्टियाँ ,नाच रहे हैं बाल|

शिमला कुल्लू भर गए, जाते नैनीताल ||

जाते नैनीताल,मिले राहत गर्मी से|

बच्चों ने माँ तात,मनाये हठधर्मी से ||

होगी कब बरसात ,मेघ से आस लगाई|

घूमें तब तक मॉल,साल में छुट्टी आई||

(३)

छुट्टी गर्मी की शुरू ,मुझे पँहुचना गाँव|

घर में विपदा आ पड़ी,माँ का टूटा पाँव||

माँ का टूटा पाँव,पिता जी की लाचारी|

बिना दवा ईलाज,कहाँ छोड़े बीमारी||

बढ़े ट्रेन की  चाल ,कराऊँ माँ की पट्टी|

देख फ़सल का हाल, मनाऊँ मैं भी छुट्टी||

**संशोधित 

*****************************************

 

आ० सोमेश कुमार जी


गर्मी की छुट्टियाँ
बुलाते हैं गाँव
पेड़ो की छाँव में
पगदंडी का दाव
गर्मी की छुट्टियाँ
ताल का पानी
कांटे में मछली
औ’ भैंस नहलानी |
गर्मी की छुट्टियाँ
दादा का बाग
कोपड़ टपकना
बीनना भाग-भाग |
गर्मी की छुट्टियाँ
कोयल की टेर
सुग्गे की कुटकुट
चिड़ियों के फेर |
गर्मी की छुट्टियाँ
मिट्टी का घर
बिन पंखे-कूलर
सहाय दोपहर |
गर्मी की छुट्टियाँ
दुआरे पर रात
बाबा का रेडियो
सितारों का साथ |
गर्मी की छुट्टियाँ
पत्ते की फिरकी
शादी का बइना
इमरती बरफी |
गर्मी की छुट्टियाँ
नानी का लाड
मथनी से मस्का
भदेली से माड़ |
गर्मी की छुट्टियाँ
रिश्तों का मिलना
धूलि का हटना
दिलों का खुलना |
गर्मी की छुट्टियाँ
खेतों की माटी
जीवन की थाती
बहुत मन भाती |

*******************************************

 

आ० डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी

 

चंदा मामा सुनो, सुनो अम्बर के तारों 
हुआ ग्रीष्म अवकाश करेंगे मस्ती यारों

हिल–स्टेशन पर आज

आ गए ऊधम  करने

बुद्धि  हुयी  जो  श्रांत

उसी में नव-रस भरने

खडी यहाँ कर मुक्त दिशायें देखो चारों

चंदा मामा सुनो--------------------------

हुई   तप्त   जो   देह

सुशीतल वह हो जाये

निर्झर जल में आप्त  

मुग्ध जो मस्त नहाये

उर्मिल फेनिल नीर सुनो उद्धत फौवारों

चंदा मामा सुनो--------------------------

मह-मह  वनज  प्रसून 

सुरभि से मन भर देते 

मलय   हिमानी   वात

वपुष कम्पित कर देते

अभ्रायित आकाश उठो शाश्वत नक्कारों

चंदा मामा सुनो--------------------------

देवदार   के    विटप

यहाँ सब पंथ किनारे

नील-झील भी सुभग

लहर  झिलकोरें मारे

आ जाओ सब संग  बाल जग के उजियारों

चंदा मामा सुनो--------------------------

देख  प्रकृति  सौन्दर्य

सहज संसृति में डूबे 

मिली हृदय को शांति

पढ़ाई   से   थे  ऊबे

कर्म करे आह्वान देश के दीप्त सितारों

चंदा मामा सुनो, सुनो अम्बर के तारों

*******************************************

 

आ० शशि बंसल जी

गर्मी की छुट्टी ( कविता )

हुई शुरू जो गर्मी की छुट्टी ,
खुश हुआ मुन्नू, मुन्नी है सिसकी ।
उमर एक दोनों की, अलग है सख़्ती ।
मुन्नू पाता ढेर आजादी और मिठाई ,
मुन्नी की तो जां पर बन आई ।
मुन्नू खेलता गलियों में गुल्ली-कंचे,
मुन्नी भरी दोपहरिया रोटी बेले ।
मुन्नू करता दिन- रैन सपाटे ,
मुन्नी खुले आँगन को तरसे ।
आ जाएँ गर मेहमान, शेखी बघारे मुन्नू ,
नई-नई डिश बना , ओवरटाइम करे मुन्नी ।
एक उम्र,एक चाह , अभिलाषा एक,
एक करे मस्ती, दूजी सहेजे गृहस्थी ।
सिलाई , कड़ाई , बिनाई अनगिनत ,
आदेशों से कुढ़ती मुन्नी ।
फर्क देख बच्चे-बच्चे में कहती मुन्नी,
इससे तो अच्छी स्कुल की घंटी मम्मी ।

**********************************************

 

आ० अरुण कुमार निगम जी

बाल-गीत

 

गर्मी की  छुट्टी  न्यारी सी

लगती थी  हमको प्यारी सी

मामा  जी  लेने    आते थे

ननिहाल  हमें  ले  जाते थे

मामा का  गाँव  निराला सा

मानों   चंदा  के  हाला सा

दो माह  वहाँ  हम रहते थे

उन्मुक्त  पवन से  बहते थे

हम नदिया तट पर जाते थे

हर  रोज  नहा कर आते थे

थी  एक  वहीं  पर अमरैया

हम  करते  थे  ता ता थैया

कोयलिया  गीत  सुनाती थी

पर  नजर नहीं वह आती थी

हम  आम  तोड़ कर लाते थे

फिर  बैठ बाँट कर  खाते थे

गौरैया  चूं – चूं  करती  थी

हम सबके मन को हरती थी

जब  सुबह  रहे मौसम ठंडा

खेला  करते  गिल्ली  डंडा

दोपहर  फैलता    सन्नाटा

कूटा  करते  इमली – लाटा

जैसे  ही  थोड़ी  धूप  ढली 

हम सब बन जाते थे तितली

वह  धमा-चौकड़ी  धूम-धाम

हर  शाम  बड़ी  रंगीन शाम

ये  खेलकूद  जब  थमते थे

सब  रामायण  में  रमते थे

फिर  नाना  लेकर  जाते थे

नित  हाथ - पैर धुलवाते थे

नानी  जी  देती  थी  खाना

कहती थी अब तुम सो जाना

फिर  गाती  लोरी  नानी थी

बचपन  की  यही कहानी थी

अब  नाना  है  ना  नानी है

ना  गरमी  छुट्टी  आनी  है

बीता  बचपन  कब  आना है

यादों  का   एक   खजाना है

***************************************

 

आ० अशोक कुमार रक्ताले जी

कुण्डलिया

 

लायी है मुश्किल नयी, गर्मी अबकी बार |

साली-साढू आ रहे, पूरा है परिवार ||

पूरा है परिवार, चार हैं बच्चे नटखट,

शैतानों के बाप, करेंगे दिनभर खटपट,

हमको तो इसबार, नहीं ये छुट्टी भायी,

जो गर्मी के साथ, मुसीबत ढेरों लायी ||

 

 

कच्चे आमों से लदा, छोड़ चले हम झाड |

गर्मी की छुट्टी लगी, बच्चे चाहें लाड ||

बच्चे चाहें लाड, मिले नाना-नानी से,

चले सजन ससुराल, रहें क्यों अभिमानी से,

शैतानी दो मास, करेंगे अब तो बच्चे,

पक जाने तक आम, छोड़ आये जो कच्चे ||

******************************************

 

आ० सरिता भाटिया जी

| कुण्डलिया |


नाना नानी पूछते, बेटी कैसे बाल  ?
गर्मी की छुट्टी हुई ,पहुँच गए ननिहाल
पहुँच गए ननिहाल ,रहे नाती या नाता
किताबें सभी छोड़ ,खेल कूद वहाँ भाता 
मामा मामी देख ,करें वो आनाकानी 
बच्चों पर सब वार, हुए खुश नाना नानी ।।

गर्मी की छुट्टी हुई , बच्चे हुए निहाल 
बच्चे औ' माता पिता ,खुश रहते हर हाल ।
खुश रहते हर हाल ,लगे गाली भी प्यारी
बचपन की मुस्कान ,सभी को लगती न्यारी 
सबसे मिलते रोज ,नहीं करते कभी कुट्टी
चले घूमने देश ,हुई गर्मी की छुट्टी ।।

गरमी की छुट्टी  मिली ,जाना कहाँ सवाल
बच्चे औ' माता पिता , पहुँचे नैनीताल ।
पहुँचे नैनीताल ,वहाँ का मौसम ठंडा 
कुछ दिन का आराम ,समझ ना आये फंडा 
उठी घटा घनघोर ,हुई पारे में नरमी 
लौटे अपने गेह ,वही  है फिर से गरमी ।।

****************************************************

Views: 3127

Reply to This

Replies to This Discussion

नमस्कार आ० राजेश जी 

बहुत सुन्दर कुण्डलिया छंद कहे हों आपने गर्मी की छुट्टी पर.. बहुत बहुत बधाई

आई आई छुट्टियाँ ,नाच रहे हैं बाल|

शिमला कुल्लू भर गए, जाते हैं नैनीताल ||............सम चरण की मात्रा बढ़ रही है 

जाते हैं नैनीताल,मिले राहत गर्मी से|...................विषम चरण की मात्रा बढ़ रही है 

बच्चों ने माँ तात,मनाये हठधर्मी से ||

होगा कब हिमपात ,मेघ से आस लगाई|.............'होगा कब हिमपात' के स्थान पर 'होगी कब बरसात' करना क्या ज्यादा उचित नहीं होगा, गर्मियों के महीनों में तो इन स्थानों पर भी हिमपात नहीं होता.. (सुझाव मात्र)

घूमें तब तक मॉल,साल में छुट्टी आई||

ओह्ह  दुबारा गलती --जाते हैं नैनीताल --ये हैं कहाँ से आ गया फिर :)))

इस हैं को निकाल दीजिये प्लीज 

आपका सुझाव दुरुस्त है आप नैनीताल से हैं तो आपसे ज्यादा कौन जानता है कि हिमपात होता है या नहीं  चलिए हिमपात के स्थान पर बरसात ही कर दीजिये 

बहुत बहुत आभार आपका 

आपने सदाशयता के साथ सुझावों को मान दिया आ० राजेश जी आपका आभार 

वैसे मैं हल्द्वानी (प्लेन्स) से हूँ... पहाडी इलाका तो देहरादून भी उतना ही माना जाता है :))))

आपके द्वारा निवेदित संशोधन कर दिए गए हैं 

सादर.

मंच  संचालिका  आदरणीया डॉ. प्राची सिंह  जी  “ओबीओ लाइव महोत्सव अंक-56” की सफलता के  लिए  हार्दिक बधाई एवं रचनाओं  के  संकलन  के  लिए  बहुत-बहुत  आभार.सादर.

धन्यवाद आ० अशोक कुमार रक्ताले जी 

तनिक विलम्ब से आपके संकलन पर आ रहा हूँ. इस कार्य-सम्पादन केलिए हार्दिक बधाई आदरणीया.
विश्वास है, अब ब्राउजर सुचारू रूप से कार्य कर रहा होगा. कभी-कभी कूकीज के कारण साइट्स ब्लॉक हो जाती हैं.
शुभेच्छाएँ

धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी 

इस बार आश्चर्यजनक रूप से आयोजन के दूसरे दिन मेरे सिस्टम पर ओबीओ खुल ही नहीं रहा था.. फिर दो दिन और परेशान रही. मेरी परेशानी ये थी की बाकी सब साईट खुल रही हैं, ओबीओ से कैसा बैर...सिस्टम का. आपके निर्देशानुसार कुकीज़ भी डिलीट कर दीं थी, फिर दो दिन बाद अचानक ही ओबीओ खुल गया तो तुरंत संकलन को अंजाम दिया. तब न तो मोजेला फायर फॉक्स और गूगल क्रोम पर और ना ही इंटरनेट एक्स्प्लोरर पर ओबीओ खुल रहा था 

फिलहाल तो सभी साइट्स खुल रही हैं. 

नेट देवता की कृपा बनी रहे 

//फिलहाल तो सभी साइट्स खुल रही हैं. //

छन्दोत्सव अब बस सिर पर है.. और कुल्लम छन्द  २०  !  .. हम इंतज़ार करेंगे .. ..

:-)))) 

आपका आदेश सर आँखों पर आदरणीय :)))

आदरणीया प्राची जी , एक और सफल  महोत्सव के लिये आपको और मंच को हार्दिक बधाइयाँ ॥

// ओपन बुक्स आन लाइन नहीं खुल रहा है //

कभी कभी साइट का सर्वर  ओवेर लोडिंग की वजस से  साइट विषेश को खोल नहीं पाता , क्योंकि एक सर्व्र्र से बहुत सी साइटें खुलतीं है , ये मेरे साथ कई बार हुआ है  ॥ आप ये करें  --

अगर ब्राउज़र मोजिला फायर फाक्स है तो  -----  टूल्स -> एड ओन --> गेट एड ओन -- सर्च बाक्स मे -- इमेज ब्लाकर   , लिख कर सर्च करें , सामने आने पर इंस्टाल करने को कहें । यह एड ओन आपको एक बटन ब्राउज़र मे देगा -- जिससे आप ज़रूरत पड़ने पर साइट के सारे इमेज दिखना बन्द कर सकते हैं । इमेज ही जादा पावर लेते हैं खुलते समय , अब आपको केवल लिखे हुये ही दिखाई देंगे ।

अगर आपके पस बाउज़र क्रोम है , तो  इसी साफ्ट वेयर को  एक्सटेंसन  नाम से खोजियेगा --  ब्राउजर के राइट साइड मे तीन आड़ी लाइनें होन्गी  - > मोर टूल्स --.> एक्स्टेंसन --- सर्च  --- इमेज ब्लोक । बस

जब भी ब्राउज़ धीमा लगे इमेज ब्लोक बटन दबा कर रिफ्रेश कर दीजिये । सारे इमेज ब्लोक हो जायेंगे

एड आन सुरक्षित हैं , क्योंकि स्वयम ब्राउजर देते हैं ॥

आदरणीया प्राचीजी ..

मेरी प्रस्तुति को निम्नलिखित संशोधित स्वरूप से बदल दी जाये..

हम हैं क्या ?.. आज़ाद पखेरू !
जबसे गर्मी-छुट्टी आई !

नहीं सुबह की कोई खटपट
विद्यालय जाने की झटपट
सारा दिन बस धमा चौकड़ी
चिन्ता अब ना, कोई झंझट !

शरबत आइसक्रीम वनीला
चुस्की राहत बरफ-मलाई !
हम हैं क्या ? आज़ाद पखेरू.. !
जबसे गर्मी-छुट्टी आई !

होमवर्क भी कितना सारा !
अपनी मम्मी एक सहारा !!
प्रोजेक्टों का बोझ न कम है
याद करें तो चढ़ता पारा !!

साथ खेल के गर्मी-छुट्टी --
कितनी--कितनी आफत लाई.
हम हैं क्या ? आज़ाद पखेरू.. !
जबसे गर्मी-छुट्टी आई !

बहे पसीना जून महीना
निकले सूरज ताने सीना
डर से उसके सड़कें सूनी
अंधड़ लू के, मुश्किल जीना  

तिस पर रह-रह माँ की घुड़की --
’क्यों बाहर हो, करूँ पिटाई..?’
हम हैं क्या ? आज़ाद पखेरू.. !
जबसे गर्मी-छुट्टी आई !  


सादर

आपकी प्रस्तुति को संशोधित  स्वरुप से बदल दिया गया है आदरणीय 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"ओह!  सहमत एवं संशोधित  सर हार्दिक आभार "
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"जी, सहमत हूं रचना के संबंध में।"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"शुक्रिया। लेखनी जब चल जाती है तो 'भय' भूल जाती है, भावों को शाब्दिक करती जाती है‌।…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, नए अंदाज़ की ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके संकल्प और आपकी सहमति का स्वागत है, आदरणीय रवि भाईजी.  ओबीओ अपने पुराने वरिष्ठ सदस्यों की…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपका साहित्यिक नजरिया, आदरणीय नीलेश जी, अत्यंत उदार है. आपके संकल्प का मैं अनुमोदन करता हूँ. मैं…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"जी, आदरणीय अशोक भाईजी अशोभनीय नहीं, ऐसे संवादों के लिए घिनौना शब्द सही होगा. "
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सुशील सरना जी, इन दोहों के लिए हार्दिक बधाई.  आपने इश्क के दरिया में जोरदार छलांग लगायी…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"माननीय मंच एवं आदरणीय टीम प्रबंधन आदाब।  विगत तरही मुशायरा के दूसरे दिन निजी कारणों से यद्यपि…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"आप पहले दोहे के विषम चरण को दुरुस्त कर लें, आदरणीय सुशील सरना जी.   "
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service