For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव महा-उत्सव" अंक ८ में सम्मिलित सभी रचनाएँ

No Description

Views: 811

Reply to This

Replies to This Discussion

सारी रचनाएँ एक ही जगह पढ़ने को मिल गईं। योगराज जी का इस श्रम साध्य कार्य के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

आदरणीय प्रधान संपादक जी, ओ बी ओ के नए सदस्य जनाब इमरान खान ने कल रात्रि १०.५८   पर यह पोस्ट मुझे इ मेल पर भेजा था किन्तु किसी कारण वश यह स्पैम मेल में चला गया था और मैं देख न सका , फलस्वरूप "महा उत्सव" में शामिल न हो सका, अनुरोध है की कृपया इसे भी इस पोस्ट में शामिल कर ले |

 

ये गीत मुझको ही गुनगुनाने नहीं आते,
हाँ मुझे ही रिश्ते निभाने नहीं आते

प्यारी ज़मी को मैंने सींचा था खून से,
हर एक बीज बोया था मैंने जूनून से

इक रोज़ भी न मैं तो आराम कर सका,
इक रात भी न मैं तो सोया सुकून से

अपनाने के हर शख्स को चक्कर मेँ पड़ गया
उम्दा बड़ा नसीब था देखो बिगड़ गया

फस्ले ताल्लुक पे फूल लगे, दाने नहीं आते,
हाँ मुझे ही रिश्ते निभाने नहीं आते

अरबाबे जिगर, चलती रह पे मुझे छोड़ गये
गुल जितने हसरतों के थे सब तोड़ गये

ज़र्द सूखे हुये पत्ते सा बदन है मुझ पर
मेरा क़तरा ए लहू तक भी वो निचोड़ गये

आँखोँ मेँ नमी है धड़कन भी थमी है
हर शख्स कह रहा मुझमें ही कमी है..

मुझको दस्ते हुनर आगे फैलाने नही आते
हाँ मुझे ही रिश्ते निभाने नहीं आते

ये गीत मुझको ही गुनगुनाने नहीं आते,
हाँ मुझे ही रिश्ते निभाने नहीं आते

जनाब admin साहब मैंने कल ही OBO  ज्वाइन की है, मैं न तो कोई शायर हूँ और न ही लिखने की  बुनियादी जानकारी ही मुझे है, बस जाने कहा से ये शौक आ गया और मै कुछ तुकबंदी सजाने लगा.... मुझे कल ही इस महा उत्सव के बारे मै मेल आया था, और बहुत ही कम वक़्त था मेरे पास, अपने मेरी ये ग़ज़ल यहाँ पोस्ट करके मुझे जो ख़ुशी दी है मै अल्फाज़ मै बयां नहीं कर सकता, मुझे बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि अब ये ग़ज़ल महा उत्सव मैं शामिल हो पायेगी .. आपका तहे दिल से शुक्रिया ..

इमरान साहिब आपकी रचना वाकई खुबसूरत है, बहुत ही सुंदर ख्यालात है किन्तु यह ग़ज़ल की कैटोगरी में नहीं है, इसे नज्म कही जा सकती है, साथ में यह भी कहना है कि आप में वो प्रतिभा है जिससे आप ग़ज़ल भी कह सकते है, ग़ज़ल के लिए महत्वपूर्ण ख्यालात आप के पास है बस कुछ ग़ज़ल कि आधार जानकारी कि जरूरत है और उस जरूरत को पूरा करने हेतु OBO है | 

आप नीचे दिए लिंक पर जाकर OBO पर संचालित आदरणीय तिलक सर की ग़ज़ल की कक्षा ज्वाइन कर ले और सभी पाठों का अध्ययन कर ले | 

http://www.openbooksonline.com/group/kaksha

हार्दिक धन्यवाद् गणेश जी, मैं समझ तो रहा था के ये ग़ज़ल नहीं है लेकिन सौरभ जी ने इसे ग़ज़ल कहा तो मैंने समझा ग़ज़ल ही होगी.... धन्यवाद् अपने मेरी इस्लाह की ... बहुत दिनों से मुझे उस्ताद की ज़रुरत भी थी मगर मसरूफियत और संकोच के कारन मैं रियल लाइफ मैं ये सब न कर सका अब लगता है के अपने अरमान मैं निकल ही लूँगा मैंने ओपन बुक ज्वाइन करते ही सबसे पहले उस कक्षा को ज्वाइन किया था.. अब वहां मुझे लगता है के मैं काफी इल्म हासिल करूंगा
आदरणीय योगराज भाईसाहब, इस महती और श्रम साध्य कार्य के सफल सम्पादन के लिए पाठक-वर्ग आपका दिल से शुक्रगुज़ार है.
इमरान खान भाई को अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद.
सौरभ भाई, मेरे लिए बाईस ए मसर्रत है के आपको मेरी ग़ज़ल अच्छी लगी, बहुत शुक्रिया आपका....

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a discussion

पटल पर सदस्य-विशेष का भाषयी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178 के आयोजन के क्रम में विषय से परे कुछ ऐसे बिन्दुओं को लेकर हुई…See More
41 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, यक़ीन मानिए मैं उन लोगों में से कतई नहीं जिन पर आपकी  धौंस चल जाती हो।  मुझसे…"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय मैं नाम नहीं लूँगा पर कई ओबीओ के सदस्य हैं जो इस्लाह  और अपनी शंकाओं के समाधान हेतु…"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय  बात ऐसी है ना तो ओबीओ मुझे सैलेरी देता है ना समर सर को। हम यहाँ सेवा भाव से जुड़े हुए…"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय, वैसे तो मैं एक्सप्लेनेशन नहीं देता पर मैं ना तो हिंदी का पक्षधर हूँ न उर्दू का। मेरा…"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, मैंने ओबीओ के सारे आयोजन पढ़ें हैं और ब्लॉग भी । आपके बेकार के कुतर्क और मुँहज़ोरी भी…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन, ' रिया' जी,अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया आपने, विद्वत जनों के सुझावों पर ध्यान दीजिएगा,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन,  'रिया' जी, अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया, आपने ।लेकिन विद्वत जनों के सुझाव अमूल्य…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' ग़ज़ल का आपका प्रयास अच्छा ही कहा जाएगा, बंधु! वैसे आदरणीय…"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई "
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदाब, 'अमीर' साहब,  खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने ! और, हाँ, तीखा व्यंग भी, जो बहुत ज़रूरी…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service