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ओबीओ लाइव तरही मुशायरा अंक २८ में सम्मिलित ग़ज़लें (चिन्हित मिसरों सहित)

(श्री अशफाक अली गुलशन खैराबादी जी)

फूलों भरा गुलशन है ख़ुशबू भी सुहानी है l
चम्पा है चमेली है क्या रात की रानी है ll

ठहरेगा कहाँ जिसकी फितरत में रवानी है l
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है ll

मिलने को तड़पती है दिन-रात समंदर से l
रोके से रुकी है कब दरिया की रवानी है ll

घटता है न बढ़ता है ये दर्द मेरे दिल का l
महबूब की ये मेरे क्या ख़ूब निशानी है ll

इक झूठ के ख़ातिर वो सौ झूठ कहे शायद l
सच बोलने वाले के लफ्जों में रवानी है ll

पगली है जो लेती है वो नाम तेरा हर दम l
एक तू भी दीवाना है एक वो भी दीवानी है ll

अल्लाह इनायत की "गुलशन" पे नज़र रखना l
पुरखों की विरासत है बस साख बचानी है ll
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(श्री मोहम्मद नायाब जी)

भारत के मेरे अन्दर खुशबु है निशानी है l
उर्दू है ज़ुबां मेरी भाषा मेरी बानी है ll

ये दौरे गरानी भी क्या दौर-ए-गरानी है l
है खून जहाँ सस्ता महंगा वहीं पानी है ll

साली भी हैं साले भी गोरे भी हैं काले भी l
अहबाब सभी खुश हैं बारात जो आनी है ll

दीवार कोई रोके इसको ये कहाँ मुमकिन l
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है ll

"नायाब" तुम्हें भूलें मुमकिन ही नही हमसे l
जो तुमने अता की है क्या ख़ूब निशानी है ll
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श्री शरीफ अहमद कादरी हसरत जी

हर दिल में मुहब्बत की अब शमअ जलानी हे
अब हमको तअस्सुब की ये आग बुझानी हे

नफरत से न तुम देखो हमको ऐ जहाँ वालों
हमसे ही तो उल्फत के दरिया में रवानी हे

हे उसके ही हाथों में इज्ज़त भी ओ ज़िल्लत भी
ये कौल नहीं मेरा आयाते कुरानी हे

क्या खूब अजूबा हे देखो तो जहाँ वालों
पत्थर की ईमारत भी उल्फत की निशानी हे

अश्कों के तलातुम को रोकोगे भला केसे
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी हे

इस ग़म का सबब क्या हे लो तुम को बताता हूँ
हसरत के भी सीने में इक याद पुरानी हे
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(श्री सअफत खैराबादी जी)

नफरत की मुझे यारो दीवार गिरानी है
हर दिल में मोहब्बत की इक शम्मा जलानी है

ये ज़ुल्म भला कब तक सहते ही रहेंगे हम
अब अमन की ए लोगो आवाज़ उठानी है

लेती हैं जफ़ाएं  अब दिल में  तेरे  अंगडाई
आँखों का तेरी शायद सब मर गया पानी है

ये सोजो खलिश हर दम ये दर्द-ए-जिगर पैहम
जो दी है मुझे तूने उल्फत की निशानी है

अब इश्क की राहों में चलना भी हुआ मुश्किल
किस्मत में तो सहरा की बस खाक उड़ानी है

हम कैसे करें आखिर ए दोस्त यकीं तुझ पर
देना ही दगा तेरी आदत जो पुरानी  है

इतरा के तेरा चलना मगरूर तेरा होना
ढल जाएगी ये तेरी दो दिन की जवानी है

तू लाख करे कोशिश रोके से नही रुकता
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है

गम लाख शफाअत हों हम शौक़ से सह लेंगे
बस प्यार मोहब्बत में ये उम्र बितानी है
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(श्री अब्दुल लतीफ़ खान जी)

कल शोख़ तबस्सुम था आज आँख में पानी है |
इक वो भी कहानी थी इक ये भी कहानी है ||

क़ातिल से तो मुंसिफ़ की पहचान पुरानी है |
क्या पाए सज़ा मुजरिम सब खर्च ज़ुबानी है ||

दस्तारे-अना रख दूँ दौलत के लिए गिरवी |
मुमकिन ही नहीं मुझ से पुरखों की निशानी है ||

माँ बाप की मजबूरी ऐ काश कोई समझे |
कमज़ोर बुढ़ापा है मुँहज़ोर जवानी है ||

ये अम्नो-अमाँ के सब दावे तो हैं बेमानी |
हर एक ज़ुबाँ पर जब इक तल्ख़ बयानी है ||

गिरदाबे–बला से अब महफ़ूज़ रहें कैसे |
पतवार शिकस्ता है कश्ती भी पुरानी है ||

तह्ज़ीबो–तमद्दुन के सब भूल गए आदाब |
इस दौरे–तरक़्क़ी की क्या ख़ूब निशानी है ||

दो मुल्क न मिल पायें सब चाल सियासी है |
इस सिम्त है मनमोहन उस सिम्त गिलानी है ||

इक माँ के ही जाये हैं दोनों ही मगर यारों |
इक हिन्दुस्तानी है इक पाकिस्तानी है ||

दरिया-ए-मोहब्बत को सरहद में न बांधो तुम |
ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है||

परवान चढ़े कैसे ये प्यार ‘लतीफ़’ अपना |
दौलत की मुहब्बत से रंजिश ही पुरानी है ||

©लतीफ़ ख़ान (दल्ली राजहरा)
मुंसिफ़ = न्याय करने वाला. दस्तार = पगड़ी. तल्ख़ बयानी = कटु संवाद.
गिरदाबे-बला = संकट का भंवर. तह्ज़ीबो-तमद्दुन = संस्कार और संस्कृति.
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(श्री अरविन्द कुमार जी)

छोटी सी उमर में ही वो दिखती सयानी है,
नाजों में कहाँ पलती, रोटी जो कमानी है.
 
जो लाडली थी इक दिन, इक नूर सी छलकी थी,
अब मर्द के पहलू की बेजा सी कहानी है.
 
आँसू को हथेली में तुम रोक न पाओगे,
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है.
 
इस मुल्क के लुटने की ये दो ही वजह ठहरी,
लाचार बुढ़ापा है, खामोश जवानी है.
 
सूबों से मुहब्बत ना इस मुल्क की जाँ ले ले,
उठ जाओ, हमें चलके दीवार गिरानी है.
 
पेड़ों पे लिखी आयत अब वैसी नहीं दिखती,
उन सब्ज़ खरोंचों पे, अब सुर्ख निशानी है.
 
उलझन है कि रिश्तों का मैं कौन सिरा थामूं,
मजबूर भी हूँ आखिर, हर रस्म निभानी है.
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(श्री तिलक राज कपूर जी)

उलझन की नहीं पूछो, घर-घर की कहानी है
कुछ जग से छुपानी है, कुछ जग को सुनानी है।

ज़ह्राब से मज्‍़हब की मिट्टी ये बचानी है
खुश्‍बू-ए-मुहब्‍बत की इक पौध लगानी है।

(ज़ह्राब ज़ह्र आब: विष जैसा पानी)

सुरसा सी ज़रूरत हैं बेटे की मगर बेटी
चुपचाप ही रहती है कितनी वो सयानी है।

मानिन्‍द परिंदों के मिलते हैं बिछुड़ते हैं
जन्‍मों की कसम खाना, किस्सा या कहानी है ।

चर्चा न करूँ क्‍यूँ कर दुनिया से मुहब्‍बत की   
सच्‍ची है मुहब्‍बत तो क्‍या बात छुपानी है।

जाते हुए लम्‍हों का भरपूर मज़ा ले लो
इक बार गयी रुत ये कब लौट के आनी है।

अपने ही किनारों से मंजि़ल का पता लेगा
खुद राह बना लेगा, बहता हुआ पानी है।
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(श्री नीलांश जी)

दुनिया ने वफाओं पर बन्दूक क्यों तानी है
कहते थे की वफायें रब की ही निशानी है

रफ़्तार-ए-ज़िन्दगी की कैसी ये कहानी है
साँसों की हकीकत है धड़कन कि जबानी है

इक बीज वो लाया है कि शाख बनायेगा
मुट्ठी भर मिटटी है ,चुल्लू भर पानी है

मशगूल हैं जाने किस मश्गले में यारों
इक पूल बनाना है दीवार गिरानी है

ज्यादा नहीं माँगा है हमने कभी खुदा से
अब ओस को ही चख के ,प्यास बुझानी है

पत्थर में ढूंढते हैं रब की शक्ल-ओ-सीरत
फजूल इबादत है मरहूम जवानी है

उसने किसी तोहफे से मुझको नहीं नवाज़ा
नज्मो की मुहब्बत है ग़ज़लों की निशानी है

लहरों से नाखुदा का राब्ता है कैसा
कश्ती भी बचानी है रोटी भी कमानी है

इक याद की खुश्बू से घर महक गया है
क्या इत्र की सीसी है क्या रात की रानी है

रूह से काग़ज़ तक अपना कलम कहेगा
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है

इस ज़मीन पे और उस नील आसमां तक
इक "मीर" का ज़ज्बा है "ग़ालिब" की बयानी है
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(श्रीमती राजेश कुमारी जी)

(1)

वो रात का सपना था या सच की कहानी है
जो नज्म सुनी हमने पत्थर की जुबानी है

अब जुल्म न हो कोई आवाज़ उठानी है
नफ़रत की मुहब्बत से दीवार गिरानी है

चाहे तो घनी पलकों का बाँध बना लो तुम
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है

हर वक़्त सिसकता है कूआं जलियाँ वाला
वो मिट न सकी अबतक जुल्मों की निशानी है

सीमा पे खड़े वीरों ने पाक़ शपथ खाई
इक रोज वतन की खातिर जान लुटानी है

बेदर्द जमाने में किसने ये कभी सोचा
अनजान मुसाफिर की वो कश्ती बचानी है

डोरी की नज़ाकत को वो कैसे भला जाने
कनकौवे उड़ाने की आदत जो पुरानी है

कमजोर इमारत की दीवार नहीं टिकती
ऐ "राज"अभी फिर से इक नींव बनानी है
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(2)

माथे पे लिखी उसके ग़ुरबत की कहानी है
पलकों में छुपा उसके हालात का पानी है

महफ़िल में रईसों की वो कैसे चला जाए
टूटे हुए जूतें हैं अचकन भी पुरानी है

वो सोच रहा घर का अब और क्या बेचूं
बेटी की हथेली पे हल्दी जो लगानी है

निर्धन के मुकद्दर के चश्मे की किसे चिंता
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है

निर्धन की कहो किस्मत में दीप जलें कैसे
ना तेल है दीये में ना खान न पानी है

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(श्री सौरभ पाण्डेय जी)

अंदाज़ में तो माहिर पर आँख बेपानी है ।
अब दौरेसियासत की अनिवार्य निशानी है ॥१॥

शफ़्फ़ाक़ लिबासों में हर स्याह इरादे को
ये मुल्क लगे चौपड़, बस गोट सजानी है ॥२॥

बच्चों की नसीबी पर होती है बहस हरसू
गोदाम भरे सड़ते, बिकता हुआ पानी है ॥३॥

है शह्र ग़ज़ब का ये दिल्ली जिसे कहते हैं-
रंगीन खुली छतरी, कमज़ोर कमानी है ॥४॥

उम्मीद भरे दिल को समझाऊँ मग़र कैसे
लमहा जो बुझा सा है खुद मेरी कहानी है ॥५॥

ज़न्नत के नज़ारे भी कब इसके मुकाबिल हैं
दीखे किसी गोदी में बिटिया, जो सुलानी है ॥६॥

मत ठोस इरादों का ये ख़्वाब जवां छेड़ो
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है ॥७॥

कुछ तुम न सुना पाये.. कुछ मैं न बता पाया..
ये टीस लिये ’सौरभ’ अब उम्र निभानी है ॥८॥
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(अरुण कुमार निगम जी)
(१)
होठों पे बंद ताले , आँखों में वीरानी है 

कैसे कहें कि यारों , ये शाम सुहानी है |

कैसी हवा चली है, कैसा ये वक़्त आया
बचपन तरस रहा है,सदमे में जवानी है |

मिश्री सी बात करके, लूटा यकीन मेरा 
सोचो तो इक तरह से, ये जहरखुरानी है |


आवाज की दुनियाँ का, बेताज बादशाह वो 
प्यारा सा नाम उनका , अमीन सयानी है |

तुम तो फकत रहट हो,बस कर्म करते जाओ
खुद राह बना लेगा, बहता हुआ पानी है |
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(2)
रोटी भी पकानी है, मेहंदी भी रचानी है
जब वक़्त पड़े हाथों ,तलवार उठानी है |1|


बन पद्मिनी जली हूँ , दुर्गावती बनी हूँ
दुनियाँ ये कह रही है, तू दुर्गा भवानी है |2|


लहरा चुकी हूँ परचम,लेकिन न बात भूली
रस्मो रिवाज वाली ,बातें भी निभानी है |3|


इस देश पे लुटाए , हैं प्राण जवानी में
इतिहास गर्व करता,ये झाँसी की रानी है |4|


परिवार को सम्भाला,बच्चों को है सँवारा
हर सफलता के पीछे, मेरी ही कहानी है |5|


प्रेम बेलि बोई ,विष का पिया है प्याला
कहते हैं लोग मीरा,कान्हा की दीवानी है |6|


यमराज से मिली मैं , सिंदूर मांग लाई
मैं हूँ तपस्विनी जो, कैलाश की रानी है |7|


अब गर्भ में न मारो,दुनियाँ के ठेकेदारों
कन्या नहीं जहाँ पर,उस ठौर वीरानी है |8|


तुम वंश को सम्हालो, गंगा की फिक्र छोड़ो
खुद राह बना लेगा, बहता हुआ पानी है |9|

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(श्री अनिल चौधरी समीर जी)

(1)
मेरे शहर की सड़कों की इतनी कहानी है!

बरसात का मौसम है, गड्ढा है औ पानी है!!
 
मिल जाए अकेले मे तो उससे मिलूँ खुलकर,
क्यूँ दिल मे बसा है वो ये बात बतानी है!
 
आशिक है नाम उसका रस्ता न बताओ तुम,
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है!
 
जब बोल कभी कुछ भी तब तोल के बोला कर,
इक बार गयी इज्ज़त तो फिर नहीं आनी है!
 
माना कि हँसीनो मे है नाम तेरा चर्चित,
लेकिन गुमान कैसा दो दिन की जवानी है!
 
महबूब सुनो मेरी दौलत तुम्हारी चाहत,
जितनी मिलेगी मुझको तुमपर ही लुटानी है!
 
मेरे सनम की यारों पहचान है इतनी सी,
वो प्यार की देवी है, वो रूप की रानी है!
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(2)

जो दिल कि कहानी है, अब होंठ पे लानी है!
जज़्बात कि धारा है, शब्दों में बहानी है!!

आँखों में चमक होना चाहत कि निशानी है!
ताल्लुक न उमर से है, गर दिल में जवानी है!!

नायाब नज़र उसकी, नायाब छुअन उसकी,
नायाब सनम मेरा, दो टूक बयानी है!!

बस एक अदद मेरा है प्यार वही लेकिन,
सौ बार बताने पर वो झूठ ही मानी है!!

लाचार हूँ महफ़िल में आएगा सनम लेकिन,
आदाब नहीं मुम्किन बस आँख मिलानी है!!

तुम रोक सकोगे क्या चाहत कि रवानी को,
खुद राह बना लेगा बहता हु पानी है!!

दुल्हन न कभी लाना तू पैसे के लालच में,
दुल्हन ही तेरी दौलत, ये बात सयानी है!!

कल बाप मरा है बेटा आज पिए दारू,
बेटी कि मगर आँखों में आज भी पानी है!!

भगवान नहीं बनना मुझ जैसे अधर्मी को,
मानव हूँ मैं मानवता की रस्म निभानी है!!
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(श्री उमाशंकर मिश्रा जी)

इक बात राज की है जो सबसे बतानी है
मेहमान है उधारी वापस नहीं जानी है

ज़िंदा ही रहने की है ये ख्वाईसे हमारी
जीते नहीं कभी हम ये बात सयानी है

रिस रिस के रोशनी जिन छिद्रों से आ रही है
बरसात में है डबरा चुहता हुवा छानी है

सच बोलने की आदत के फायदे बहुत हैं
ना याद कभी रखना हर बात जबानी है

पत्थर को काट डाले रफ़्तार की रवानी
खुद राह बना लेगा बहता हुवा पानी है

उड़ता है परिंदों सा मछली सा तैर जाना
भूला जमीं पे चलना इंसा की कहानी है

खुद खुद से हार जाना है शर्मनाक घटना
पर खुद से जीत जाना नुसर्त निशानी है

जंगल में पेड़ सीधा काटा मगर है जाता
जरुरत से ज्यादा सीधा ये बात बेमानी है

हर ओर फेंकता है नजरें इनायतों की
ये उम्र का फ़साना या भूखी जवानी है

नुसर्त = विजय , जीत

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(श्री सतीश मापतपुरी जी)

आँखों से जो छलकता माजी की कहानी है .
मानों तो ये है आंसू ना मानों तो पानी है .
.
मेरी डायरी में बंद है सूखा गुलाब कब से .
जो याद तुम्हारी है जो मेरी जवानी है .

चाहत को बांधती है नादान है ये दुनिया .
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है .

क्यों काटते हो इसको इसको तो बचाना है .
बरगद भले है बुढ़ा पुरखों की निशानी है .

हुस्न के वो वादे जिसे सच समझ लिया मैं.
भोला था मैं भी कितना वो कितनी सयानी है .
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(श्री संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' जी)

हाथों में पड़ा छाला मेह्नत की निशानी है;
मेरा तो मशक़्क़त से रिश्ता ही रूहानी है; (१)

देखी न कभी दुनिया, निकला न कभी घर से,
बेवज्ह तेरा जीना, बेकार जवानी है; (२)

ये होंठ हैं लर्ज़ीदा, लग्ज़िश है बदन में भी,
ख़ामोश अभी तक हो, कुछ बात तो या'नी है; (३)

शानों से मेरे बाज़ू चाहे ये अलग़ कर दो,
ठानी है मैंने, तेरी तस्वीर बनानी है; (४)

ता'मीर हवाई है बुनियाद नहीं कुछ भी,
सरकार का ये वादा बस बात ज़बानी है; (५)

सैलाब की ताक़त का अंदाज़ लगाना क्या,
ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है; (६)

मेरी तो कलम 'वाहिद', माशूक़ है बचपन से,
मैं उसका दीवाना हूँ, वो मेरी दीवानी है; (७)
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(श्री राज़ नवादवी जी)

माना कि गमेगेती सब अशयाएफानी है
सुख-दुःख से बनी सबकी सच्ची ही कहानी है

पढ़ लो कि समझ आये क्या हर्फेनिहानी है
मरकूज़ शिफर में इक बरसों की रवानी है

इकबार गुज़रकर फिर हस्ती नहीं आनी है
पत्थर पे रकम कर लो दरवेश की बानी है

अहसासेनशा देता आगोशेगुमाँ जो है
तासीरेवफ़ा है या तरगीबेजवानी है

जीएंगे भला कैसे खंडहर से जुदा होके
टूटा हुआ काशाना पुरखों की निशानी है

आलम में हुई पैदा हर चीज़ मुहब्बत से
आशिक को बुरा कहना आशुफ्ताबयानी है

दुनिया की कदोकाविश तम्सीलएतखय्युल है
आफ़ाक में पोशीदा गर्दिश की कहानी है

हैरान हुआ आके मैदाने तमद्दुन में
पत्थर हैं सभी आँखें जाने कहाँ पानी है

याँ वाँ का फिक्रेगाफिल अस्नाएज़िक्रेआशिक
गुफ्तारेबलागोई खूबां की निशानी है

समझाएं तुम्हें क्या हम मीज़ानेमुहब्बत में
तुम खुद ही समझ लोगे क्या चीज़ जवानी है

ऐ राज़ बता क्यूँ तू रगबत में हुआ शामिल
अन्फासेइश्तियाकी तो खुद पे गिरानी है

(गमेगेती- सांसारिक दुःख, पीड़ा; अशयाएफानी- नश्वर वस्तुएँ; हर्फेनिहानी- छुपी तहरीर; मरकूज़- केंद्रित; शिफर- शून्य; तासीरेवफ़ा- प्यार आ असर; तरगीबेजवानी- युवावस्था की उत्तेजना; काशाना- घर, झोपड़ी; आशुफ्ताबयानी- अनर्गल प्रलाप; कदोकाविश- भाग दौड; तम्सीलएतखय्युल- विचारों में रचित ड्रामा; आफ़ाक- क्षितिज समूह; पोशीदा- निभृत, छुपा; गर्दिश- कालचक्र; तमद्दुन- संस्कृति, तहजीब; फिक्रेगाफिल- बेसुध चिन्तना; अस्नाएज़िक्रेआशिक- प्रेमी की चर्चा के मध्य; गुफ्तारेबलागोई- बहुत अधिक या शरारत भरी बात करना जैसा कि प्रेयसी करती है; खूबां- सुन्दर स्त्रियाँ; मीज़ानेमुहब्बत- प्रेम की तुला; रगबत- अभिलाषा या चाह; अन्फासेइश्तियाकी- तीव्र लालसा को व्यक्त करती साँसें; गिरानी- भारी, मँहगा)
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(श्रे अविनाश बागडे जी)

जलता हुआ दिया है और रात तूफानी है।
इस हौसले का हमको मिलता नहीं सानी है।


नादानियों के चलते उसको न आजमाओ ,
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है।
.
कदमों को तू बढ़ा ले उम्मीद की डगर पे ,
इक राह तू पकड़ ले मंजिल ही तो पानी है।

हरदम बचा के रखना दुनिया की इस तपन से ,
हरगिज़ न मरने पाए आँखों में जो पानी है।


उस रात में चमकते तारों का जश्न होगा,
जिस रात की ये दहरी गर शाम सुहानी है।
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(योगराज प्रभाकर)

इस देश की हकीकत. की तल्ख़ निशानी है
लाचार यहाँ बचपन, बेज़ार जवानी है

ये बात हकीकत है, वो हूर ईरानी है
है नाम ग़ज़ल जिसका, अब हिंद की रानी है

इस शहर में लोगों के, चेहरों पे कई चेहरे
शैतान बसे अन्दर, अंदाज़ रूहानी है

ये दौर नया कैसा, ये तौर नया कैसा
उनवान हकीकत है, पर सार कहानी है

बारूद बिछा चाहे, चारों ही तरफ मेरे
पर दिल ये कहे धूनी इस जा ही रमानी है

मुमकिन हो अगर तुम भी, कुछ जख्म रफू करना
आखिर तो खुदा को भी ये शक्ल दिखानी है

तरकीब सुझाता है, जो आग बुझाने की
वो आग फरोशी का इस शहर में बानी है

क्या क्या न गंवाया है, इस तिफ्ल ने दुनिया में
नानी, न कहानी है, राजा है न रानी है

पत्थर की अना शायद ये बात नहीं जाने
खुद राह बना लेगा, बहता हुआ पानी है
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(श्रीमती सीमा अग्रवाल जी)

दुनिया की कहानी है ग़ज़लों की जुबानी है 
रुदाद है सदियों की लम्हों की बयानी है 

काजल की सियाही से हर भेद वो लिख देंगी 
आँखों से निहाँ रखना जो बात छुपानी है 

तितली की गवाही पर काँटों की गिरफ्तारी 
इज़हार तो अच्छा है बस बात बे मानी है 

कुछ वक़्त तो ठहरेगा ये दौरे परीशां फिर 
"खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है" 

ऐसा ये फिक्रो फन है ऐसी है ग़ज़ल गोई 
दरिया की कहानी है , बूंदों में सजानी है


नोट :- लाल रंग से चिन्हित मिसरा बेबहर है |
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Replies to This Discussion

आदरणीय योगराज जी सभी   ग़ज़लों का एक स्थान पर सुन्दर संकलन हेतु हार्दिक आभार जिसकी जो ग़ज़ल पढने से छूट गई है यहाँ पर आसानी से पढ़ सकते हैं 

सादर धन्यववाद आद. राजेश कुमारी जी.

क्या त्वरित सेवा है! साभार आदरणीय योगराज जी !

सादर धन्यवाद राज़ नवादवी साहिब.

आदरणीय योगराजभाईजी,  सद्यः-समाप्त मुशायरे की सारी प्रविष्टियों को संग्रहीत करने का कष्टसाध्य कार्य कर आपने सभी प्रतिभागी गज़लकारों, पाठकों व प्रशिक्षुओं के लिये महती कार्य किया है.

एक बात, इस बार के मिसरे का बह्र थोड़ा-सा टिपिकल था. लेकिन प्रविष्टि में आयी ग़ज़लों में ढूँढिये तो लाल रंग ! ... . ग़ज़ब !! यही आश्वस्ति का सबसे बड़ा कारण है कि मंच का प्रवाह सही दिशा की ओर है. और यह है समर्पण रचनाकारों का ! साहित्यिक मंच कैसे समृद्ध होते हैं इसकी मिसाल है ये आयोजन.

अपनी छंद-रचनाओं से चकित करने वाले कुछ रचनाकार ग़ज़ल की विधा में भी यथोचित प्रयास करें तो प्रयास का प्रवाह दिशायुक्त हो जायेगा.

मुशायरे के सभी ग़ज़लकारों और सुधीपाठकों को मैं आपके माध्यम से सादर धन्यवाद कह रहा हूँ.

सादर

दिल से धन्यवाद आदरणीय सौरभ भाई जी.
//मिसरे का बह्र थोड़ा-सा टिपिकल था //
थोड़ा-सा टिपिकल था ? बेहद टिपिकल था आदरणीय, २५-२६ में से ७-८ शेअर ही काबू में आए - वो भी बहुत मुश्किल से. लेकिन इस बार मुशायरे का मयार काफी ऊंचा रहा जोकि बेहद ख़ुशी और संतोष की बात है. हुज़ूर आपकी ग़ज़ल से तो लाल रंग वैसे ही खौफज़दा रहता है :)))

बहर के टिपिकल होने के हवाले से एक शेर याद हो आया और इत्तेफाकन इस तरही से रिश्ता भी जुड गया तो सोचा साझा करता चलूँ

यह इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै
इक आग का दरिया है, औ डूब के जाना है

सही कहा आपने.. परसों मेरे मन में भी यही ख़याल आया था.. के..-

ये किसका तसव्वुर है, ये किसका फ़साना है;

जो अश्क़ है आँखों में, तस्बीह का दाना है; :-))

अपनी छंद-रचनाओं से चकित करने वाले कुछ रचनाकार ग़ज़ल की विधा में भी यथोचित प्रयास करें तो प्रयास का प्रवाह दिशायुक्त हो जायेगा.

wakai

Saurabh ji.

आदरणीय योगराज जी रिजल्ट में दोनों ग़ज़लों में सिर्फ एक एक रेड लाइन देख कर ख़ुशी हुई अर्थात मेरा प्रयास सही दिशा में चल रहा है और प्रयास करना होगा आभारी हूँ 

आदरणीया राजेश कुमारी जी, ये लाल रंग से मिसरों को चिह्नित करने का काम मंच संचालक श्री राणा प्रताप सिंह जी ने किया है.

ओके राणा प्रताप  जी का बहुत बहुत आभार 

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

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