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फ्रेंडशिप डे का मतलब क्या होता है ? क्या मुझे विस्तारपूर्वक कोई बताएगा?मेरे समझ मे ये नही आता की आख़िर हम त्योहार की तरह ये अँग्रेज़ों की बनाई हुई परंपरा को हिन्दुस्तान मे क्यों ढो रहे हैं?, ये भी पाश्चात्य शैली है ,हमलोग या यूँ कहें तो हमारी सभ्यता संस्कृति अँग्रेज़ों के अधीन अभी भी है, आख़िर क्यूँ हम अभी भी उनके दिखाए रास्ते पर चल रहे हैं ? ये तो आजतक मुझे भी समझ मे नही आया है , जब हम बिना किसी त्योहार के ही दोस्त बन सकते हैं तो फिर इसका औचित्य ही क्या है ?दोस्ती के लिए तो हमारी भावनाओं का मिलना ज़रूरी है ,ना की किसी फ्रेंडशिप डे जैसे अँग्रेज़ी परंपरा के ,इसी तरह मेरे लगभग ऑनलाइन सोशल नेटवर्किंग साइटों पर कुल मिलकर लगभग 1000 दोस्त होंगे,मुझे नही याद की किसको मैने किस दिन दोस्त बनाया था,नित नये दिन के साथ मेरे दोस्तो की संख्या मे असाधारण तरीके से बढ़ोतरी हो रही है , तो क्या मैं इन सबको रोक कर कहूँ की नही भाई आज तुम मुझे अपना दोस्त मत बनाओ, मैं तुमको अगस्त महीने के पहले रविवार को दोस्त के रूप मे स्वीकार करूँगा,तो कुल मिलकर ये बात है की ये सब बात मेरे दोस्तों पर तो नही लागू होती जाहे वो देश मे हों या विदेश मे , सब हमेशा से हमारे अच्छे दोस्त थे , हैं और रहेंगे| बस ,

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अभिषेक जी ओपन बुक्स ऑनलाइन के मंच से आप ने एक बहुत ही बढ़िया मुद्दे को उठाया है, यह सही बात है कि दोस्ती किसी विशेष दिन कि मोहताज नहीं होती , यह सब बाजारवाद है, न्यू इयर, valentine डे , x-माक्स डे , फ्रेंडशिप डे आदि पर अरबो रुपये का व्यवसाय होता है, मोबाइल कंपनिया करोड़ो का वारा न्यारा करती हैं,
हां इसका सार्थक पहलू यह है कि हम इसी बहाने अपने सभी दोस्तों को याद कर लेते है,
आपका कहना भी सही है , मगर मैं ये कहना चाहता हूँ की क्या हमे अपने दोस्तों को याद करने के लिए किसी दिन विशेष की ज़रूरत है ?क्या हम अपने दोस्तों को ऐसे नही याद कर सकते हैं?
Manoj Bhaiya ,Thanks for this information, realy nice,
गीत:
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
संजीव 'सलिल'
*

















*
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*
होनी-अनहोनी कब रुकती?
सुख-दुःख नित आते-जाते हैं.
जैसा जो बीते हैं हम सब
वैसा फल हम नित पाते हैं.
फिर क्यों एक दिवस मैत्री का?
कारण कृपया, मुझे बतायें
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*
मन से मन की बात रुके क्यों?
जब मन हो गलबहियाँ डालें.
अमराई में झूला झूलें,
पत्थर मार इमलियाँ खा लें.
धौल-धप्प बिन मजा नहीं है
हँसी-ठहाके रोज लगायें.
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*
बिरहा चैती आल्हा कजरी
झांझ मंजीरा ढोल बुलाते.
सीमेंटी जंगल में फँसकर-
क्यों माटी की महक भुलाते?
लगा अबीर, गायें कबीर
छाछ पियें मिल भंग चढ़ायें.
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*
तिवारी जी प्रणाम !

हम इस देश के वासी अभी तक फ़ैसला नहीं कर पाए हैं कि भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कारों को किस दिन छोडे, और कब से पश्चमी सभ्यता का अनुकरण करें !

जनरेशन गैप है आज सभी लड्के, लड़कियाँ स्कूल कालेजों मे हिन्दी से ज़्यादा अँग्रेज़ी की आशिक हैं अपनी बेहतरी के लिए, संयुक्त परिवार बिखर गये हैं "लव-इन-रिलेशन-टूगेदर" क़ानून ने रही सही भारतीय सभ्यता पर सवालिया निशान लगा दिया है ! इसलिए "राखी" से ज़्यादा महत्व "फ्रेण्ड्शिप, वैलेन्टईन डे" ले चुका है समाज़ को राह दिखाने वाला आए उसका इंतज़ार है !

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