आदरणीय साथिओ,
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आदरनीय कलपना बट्ट जी,बहुत सुंदर ढ़ग से आप जी ने पौराणिक कथा के पात्रों से समाज को नई राह दिखाई। ऐसी लघूकथा के लिए बधाई हो ।
बहना कल्पना भट्ट "रौनक़" जी आदाब,बहुत अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आयोजन में अपनी सक्रियता दिखाएँ ।
आदरणीया कल्पना जी, भीष्म प्रतिज्ञा के माध्यम से स्त्री शिक्षा पर आपने अच्छी लघुकथा लिखी है पर मुझे लगता है कि यह और बढ़िया हो सकती थी.
1. जहाँ तक मुझे जानकारी है भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा एक ग़रीब (निषाद पुत्री) की संतान को राजसिंहासन का उत्तराधिकारी बनाने के लिए की थी. इस दृष्टिकोण से उनका प्रयास सराहनीय ही कहा जाएगा. हाँ, पिता की किसी अतार्किक ज़िद पूरी करने के लिए भीष्म प्रतिज्ञा नहीं ली जा सकती. आपकी लघुकथा इसी बिन्दु पर आधारित है. यदि यह इसी पर केन्द्रित भी रहती तो यह ज़्यादा सशक्त रचना होती.
2. //यह कह कर वह अपनी जगह पर बैठ तो गया पर तुरंत ही वह सभाग्रह से बाहर आ गया और चिल्लाने लगा// "यह कह कर वह सीधे अपने घर पहुँचा और चिल्लाने लगा"
शीर्षक बेहद पसन्द आया. मेरी तरफ़ से इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
रचना पौराणिक इतिहास के परिपेक्ष में वर्तमान में व्याप्त विसंगति को जोडकर प्रश्न उठाने का प्रयास कर रही है, // “यह भीष्म ही तो है जो मेरा घर बिगाड़ रहे हैं.... // वाला अंतिम वाक्य रचना में एक त्वरित प्रतिक्रिया के स्वरूप दिखाय गया है जिसके मूल में ऐसा कुछ नहीं नजर आ रहा कि एकाएक उसके विचार कैसे बदले. बरहाल भीष्म प्रतिज्ञा के विषय को वर्तमान में घर में निर्णय लेने की कोशिश से जोडती इस कथा के लिए मेरी ओर से बधाई स्वीकारें कल्पना जी
मुहतरमा कल्पना साहिबा, संदेश देती सुन्दर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
बेटी को पढ़ाने के इस शानदार विचार के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय कल्पना भट्ट जी।
आज ऐसे भीष्म रूपी बापू की ज़रूरत नही है।बेटियाँ पढ़े आगे बढ़ें।यही होना चाहिये बधाई इस संदेशप्रद कथा के लिये आद० कल्पना भट्ट जी ।
अच्छी लघुकथा के लिए बधाई मित्र
वाह ! बेटी के भविष्य के लिए भीष्म की प्रतिज्ञा से प्रेरणा ,हार्दिक बधाई आपको आ. कल्पना भट्ट जी
विचारोत्तेजक रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीया कल्पना दी।
नया पैतरा ( दूसरी कथा )
बेटी श्रेया को सरप्राइज देने पहुंची रेवती को बेडरूम में युवक और उसकी अस्तव्यस्तता सारी कहानी बयां कर गया था।
" माँ , आप शाश्वत को लेकर परेशान हो ? " बूत बनी रेवती से श्रेया ने सवाल कर ही दिया।
" सुनिए , मैं और शाश्वत लिव इन रिलेशनशिप में हैं।यही हमारी वक्ति जरूरत भी हैं।"
" वक्ति जरूरत ? ये सब कुछ नही हैं बल्कि स्वयं की गलती पर पर्दा डालने के शब्द हैं।बेहतर हैं कि तुम दोनों शादी कर लो।"
" नही , माँ हम किसी भी बंधन में नही बंधना चाहते। फिर ऐसे रहने में कोई परेशानी भी नहीं हैं।"
" कैसे समझाऊं तुझे !" बड़बड़ाती रेवती अपने मे ही खोती चली गयी।अलग नही थे उसके विचार श्रेया से और उस समय नारी मुक्ति का झंडा भी बड़ी तेजी से फरफरा रहा था।सबकी राय और भय को परे कर वह भी चल पड़ी नारी मुक्ति की राह पर। तीसरी बार गर्भपात करने का सुझाव वह बर्दाश्त नही कर पाई और परिणामस्वरूप वे नदी के दो किनारे हो गये थे।
" माँ, फिर कहाँ गुम हो गई आप ? "
बेटी की आवाज सुन प्रत्यक्ष में रेवती बेटी को समझाने का प्रयास करने लगी, " लिव इन वैगरह कुछ नही हैं ,यह स्त्री को छलने के लिए पुरुष का नया पैतरा हैं।"
" ऐसा नही हैं माँ , यह आपका मुझे लेकर अत्याधिक प्रेम और भय हैं।"
" अगर ऐसा नही हैं, तब ना ही कोई श्रेया पितृविहीन होती और ना ही कोई स्त्री रखैल।"
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