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ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक -44 में शामिल सभी ग़ज़लों का संकलन चिन्हित मिसरों के साथ

परम स्नेही स्वजन

हालिया समाप्त मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| इस बार का तरही मिसरा मशहूर शायर जनाब सागर होशियारपुरी की ग़ज़ल से लिया गया था| मश्के सुखन के दौरान मुशायरे में कुल इकतीस ग़ज़लें पेश की गई जिन पर खूब चर्चा हुई जिससे हम जैसे तालिबे इल्म को बहत ज्यादा फायदा हुआ, इसके लिए सभी उस्तादों का बहुत बहुत शुक्रिया| साथ साथ उन सभी लोगों का भी शुक्रिया जो बीच बीच में अपनी मौजूदगी से शुअरा की हौसलाअफजाई करते रहे| दस्तूर को निभाते हुए मिसरों में रंग भरे जा रहे हैं| लाल रंग के मिसरे बह्र से खारिज हैं, हरे रंग के मिसरे में कोई न कोई ऐब है| 

योगराज प्रभाकर 

गर नफे में हर बही होने लगी
क्यों रसद मेरी नफी होने लगी ?

जब सियासत मज़हबी होने लगी
दोस्तों में दुश्मनी होने लगी

यूँ जली है भाईचारे की चिता
अम्न की देवी सती होने लगी

हादसे ही हादसे ही हादसे
ज़िंदगी अखबार सी होने लगी

उड़के परवाने शमा के घर गए
ख़ुदकुशी पे ख़ुदकुशी होने लगी

हर खुशी ने कह दिया जब अलविदा
हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी

जब से यारों ने मुझे हीरा कहा
हर नज़र ही पारखी होने लगी  

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Saurabh Pandey 

जी हुज़ूरी जब सधी होने लगी
भीत पुख़्ता रेत की होने लगी

ग़मज़दा हूँ, जान कर वो खुश हुए !
हर नये ग़म से खुशी होने लगी !!

हादसे हतप्रभ बहुत हैं, देख कर--
ज़िन्दग़ी फिर से खड़ी होने लगी !!

आज मेरे साथ फिर कौतुक हुआ
आज फिर उम्मीद सी होने लगी

लॉन में आयी, रुकी, पल भर, लगा-
धूप कितनी बातुनी होने लगी

खिड़कियों में बैठती हैं आजकल
इन हवाओं में नमी होने लगी

देखते ही सब भँवर गहरे हुए
एक धारा यों नदी होने लगी

रौशनी जुग्नू के भी तो पास है !
चाँद को कुछ खलबली होने लगी ॥

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गिरिराज भंडारी 

जाने क्यों ये बेबसी होने  लगी
साथ रह के भी कमी होने लगी

प्यार का वो गीत छेड़ा आपने
दुन्दुभी अब बाँसुरी होने लगी

मौत सी, मै जी रहा था ,कल जिसे
ज़िन्दगी वो, ज़िन्दगी होने लगी

मुझ पे यारों का करम कुछ यूं हुआ
हँसती आँखों में नमी होने लगी

ज़िन्दगी में सिर्फ ग़म ही देख कर
हर नये ग़म से खुशी होने लगी

इंतिज़ारी का मज़ा तो है मगर
लम्हा लम्हा अब सदी होने लगी

नेकी है, ये सोच कर, जो थे किये
वो असर से अब बदी होने लगी

हाँ, कुहासा छट रहा है देख तू
फिर फिज़ा मे धूप सी होने लगी

कुछ न कुछ तो फ़र्क आया चाँद में
आज छत पे रोशनी होने लगी

बात जो तनहाइयों में थी ग़लत
सामने आँखों के भी होने लगी

था ख़यालों में तेरे डूबा हुआ
बेखुदी में शायरी होने लगी

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IMRAN KHAN 

मुझको हर पल बेकली होने लगी,
तुम बिन आँखों में नमी होने लगी।

वक़्त कटता ही नहीं बिछड़े हैं तो,
अब घड़ी जैसे सदी होने लगी।

हर खुशी बनने लगी ग़म का सबब,
"हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी।"

सब मेरे बनकर बिछड़ जाते हैं क्यों,
बात ये भी अब खड़ी होने लगी।

सारे अहसासात सोने से मेरे,
नींद रूठी जलपरी होने लगी।

उम्र सारी काटनी है तेरे बिन,
सोचकर ये झुरझुरी होने लगी।

नूर माहो आसमाँ का खो गया,
अब अँधेरी हर गली होने लगी।
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नादिर ख़ान

जिंदगी में सरकशी होने लगी
हर कसम अब आखिरी होने लगी

झूठे वादों का सहारा ही मिला
जिंदगी से बेबसी होने लगी

हो रही हैं साजिशों पे साजिशें
दुश्मनों में दोस्ती होने लगी

सामने आने लगी कमजोरियाँ
सब्र में जब से कमी होने लगी

डूब जाऊँगा मै तेरे दर्द में
आँख तेरी अब नदी होने लगी

हो गई अब आशिक़ी गम से मुझे
हर नए गम से खुशी होने लगी

छट गए बादल खुला अब आसमां
चाँद से भी रोशनी होने लगी

तेरी यादों का सहारा था हमें
अब तो इनमें भी कमी होने लगी

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amit kumar dubey ansh 

घर हमारे जब ख़ुशी होने लगी
दोसतों में खलबली होने लगी

इश्क़ की राहों पे हम भी चल दिए
लो हमें भी बेखुदी होने लगी

बिन तुम्हारे दिन गुज़ारे हमने यूँ
लम्हें-लम्हें में सदी होने लगी

जब से वो गम बांटने आने लगे
हर नये गम से ख़ुशी होने लगी

ख़ुश्क मौसम था हमारे घर मगर
आंसुओं की इक नदी होने लगी

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सूबे सिंह सुजान 

आपसे जब दोस्ती होने लगी
खूबसूरत जिन्दगी होने लगी

आप मेरे साथ जब चलने लगे,
रास्तों में चाँदनी होने लगी

मुस्कुराहट मौसमों में घुल गई,
सूखी फ़सलें भी हरी होने लगी

अब गिरेंगी टूटकर चट्टानें भी,
मेरे अन्दर खलबली होने लगी

मुद्दआ असली था जो, वो गुम हुआ,
अब सियासत मज़हबी होने लगी

काम का क़द हमने छोटा कर दिया,
आजकल बातें बडी होने लगी

धीरे- धीरे ही महब्बत जमती है,
बर्फ़ पिघला तो नदी होने लगी

ग़म सिखाते हैं मुझे जीना 'सुजान',
हर नये ग़म से खुशी होने लगी

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शिज्जु शकूर 

कुछ भली सी कुछ बुरी होने लगी
इक कहानी रोज़ ही होने लगी

हिज्र का तेरे बहाना मिल गया
शाम से ही मयकशी होने लगी

फिक्र ने कल की न जीने ही दिया
बात सच तेरी कही होने लगी

रात दिन की उलझनें बेताबियाँ
ज़ीस्त से यूँ आजिज़ी होने लगी

काश मिल जाये कहीं मुझको सुकूँ
अब तमन्ना बस यही होने लगी

दुश्मनी का खेल खेलें हुक्मराँ
पर नुमायाँ दोस्ती होने लगी

फिर लुटी शायद किसी की आबरू
आज शबगश्ती तभी होने लगी

यूँ मुझे ग़म ने लगाया है गले
“हर नये ग़म से खुशी होने लगी”

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vandana 

चोट जब संजीवनी होने लगी
जिंदगी बहती नदी होने लगी

त्याग कर फिर धारती नवपत्र है
फाग सुरभित मंजरी होने लगी

पल थमा कब ठौर किसके लो चला
रिक्त मेरी अंजली होने लगी

साजिश-ए-बाज़ार है अब चेतिए
तितलियों में बतकही होने लगी

मैं मसीहा तो नहीं हूँ जो कहूँ
हर नए गम से ख़ुशी होने लगी

डूबता सूरज भी पूछे अब किसे
शिष्टता क्यूँ मौसमी होने लगी

मन बिंधा घायल हुआ तो क्या हुआ
बाँस थी मैं बाँसुरी होने लगी

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कल्पना रामानी 

ज्यों ही मौसम में नमी होने लगी।
खुशनुमा यह ज़िंदगी होने लगी।

उपवनों में देखकर ऋतुराज को,
सुर्ख रँग की हर कली होने लगी।

बादलों से पा सुधारस, फिर फिदा,
सागरों पर हर नदी होने लगी।

चाँद-तारे तो चले मुख मोड़कर,
जुगनुओं से रोशनी होने लगी।

रास्ते पक्के शहर के देखकर,
गाँव की आहत गली होने लगी।

जब गमों ने प्यार से देखा मुझे
हर नए गम से खुशी होने लगी।

लोभ का लखकर समंदर “कल्पना”
इस जहाँ से बेरुखी होने लगी।

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Baidyanath Saarthi 

रात दिन आवारिगी होने लगी
तुम मिले तो शायरी होने लगी

पांव माँ के मैं दबाता हूँ यहाँ
मंदिरों में हाज़िरी होने लगी

मौत तुझसे क्या छुपाऊं ! माफ़ कर
जिंदगी से आशिक़ी होने लगी

बादशाही दिलजलों की देखिए
हर नये गम से खुशी होने लगी

दोस्तों के कहकहे अब हैं कहाँ
बस! अवध औ बाबरी होने लगी

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SURINDER RATTI 

बात झूठी भी खरी होने लगी।
वो कहावत अब सही होने लगी।।

रास्ते ये प्यार के, मंज़िल हसीं,
उनसे मुझको दिल्लगी होने लगी।

ख्वाहिशें उस चाँद की बढ़ने लगीं,
तू-तू मैं-मैं रोज़ ही होने लगी।

रात सारी गुफ़तगू में थी मगर,
सुब्ह चुप-चुप थी, दुखी होने लगी।

जगमगाये, झिलमिलाये ख़ाब जो,
चाहतें उनकी बड़ी होने लगी।

ज़ख्म खुद ही भर गये, देखा उसे,
हर नये ग़म से ख़ुशी होने लगी।

है चरागों के बगल में रौशनी,
दूर सारी बेबसी होने लगी।

वो खुदा थे, रहनुमां भी, चल दिये,
उनके जाने से कमी होने लगी।

इश्क़ को तुम रोग "रत्ती" मान लो,
एक पल में आशिक़ी होने लगी।

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 rajesh kumari

हर इमारत मज़हबी होने लगी
दिल फ़रेबी हर गली होने लगी

सर-ब-सर गिरता गया इंसान क्यों
परवरिश में क्या कमी होने लगी

सुन दरख्तों की दबी हुई सिसकियाँ
इन किवाड़ों में नमी होने लगी

मुड़ गई राहें वफ़ा की खुद ब खुद
प्यार में जब दिल्लगी होने लगी

तेल में करके मिलावट सोचते
रौशनी में क्यों कमी होने लगी

अब नहीं डरते शिकस्ते-ख़ाब से
हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी

यास में देखी ठिठुरती तितलियाँ
नम परों में बेबसी होने लगी

क्यों नवाए-वक़्त ये खामोश है
लुप्त सहरा में नदी होने लगी

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मोहन बेगोवाल

गैर से जब दोस्ती होने लगी ׀
दूर हम से दुश्मनी होने लगी ׀

सोच का दीया जला जब हम चले,
कुछ अँधेरे में रौशनी होने लगी ׀

प्यार हम ने जो कभी उन से दिया,
क्यूँ उसी में अब कमी होने लगी ׀

हाल उस दिल का बतायें तो क्या,
बात होते , बेबसी होने लगी ׀

दिल हमारा अब ठिकाने कब रहा ,
हर नए गम से खुशी होने लगी ׀

देर थोड़ी के लिये, वो था मिला,
क्यूँ उसी से दिल्लगी होने लगी ׀

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Atendra Kumar Singh "Ravi" 

जब किसी से आशिकी होने लगी
तब से मेरी शाइरी होने लगी ll

हो गया था नूर से रोशन जहाँ
क्यूँ ज़मीं पे तीरगी होने लगी ll

पास मेरे अश्क की सौगात है
हर नये ग़म से खुशी होने लगी ll

टूट कर सपनें बिखर जाते जहाँ
क्यूँ वहीं पर बंदगी होने लगी ll

अब खतों के थम गये हैं सिलसिले
फ़ोन में अब जीरगी होने लगी ll

कैसे होगा तेरा हर इन्साफ अब
देश से बाजिंदगी होने लगी ll

प्यार की दो बात करने में भला
क्यूँ सभी को बेवसी होने लगी ll

अब फ़लक की होड़ में यूँ देखिये
हर किसी में यारगी होने लगी ll

आज अपना नाम है हर राग में
तब सभी से यावरी होने लगी ll

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Akhand Gahmari 

प्‍यार की भी चौकसी होने लगी
शाम हुइ ना वापसी होने लगी

अश्‍क आँखो से हमारे जब गिरे
हर तरफ क्‍यों खुदकुशी होने लगी

दुश्‍मनी उनसे हमारी घट गई
फौज की भी वापसी होने लगी

चढ़ गई जब से जवानी यार तो
इस बदन में गुदगुदी होने लगी

फूल को देखा तड़पते तब प्यार मे
बाग में जब चौकसी होने लगी

दे सको तो दो नये गम अब हमें
हर नये गम से खुशी होने लगी

मर गयी प्‍यासे मगर उठ ना सकी
इस कदर वो आलसी होने लगी

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 दिगंबर नासवा

गैर से भी दोस्ती होने लगी
हादसों में जब कमी होने लगी

मन से जब अपना पराया मिट गया
जिंदगी फिर से सुखी होने लगी

सच नहीं जो बात क्यों गाता फिरूं
हर नए गम से खुशी होने लगी

कह तो देता राज दिल का मैं मगर
सुगबुगाहट पास ही होने लगी

छोड़ कर बापू हवेली क्या गए
भाइयों में दुश्मनी होने लगी

दिल लगाया धूप से जो रात ने
जुगनुओं में खलबली होने लगी

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 AJAY KUMAR PANDEY

चाहता था जो वही होने लगी
याद उस की फिर हरी होने लगी।

खुश नहीं रह पाउंगा उसके बिना
ये मुझे किस की कमी होने लगी।

कर के वादा वह न आया अब तलक
राह तकते एक सदी होने लगी।

जख़्म भर जाते मेरे दिल के सभी
क्यों तुझे फिर दिल्लगी होने लगी।

हर पुराने ग़म ज़ुदा होने लगे
हर नए ग़म से खुशी होने लगी।

आंख भर आती रही हर बात पर
यह उफ़नती सी नदी होने लगी।

दो क़दम भी चल न पाया साथ में
अब ये कैसी दुश्मनी होने लगी।

बात करने की यहां फुरसत किसे
सोच आंखों में नमी होने लगी।

बिन बुलाए वो न आयें बात क्या
मुझ से भी गल्ती कहीं होने लगी।

रोज़ आते हैं ख़यालों में नज़र
फिर दिलों में सुरसुरी होने लगी।

आजमाता वह रहा कितना मुझे
फिर मेरी नीयत बुरी होने लगी।

सुप्त सी धारा निकल आई कहीं
जगमगाती रोशनी होने लगी।

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 शकील जमशेदपुरी

प्यार में यूं त्रासदी होने लगी
चोट भी अब औषधी होने लगी

दूर होकर आपसे इतना हुआ
'हर नए गम से खुशी होने लगी'

खुद से भी मैं अजनबी होता गया
वो किसी की जब सगी होने लगी

कान सागर ने भरा कुछ इस कदर
दूर साहिल से नदी होने लगी

हो न हो ये शायरी का है असर
दिल की धरती फिर हरी होने लगी

एक पल को सोच क्या उनको लिया
हर गजल अब संदली होने लगी

याद का जंगल हुआ है दिल मेरा
चैन की अब तस्करी होने लगी

कुछ न कुछ तो बन गया है तू 'शकील'
सब की तुझसे दुश्मनी होने लगी

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 Ashok Kumar Raktale

बात छोटी से बड़ी होने लगी,
भींत इक तनकर खडी होने लगी |

गम मिले छोटे बड़े सारे यहाँ,
हर नए गम से ख़ुशी होने लगी |

प्यार करना तो सदा से जुर्म था,
बेरुखी भी जुर्म सी होने लगी

साथ अक्सर ही रहे दोनों मगर,
दुश्मनी फिर क्यों हरी होने लगी |

जो नहीं था हम उसे माँगा किये,
मिल गया भी तो कमी होने लगी |

क़त्ल करना ही उसे मंजूर था,
सांस जिसकी गैर की होने लगी |

देख ‘रक्ताले’ यहाँ क्या पा गया,
प्यार पाया बन्दगी होने लगी |

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 Tilak Raj Kapoor 

बात जब दिल की कही होने लगी
क्यूँ जहां से बेरुखी होने लगी ।1।

ग़म मिले इतने कि अपने हो गये
‘’हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी’’।2।

खुद-ब-खुद ही ग़म विदा होते गये
जब खुशी से दोस्ती होने लगी।3।

हुस्ऩ, आशिक, मैकशी, साकी कहॉं
जिंदगी की शायरी होने लगी ।4।

बन्द ऑंखों में धुँधलका ही रहा
खुल गयीं तो रौशनी होने लगी ।5।

ठानकर जब आईना हम हो गये
बात हर हमसे खरी होने लगी ।6।

पुत गये चेहरे किसी दीवार से

जब से रुस्वा सादगी होने लगी ।7।

मस्अले सुलझें, हुआ इतिहास अब
हर तरफ रस्साकशी होने लगी ।8।

थे जो मर्यादा के मंदिर, अब वहॉं
जालसाज़ी, मसखरी होने लगी ।9।

वक्त ने अहसास सारे धो दिये
याद खुद से अजनबी होने लगी ।10।

लफ़्ज़ और अंदाज़ क्या बदले जरा
बात कड़वी चाशनी होने लगी ।11।

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 Gajendra shrotriya

वा हकीकत जीस्त की होने लगी
अनलहक की आगही होने लगी

दूर सारी तीरगी होने लगी
रूह में इक रोशनी होने लगी

हर नफ़स में बंदगी होने लगी
सूफियाना ज़िंदगी होने लगी

बेवजह बेचैन दिल रहने लगा
लाडली बिटिया बड़ी होने लगी

पी रही सिन्दूर हँसती मांग का
बेरहम ये मयकशी होने लगी

मंद हैं अब धड़कनों की सूइयां
बंद जीवन की घड़ी होने लगी

तोड़ के तटबंध सारे आ गई
अब समंदर की नदी होने लगी

आदमी तादाद में बढ़ने लगे
आदमीयत की कमी होने लगी

आ गये आजिज ख़ुशी से इस कदर
हर नए गम से ख़ुशी होने लगी

आब इक चढती नदी का देखकर
अब्र को भी तिश्नगी होने लगी

हाँ तुझे भूले नहीं पूरी तरह
याद पर अब धुंधली होने लगी

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Dr.Prachi Singh

इस कदर अब बंदगी होने लगी
हर घड़ी उनकी ऋणी होने लगी /1/

फागुनी एहसास भर हर साँस में
सर्द रुत भी गुनगुनी होने लगी /2/

अजनबी नें स्वप्न कुछ ऐसे छुए
आरज़ू हर मखमली होने लगी /3/

अक्स उनका यूँ निगाहों में बसा
रूह खुद से अजनबी होने लगी /4/

जब उठी आवाज़ हक की माँग में
नीयत उनकी अनमनी होने लगी /5/

इक खता की यूँ मिली उनसे सज़ा
बात केवल अक्षरी होने लगी /6/

जब से गम साँझा किये हैं दोस्त नें
हर नए गम से खुशी होने लगी /7/

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 Abhinav Arun 

आशिक़ी से आशिक़ी होने लगी |
ज़िन्दगी यूं ज़िन्दगी होने लगी |

ज़िक्र आया जब कभी फ़रहाद का ,
हर तरफ़ इक रोशनी होने लगी |

बादलों ने ख़त समुन्दर के पढ़े ,
बाढ़ से व्याकुल नदी होने लगी |

छावनी में रात रानी की महक ,
लश्करों की वापसी होने लगी |

दर्द की इस इन्तेहां में हाथ दे ,
मौत तुझसे दोस्ती होने लगी |

शाइरी जबसे हुई महबूब तू ,
हर नए गम से ख़ुशी होने लगी |

अब हुए बच्चे बड़े उड़ जाएंगे ,
सोचकर माँ भी दुखी होने लगी |

सब गवाही से मुकर जाने लगे ,
फ़ैसलों में बेबसी होने लगी |

खाद पानी डालिए इस नस्ल में ,
उर्वरा की भी कमी होने लगी |

मंच पर शाइर की है दरकार क्या ,
मसखरी ही मसखरी होने लगी |

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 Harjeet Singh Khalsa 

जब मुहब्बत रौशनी होने लगी

कम दिलों की तारिकी होने लगी //१//

बन गए जब तुम हमारी ज़िन्दगी,
खूबसूरत ज़िन्दगी होने लगी.... //२//

यूँ सराहे ग़म हमारे आपने,
हर नये ग़म से ख़ुशी होने लगी.....//३//

हाय उस आँख की वो मस्तियाँ
जिक्र ही से बेखुदी होने लगी …… //४//

याद आई इक अधूरी जुस्तजू,
खुद ब खुद फिर बंदगी होने लगी … //५//

दोस्ती हमने निभाई इस तरह,
गुम जहाँ से दुश्मनी होने लगी …… //६//

इक ग़ज़ल का रूप उसने धर लिया,
फिर तो जम के शायरी होने लगी ...... //७//

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 gumnaam pithoragarhi 

आपसे जब दोस्ती होने लगी
हाँ गमो में अब कमी होने लगी

रोज की ये दौड़ रोटी के लिए
भूख के घर खलबली होने लगी

आप मेरे हम सफ़र जब से हुए
ज़िन्दगी मेरी भली होने होने लगी

रख दिए कागज़ में सारे ज़ख्म जब
सूख के वो शायरी होने लगी

शहर भर में ज़िक्र है इस बात का
पीर की चादर बड़ी होने लगी

फूल तितली चिड़िया बेटी के बिना
कैसे ये दुनिया भली होने लगी

सर्द दुपहर उम्र की है साथ में
याद ज्यूँ स्वेटर ऊनी होने लगी

सीख देता है नई वो इसलिए
हर नए गम से खुशी होने लगी

ज़ख्म अब कहने लगे 'गुमनाम' जी
आपसे अब दोस्ती होने लगी

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Neeraj Kumar 'Neer' 

खून सस्ती आब सी होने लगी
बादलों को तिश्नगी होने लगी /

देख मीठापन नदी का देखिये ,
अब समुन्दर भी नदी होने लगी /

आसमां में उगता सूरज देखकर
खूबसूरत चांदनी रोने लगी /

चुभ रहे थे शूल बन कर आँख में ,
अब उसी की जुस्तजू होने लगी/

जिंदगी ने रोज गम इतने दिए
हर नए गम से ख़ुशी होने लगी /

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 Sarita Bhatia

गैरों से जब दिल्लगी होने लगी
दोस्तों की तब कमी होने लगी /

दोस्ती अब बेबसी होने लगी
दरमियाँ दूरी खड़ी होने लगी /

दोस्ती से बेबसी जब दूर है
फासलों में तब कमी होने लगी /

जो गिले शिकवे बढे रिश्तों में हैं
लौट आने में सदी होने लगी /

हाथ सर से उठ गया प्रभु तेरा जो
हौंसलों से दोस्ती होने लगी /

बांटना जबसे ग़मों को सीखा है
हर नये गम से ख़ुशी होने लगी /

गम सिखाते हैं ख़ुशी का रास्ता
खुशनुमा अब जिन्दगी होने लगी /

आ गई बारात जब चौराहे पे
माँ भवानी को ख़ुशी होने लगी /

आज है शिवरात्रि दो शुभकामना
क्यों बधाई में कमी होने लगी /

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 arun kumar nigam

उम्र से जब षोडसी होने लगी
साँझ हर इक सुनहरी होने लगी |1|

छा गए कुंतल घटाओं की तरह
तनबदन में झुरझुरी होने लगी |2|

सामने आये सजन जो यकबयक
साँस क्यों री ! बावरी होने लगी |3|

है कपोलों पर गुलाबों की झलक
देह नाजुक मरमरी होने लगी |4|

पर नहीं पर पैर छूते हैं तनय
कह रहे सब वह परी होने लगी |5|

वस्त्र दिन-दिन तंग होते जा रहे
रुत -बसन्ती मदभरी होने लगी |6|

भेद सुख-दुख का नहीं मन में रहा
हर नए गम से खुशी होने लगी |7|

सच कहूँ युव-जन बुजुर्गों के लिए
गाँव भर में लाडली होने लगी |8|

भ्रात पनघट भेजने से डर रहा
मातु चिंतित चिड़चिड़ी होने लगी |9|

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बृजेश नीरज

रेत में जो गुम नदी होने लगी

मछलियों में खलबली होने लगी

ओस की दो-चार बूँदें सोखकर
नीम गमलों में हरी होने लगी

वक्त का मुझ पर असर ऐसा हुआ
“हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी“

बादलों ने साज़िशें ऐसी रचीं
दोपहर भी रात सी होने लगी

हौसले इन पंछियों के देखकर
अब हवा में सनसनी होने लगी

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अजीत शर्मा 'आकाश'

अब तो रुख़सत हर ख़ुशी होने लगी.
ग़म से बोझिल ज़िन्दगी होने लगी.

मस्त नज़रों से जो देखा आपने
इक अजब सी बेख़ुदी होने लगी.

रोकना तो चाहता है दिल मगर
जाइए, अब रात भी होने लगी.

खुल रही हैं ज़ह्नो-दिल की खिड़कियाँ
रोशनी ही रौशनी होने लगी.

हर तरफ़ महसूस होती है चुभन
ज़िन्दगी मानो सुई होने लगी.

घुस गये संसद में जब से बे-तमीज़
गन्दगी ही गन्दगी होने लगी.

दर्द की नगरी में जब से बस गये
हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी.

आप से 'आकाश' बिछड़े तो लगा
ज़िन्दगी में कुछ कमी होने लगी.

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यदि किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा मिसरों मो चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

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आदरणीय राणाप्रताप सर आपको सादर प्रणाम .....   आपको संकलन हेतु हार्दिक  बधाई ....

 इस बार के तरही मुशायरा में अपनी ग़ज़ल को एबरहित देखकर अच्छा लगा ....यह सब आप सब के आशीर्वाद का प्रतिफल है खासकर योगराज सर,सौरभ सर ,वीनस भाई ,अरुण सर तथा आपके कारन संभव हो सका है ...आगे भी आप सब के मार्गदर्शन में आगे बदने कोशिश करूँगा ...उम्मीद है कि आप सब यूँ हि अपना आशीर्वाद हम पर बनाए  रखेंगे ....सादर

इस बार संकलन में लालिमा कम है।

:)

इस दफ़े का संकलन कई मायनों में विशिष्ट है. प्रस्तुत हुई ग़ज़लों के मिसरे बह्र में तो हैं ही, आयोजन में कई-कई ग़ज़लें प्रस्तुत हुईं जिनके कई-कई शेरों से महीनी और ग़ज़लियत झांकती हुई पाठकों को रोमांचित कर गयी.

ओबीओ मंच ऑनलाइन मुशायरे के लिहाज़ से ऐसा मंच नहीं है जहाँ पूर्व संकलित हुई ग़ज़लों को नेपथ्य में दुरुस्त कर-कर एक-एक कर प्रस्तुत किया जाता है. बल्कि यहाँ सारा कुछ इण्टरऐक्टिव तरीके से सीधे प्रस्तुत होता है. और आयोजन के दौरान कार्यशाला प्रारम्भ होजाती है. पुराने ग़ज़लकार और पाठक मुझसे अवश्य सहमत होंगे कि अधिक दिन नहीं हुए जब मुशायरा-आयोजन के समापन के बाद हुए संकलनों में लाल रंग अपने पूरे रुआब में हुआ करता था. आज लाल या अन्य रंग अपवाद की तरह दिख रहा है. ऐसी प्रबुद्धता के लिए भाई राणा, भाई वीनस और मंच के उस्ताद आदरणीय तिलकराजजी के साथ-साथ प्रधान सम्पादक योगराभाईजी की शान में बार-बार सलाम करता हूँ.

संकलन के कष्टसाध्य कार्य और उन्हें साधने की क़वायद के लिए भाई राणाजी को हार्दिक बधाई.

शुभ-शुभ

आपसे अक्षरशः सहमत हूँ , मान्यवर ! सादर :)

इस बार का आयोजन बहुत सफल रहा बहुत एन्जॉय भी किया क्यूंकि वक़्त होने के कारण मैं पूर्ण रूप से जुडी रही इस आयोजन से आराम से ग़ज़लें पढ़ी सब की जहाँ एक और ग़ज़लों में उंचाइयां छूते/दिल को छूते  अशआर  पढने को मिले वही कुछ हँसी में गुदगुदी करते शेर भी पढने को मिले चुहल बाजी ,खिचाई भी खूब हुई :(((( आयोजन के अंत तक हँसते हंसाते मनोरंजन हुआ आदरणीय योगराज जी के पुछल्ले यदि अभी तक किसी ने नहीं पढ़े तो  जाकर

जरूर पढ़ें या आ० राणा प्रताप जी यहीं उनकी ग़ज़ल में जोड़ दें. इस त्वरित संकलन के लिए आ० राणा प्रताप जी को बधाई.आयोजन से जुड़े सभी सदस्यों को हार्दिक बधाई.    

आदरणीय मंच संचालक जी उम्दा सकलन के लिए बधाई,निसंदेह अपनी रचना को एब मुक्त देखकर खुशी हुयी।
मै आदरणीय सौरभ जी से सहमत हूँ की इस कार्यशाला से, हम सब को एक ही समय में बहुत कुछ सीखने को मिलता है।(विशेष रूप से नए रचनाकारों को),आदरणीय सौरभ जी ने कुछ सुधि जनों(आदरणीय राणाप्रताप जी,आदरणीय वीनस जी, उस्ताद आदरणीय तिलकराज जी, प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराज जी) का जिक्र किया इन सबके साथ मै अदरणीय सौरभ जी का भी नाम जोड़ना चाहूँगा वो जिस मेहनत से एक-एक रचनाकार तक पहुँच कर ज्ञान देते हैं, वो कबीले तारीफ है। उनकी इस मेहनत के लिए मै सबके साथ साथ, उनका भी आभार व्यक्त करता हूँ।

मान्यवर, सभी मोहतरम ग़ज़लगो को दिल से सलाम ! संकलन में एक बार फिर , एक -एक कलमकार को पढ़ने का सुअवसर मिला ...बहुत कुछ सीखने को मिलता है ! इतनी शिद्दत से , इतनी आत्मीयता से मैंने किसी सोसल साइट्स पर इस तरह का आयोजन नहीं देखा, मैं नौसिखिया इस मुशायरे का हिस्सा बनकर एक श्रोता व दर्शक की भांति जिस आनंद से दो चार हुआ...बस ...निःशब्द हूँ  ! बधाई के हकदार आप सभी हैं ..! नेपथ्य में भी बहुत लोग हैं ! ऐसा सफल आयोजन , मंच पर उपस्थित कार्यकारिणी समिति के सदस्यों की एकजुटता, उनकी सहयोगी भावना, सीखने -सिखाने की उत्कट अभिलाषा , व कई गुणीजनों की सदाशयता व विनम्रता का ही प्रतिफल है !

विशेष रूप से मैं, आदरणीय व सम्माननीय योगराज जी  , तिलक राज कपूर जी  , सौरभ पाण्डेय जी , वीनस केसरी जी और राणा प्रताप जी को इस तरह के जीवंत आयोजन के लिए कोटिशः बधाइयाँ ज्ञापित कर रहा हूँ - सादर प्रणाम , सादर प्रणाम ! सभी साथियों को को भी विनीत नमन ! :)   

आदरणीय श्री राणा जी , हार्दिक बधाई तरही के सफल - कुशल सञ्चालन - आयोजन के लिए . एक समय ''ये लाल रन कब मुझे छोड़ेगा '...वाला गीत हर बार संकलन पर याद आता था अब लाल हरे रंगों की कमी ये दर्शाती है की ओ बी ओ अपने मकसद में सफल रहा है और हम सही मायने में सीख रहे हैं . ग़ज़ल इस मंच पर पल्लवित - पुष्पित हो रही है ख़ुशी होती है ..सभी को बधाई सभी को शुभकामनायें विशेष कर आदरणीय संपादक महोदय , सर्वश्री बागी जी , श्री सौरभ जी , श्री तिलक जी , नीरज जी , डॉ प्राची जी , श्री गिरिराज जी , वंदना जी , कल्पना जी , ..का जिन्होंने मेरी ग़ज़ल को सराहा और मुझे प्रोत्साहित किया . आभार ! और नमन !!

यह इस मंच के आयोजन की ही देन है कि मुझ जैसे व्यक्ति की ग़ज़ल भी अब रँगे जाने से खुद को बचा ले जाती है.

संकलन के इस महत्वपूर्ण तथा श्रमसाध्य कार्य के लिए आदरणीय राणा भाई का हार्दिक आभार और साधुवाद!

सादर!

आदरणीय राणा प्रताप भाई जी , चिन्हित मिसरों के साथ ग़ज़लो का संकलन इतनी जज़्दी उपलब्ध कराने के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥ एक और सफल आयोजन के लिये आपको , आदरणीय योगराज भाई जी को , आदरणीय  सौरभ भाई जी को , आदरणीया प्राची जी को एवँ आदरणीय तिलक राज जी को बहुत बहुत बधाइयाँ । हम जैसे नव सीखियों का हौसला अफज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया ॥

आदरणीय मंच संचालक राणा प्रताप जी संकलन हेतु हार्दिक बधाई 

यह सब सुधीजनों के श्रम का ही नतीजा है कि आज हमारी गजल लाल नीले से छूट काले रंग में चमचमा रही है 

आगे उसमें निश्चित सुधार भी आप सब के आशीर्वाद से संभव होगा 

इसे ठीक किया जा सकता है ...एक शेर दिख रहा है श्री नीर जी का --

आसमां में उगता सूरज देखकर
खूबसूरत चांदनी रोने लगी /.....होने ''''रोने

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