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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-37(Now closed with 1027 replies)

परम आत्मीय स्वजन,

.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 37 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. इस बार का तरही मिसरा मशहूर शायर जनाब अज्म शाकिरी की बहुत ही मकबूल गज़ल से लिया गया है. पेश है मिसरा-ए-तरह...

"तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ "

ते1री2 या2 दों2 / से1 दिल2 बह2 ला2 / र1 हा2 हूँ2 

1222              1222               122

 मुफाईलुन  मुफाईलुन  फ़ऊलुन

(बह्र: बहरे हज़ज़ मुसद्दस महजूफ)

* जहां लाल रंग है तकतीई के समय वहां मात्रा गिराई गई है 
रदीफ़ :- रहा हूँ
काफिया :-  आ (सच्चा, पाया, उलटा, फीका, मीठा आदि)
.

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 जुलाई दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 29 जुलाई दिन सोमवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

अति आवश्यक सूचना :-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम दो गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं
  • एक दिन में केवल एक ही ग़ज़ल प्रस्तुत करें
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिएँ.
  • तरही मिसरा मतले में इस्तेमाल न करें
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी रचनाएँ लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये  जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी

.

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है:

 .

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो   27  जुलाई दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.


मंच संचालक 
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह) 
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Replies to This Discussion

बहुत शानदार गज़ल आदरणीय डॉ० अब्दुल जी 

सादर बधाई 

बहुत खूब अर्चन जी, दाद कुबूलें

वाह ! उम्दा और बेहतरीन पेशकश !

दिली शुभकामनायें  आदरणीय अर्चन जी!

ये तन मन धन उसी के नाम अर्पित

मैं जिसकी गोद में पलता रहा हूँ. .. 

इस शेर पर विशेष बधाई, आदरणीय अर्चन साहब

सादर

dusri peshkash

इरादों का बड़ा पक्का रहा हूँ
खुदा का नेक दिल बंदा रहा हूँ

मेरी किस्मत में शायद तू नहीं है
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

सितारे घर मेरे उतरे थे लेकिन
ख़ता ये हो गई सोता रहा हूँ

मेरे घर फूल बरसाओ बहारों
कि खारों से बहुत ऊबा रहा हूँ

तिज़ारत दिल का वो करने लगे हैं
हिसाबे -प्यार में कच्चा रहा हूँ

मुक़म्मल हो गया आने से तेरे
तेरे दीदार कों तरसा रहा हूँ

सज़ा दे दी मुझे मेरे खुदा ने
कि तेरे बाद भी जिन्दा रहा हूँ

कि रिश्तों में नहीं है बात अब वो
लगा यूँ बोझ मैं ढोता रहा हूँ

मुरादों से भरी जब शाम आई
तभी मैं ज़ाम में उलझा रहा हूँ

बगावत कर लिया हमने जो घर से
दुखा के मां का दिल रोता रहा हूँ

ये नादाँ दिल मेरा माने न माने
जहानत से इसे बांधा रहा हूँ

अमित कुमार दुबे मौलिक व अप्रकाशित

सज़ा दे दी मुझे मेरे खुदा ने
कि तेरे बाद भी जिन्दा रहा हूँ

शानदार लाजवाब ग़ज़ल का बेहतरीन शेर .....क्या कहने वाह बहुत बहुत बधाई अमित जी !!

लाजबाब गजल ,आदरणीय अमित जी ,दाद कुबूल कीजिये

क्या  कहने ....
 वाह वाह अमित कुमार दुबे जी ..........

मेरे घर फूल बरसाओ बहारों
कि खारों से बहुत ऊबा रहा हूँ

---बहुत खूब

आदरणीय अमित कुमार जी, उम्दा गज़ल...........

कि रिश्तों में नहीं है बात अब वो
लगा यूँ बोझ मैं ढोता रहा हूँ.............................बहुत खूब.............

वाह वाह वाह ! बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है भाई अमित कुमार दुबे जी. मतला सुन्दर है और गिरह भी प्रभावशाली हुई है. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें, इस शेअर पर एक्स्ट्रा दाद;

//सितारे घर मेरे उतरे थे लेकिन
ख़ता ये हो गई सोता रहा हूँ//

लेकिन निम्नलिखित अशआर ज़रा कमज़ोर हो गए हैं;  
//तिज़ारत दिल का वो करने लगे हैं
हिसाबे -प्यार में कच्चा रहा हूँ// "तिज़ारत दिल का" नहीं "तिज़ारत दिल की'

//मुक़म्मल हो गया आने से तेरे
तेरे दीदार कों तरसा रहा हूँ// यहाँ दोनों मिसरों का आपस में कोई सामंजस्य नहीं है.

//बगावत कर लिया हमने जो घर से
दुखा के मां का दिल रोता रहा हूँ// "बगावत कर लिया" सही नही है "बगावत" के साथ "लिया" नहीं "ली" प्रयोग होना चाहिए था.

aadarniya admin ji sadar namaskar..aapko meri ghazal achchhi lagi aapka bahut-bahut shukriya...

mai aapse nivedan karta hun ki aap meri ghazal me ''tizarat dil ka'' ke sthan par ''tizarat dil ki'' kar den,

kripa hogi..aur baki ke dono mukammal.. ......aur bagawat......... wale sher hata de.mahti kripa hogi.

aapke margdarshan hetu aabhari hun...

                                                         kshma kijiyega network ki dikkat ke karan hindi me type nahi kar saka..

ग़ज़ल अच्छी लगी अमित दुबे जी, महफ़िल में आप जमे रहते तो आनंद दोबाला होता, बधाई इस प्रस्तुति पर । 

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