आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय ओम प्रकाश जी ! बेहतरीन प्रस्तुति!
शुक्रिया आदरनीय तेजवीर जी .
आदरनीय भाई साहब,प्रणाम. आप का शुक्रिया. आप ने लघुकथा को अच्छा कह दिया.
बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है आद० ओमप्रकाश जी अंतिम पंक्ति बहुत प्रभावशाली और सार्थक है आपको हार्दिक बधाई |
आदरणीय राजेश कुमारी जी आप का आभार इस प्रयास को प्रभावशाली कहने के लिए.
आदरनीय नीता कसार दीदी, आप का शुक्रिया . इतनी बढ़िया समीक्षा करने के लिए.
आ. ओमप्रकाश जी बधाई इस रचना के लिए. वाकई ताली दोनो हाथो से ही बजती है.
अपरिपक्व
जिस छड़ी के सहारे चलकर वो चश्मा ढूँढने अपने बेटे के कमरे में आये थे, उसे पकड़ने तक की शक्ति उनमें नहीं बची थी| पलंग पर तकिये के नीचे रखी ज़हर की डिबिया को देखते ही वह अशक्त हो गये| कुछ क्षण उस डिबिया को हाथ में लिये यूं ही खड़े रहने के बाद उन्होंने अपनी सारी शक्ति एकत्रित की और चिल्लाकर अपने बेटे को आवाज़ दी,
"प्रबल...! यह क्या है..?"
बेटा लगभग दौड़ता हुआ अंदर पहुंचा, और अपने पिता के हाथ में उस डिबिया को देखकर किंकर्तव्यविमूढ होकर खड़ा हो गया| उन्होंने अपना प्रश्न दोहराया, "यह क्या है..?"
"जी... यह... रौनक के लिये..." बेटे ने आँखें झुकाकर लड़खड़ाते स्वर में कहा|
सुनते ही वो आश्चर्यचकित रह गये, लेकिन दृढ होकर पूछा, "क्या! मेरे पोते के लिये तूने यह सोच भी कैसे लिया?"
"पापा, पन्द्रह साल का होने वाला है वह, और मानसिक स्तर पांच साल का ही... कोई इलाज नहीं... उसे अर्थहीन जीवन से मुक्ति मिल जायेगी..." बेटे के स्वर में दर्द छलक रहा था|
उनकी आँखें लाल होने लगी, जैसे-तैसे उन्होंने अपने आँसू रोके, और कहा, "बूढ़े आदमी का मानसिक स्तर भी बच्चों जैसा हो जाता है, तो फिर इसमें से थोड़ा सा मैं भी...."
उन्होंने हाथ में पकड़ी ज़हर की डिबिया खोली ही थी कि उनके बेटे ने हल्का सा चीखते हुए कहा, "पापा...! बस|", और डिबिया छीन कर फैंक दी| वो लगभग गिरते हुए पलंग पर बैठ गये|
उन्होंने देखा कि ज़मीन पर बिखरा हुआ ज़हर बिलकुल पन्द्रह साल पहले की उस नीम-हकीम की दवाई की तरह था, जिससे केवल बेटे ही पैदा होते थे|
और उन्हें उस ज़हर में डूबता हुआ उनकी पुत्रवधु का शव और अपनी गोद में खेलता पोते का अर्धविकसित मस्तिष्क भी दिखाई देने लगा|
(मौलिक और अप्रकाशित)
रचना के मर्म तक पहुँच कर इस विश्लेषण हेतु बहुत-बहुत आभार भाई सुनील जी| अंतिम पंक्ति में पाप और प्रायश्चित दोनों ही दर्शाने का प्रयास किया है, शायद प्रतीक अधिक गूढ़ हो गये| सादर,
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