आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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बहुत शानदार रचना ,वर्तमान के हालात को इस तरह का प्लेटफार्म देकर खूब प्रस्तुत किया आपने।बहुत बधाई आदरणीय सर जी! सादर।
आदरनीय डॉ विजय शंकर जी आप ने कूटनीति का बहुत ही उम्दा प्रस्तुतिकरण किया है. बधाई आप को .
जनता का प्रतिनिधित्व सदा से ही रस्ते का माल सस्ते में ही बिकता रहा है . यथार्थ को कल्पना का पुट देते हुए आपकी रचना कौशलता देखते ही बनती है . मंत्रमुग्ध सी पढ़ती गयी पंक्ति-दर-पंक्ति को .लगा कुछ तो फलेगा यहाँ , आक्रोश कभी तो अपनी सार्थकता को अभिव्यक्त करेगी . कभी तो कोई सकारात्मक परिणाम का कारण बनेगी ,लेकिन मन क्षुब्ध हुआ ,वही ढाक के तीन ही पात निकले ,चौथे पत्ते की संभावना दूर -दूर तक नज़र नहीं आई . बहुत -बहुत बधाई आपको आदरणीय विजय जी इस सार्थक लघुकथा के लिए .
राजनीति चाहे आज की हो या प्राचीन कूटनीति की चाल हमेशा चलती रही है और चलती रहेगी ...ये ही तो राजनीति है भोली तो जनता है
बहुत शानदार लघु कथा लिखी है आ० डॉ० विजय शंकर जी हार्दिक बधाई
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी! आक्रोश को किस तरह राजनीति और कूतनीति से शांत किया जाता है, इसका सुंदर मिश्रण दिखलाती बेहतरीन प्रस्तुति!
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