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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-111

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 111वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब  अनवर शऊर साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"मुझे भी ये गुमाँ इक तजरबा होने से पहले था "

1222      1222      1222        1222 

मुफाईलुन    मुफाईलुन    मुफाईलुन    मुफाईलुन

(बह्र: बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम )

रदीफ़ :- होने से पहले था 
काफिया :- आ ( खुदा, जुदा , हवा, बुरा, फायदा आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 सितंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 सितंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 सितंबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
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Replies to This Discussion

Nilesh shevgaonkar ji ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

ये होना जैसे शबनम के फना होने से पहले था

मेरा खोया हुआ सब कुछ तेरा होने से पहले था

 

किसी के ज़ेहन में गोते लगाता था यूँ ही बरबस

नया हर सच किताबों में लिखा होने से पहले था

 

हर इक लम्हा बदलता है तवाजुन जिस को कहते हैं

मेरा क्या था जो मुझ से यूँ जुदा होने से पहले था

 

ये दुनिया खूबसूरत सी यूँ ही चलती रहेगी क्या

ख़्याल ऐसा तो इक तूफाँ बपा होने से पहले था

 

हर इक कमरे में धूप आती थी उस घर में, पुराना था

मकां में था बहुत कुछ पर नया होने से पहले था

 

खिले हैं फूल जो बागों में आए हैं कहीं से और

न जाने किस का था वह जो मेरा होने से पहले था

 

बदल जाएगी यह दुनिया बदल जाएंगे फिकरो ख़्वाब

हवा रोके थी,जाने क्या खला होने से पहले था

 

वही दुनिया है और हैं वही रिश्ते जो पहले थे

किसी अख़बार में पर कुछ छपा होने से पहले था

 

जहाँ पर आग लगती है वहीं उठता धुआँ भी हो

मुझे भी यह गुमां इक तजरुबा होने से पहले था

 

तुम्हें जो बरतरी पर नाज़ है अपनी सभी नू पर

न जाने कितनी नस्लों के फना होने से पहले था।

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

आदरणीय तनवर साहब बहुत अच्छी गजल हुई दिल से बधाई

जनाब तन्वीर साहिब आदाब,बहुत अर्से बाद ओबीओ के मुशायरे में आपकी शिर्कत हुई,ये देख कर बहुत ख़ुश हूँ ।

तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले के दोनों मिसरों में मुझे रब्त नहीं लगा ।

'ये दुनिया खूबसूरत सी यूँ ही चलती रहेगी क्या

ख़्याल ऐसा तो इक तूफाँ बपा होने से पहले था'

'हर इक कमरे में धूप आती थी उस घर में, पुराना था

मकां में था बहुत कुछ पर नया होने से पहले था'

इन अशआर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ का ऐब है,देखियेगा ।

'बदल जाएगी यह दुनिया बदल जाएंगे फिकरो ख़्वाब'

आपने इस मिसरे में एक रुक्न बढ़ाया है,आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि बह्र-ए-हजज़ में इस छूट की इजाज़त नहीं है ।

'वही दुनिया है और हैं वही रिश्ते जो पहले थे'

ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है,देखियेगा ।

 मोहतरम तनवीर साहब बहुत बहुत मुबारकबाद पेशकश की । 

        

बहुत   सुंदर सुहाना दिल जुदा होने से पहले था

कहाँ अब साथ रिश्ता जो खुदा होने से पहले था

नहीं सोची हकीकत जो कभी तुझ को बता सकते,

बताता  है कहाँ दिल में  तेरा  होने से पहले था

मिलेंगी उस तरह की जिस तरह सोची ये राहें थी,

“मुझे भी ये गुमाँ इक तजरबा होने से पहले था”

नहीं थी बात उस में जो नज़र आई हमें थी क्यूँ,

चुराया जिस तरह दिल हादसा  होने से पहले था

सुना  है   बात  उसकी जिन्दगी में रंग भर देती,

मगर ये राज़ क्यूँ उसका  फना होने से पहले था

"मौलिक व अप्रकाशित"

जनाब मोहन बेगोवाल जी आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

 आदरणीय मोहन बेगोवाल जी बहुत बहुत बधाई स्वीकार किजिए उम्दा ग़ज़ल के लिए सादर ।

   

 आदरनीय समर कबीर जी , आप जी ने मेरी कोशिश के बारे अपने विचार दे कर उत्साह भरा , बहुत बहुत शुक्रिया , काम कि वजह से लेट हो गया और न ही बाकी ग़जलें पढ़ सका , अब पढ़ रहा हो और इनको समझने को कोशिश कर रहा हूँ 

  आदरनीय आसिफ भाई जी , बहुत बहुत शुक्रिया 

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-111 को सफ़ल बनाने के लिए सभी ग़ज़लकारों और पाठकों का हार्दिक आभार व धन्यवाद ।

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