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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-104

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 104वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब

असरार-उल-हक़ मजाज़ "लखनवी" साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"मुझ को ये भी न था मालूम किधर जाना था "

2122 1122 1122  22

फाइलातुन      फइलातुन       फइलातुन      फेलुन   

(बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ )

रदीफ़ :- जाना था  
काफिया :- अर (दर, डर, जिधर, उधर, मर, बिखर, संवर, निखर, असर,आदि)
विशेष: 

१. पहला रुक्न फाइलातुनको  फइलातुन अर्थात २१२२  को ११२२भी किया जा सकता है 

२. अंतिम रुक्न फेलुन को फइलुन अर्थात २२ को ११२ भी किया जा सकता है| 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 फरवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 फरवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 फरवरी दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

जनाब शरीफ एहमद  हसरत साहब बहुत शुक्रिया आपने ग़ज़ल पसंद की

आद0 सुरखाब बशर जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। दाद के साथ बधाई स्वीकार कीजिये

जनाब सुरेन्द्र  नाथ सिंह  साहब सुख़न नवाज़ी का बहुत शुक्रिया 

जनाब सुरख़ाब बशर साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

मोहतरम जनाब समर कबीर साहब आदाब सुख़न नवाज़ी का बेहद  मशकूर ओ ममनून हूं आपने ग़ज़ल को पसंद फरमाया 

जनाब सुरख़ाब साहब, आदाब।

यूँ तो सभी शेर क़ाबिले दाद हुए हैं ग़ज़ल में लेकिन,

ख़ार ही ख़ार नज़र आये हमें चारों तरफ़

हमने आसान महब्बत का सफ़र जाना था।   ...वाह...

.

*नाव को छोड़ दिया मैं ने हवा के रुख़ पर *   ...बेहतरीन...

"मुझको ये भी न था मालूम किधर जाना था"

इन दो अशआर के लिए अलग से दाद और मुबारक़बाद क़ुबूल फ़रमाएं।

सादर।

आली जनाब बलराम धाकड़ साहब आदाब बहुत बहुत  शुक्रिया आपने मुझ ख़ाक सार की ग़ज़ल  आपने पसंद फरमाई

आदरणीय सुरखाब बशर जी, इस उम्दा ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें। रेल वाला शेर बहुत बढ़िया है। सादर।

जनाब मिथिलेश वामनकर साहब बहुत शुक्रिया आपका

मेरे कहे को मान देने के लिए आभार आपका।

आ. भाई सुरखाब जी, बेहतरीन गजल हुयी है । हार्दिक बधाई । 

जनाब लक्ष्मण  धामी  मुसाफिर साहब  बहुत बहुत  शुक्रिया 

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