आदरणीय साथिओ,
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लघुकथा— उम्मीद
हाथ पर चढ़े प्लास्टर को देख कर पिता ने कहा, '' यह पांचवी बार है. तू इतना क्यों सहन करती है. चल मेरे साथ, अभी थाने में रिपोर्ट कर देते हैं. उस की अक्ल ठिकाने आ जाएगी.''
'' नहीं पापाजी !''
'' तू डरती क्यों है बेटी ? हम है ना तेरे साथ .''
'' वो बात नहीं है पापाजी ?''
'' फिर ?'' पिता ने बेटी की असहाय भाव से निहार कर पूछा, '' यह घरेलू हिंसा कब तक चलेगी?''
'' जब तक वे अपनी आदत नहीं छोड़ देते हैं .''
'' बेटी ! गलत आदत छुटती हैं क्या ? तू यूं ही कोशिश कर रही है.''
'' आखिर बेटी आप की हूं ना पापाजी ?'' उस ने पूरे आत्मविश्वास से कहा.
पिता कुछ समझ नहीं पाए. पूछा,'' यह क्या कह रही हो ?''
'' यही पापाजी. आप ने मेरी कलम खाने की आदत सुधारने के लिए तब तक प्रयास किया था जब तक मेरी यह गंदी आदत...'' कहते हुए बेटी मुस्करा दी और न चाहते हुए भी पिता का हाथ के आशीर्वाद देने के लिए उठ गए.
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(मौलिक और अप्रकाशित)
मौका तो देना ही चाहिए सुधरने के लिए लेकिन ख्याल भी रखना चाहिए कि सामने वाला उसे अपनी जागीर न समझ बैठे. बढ़िया रचना विषय पर, बधाई आपको आ ओम प्रकाश जी
आदरणीय विनय कुमार जी आप की प्रतिक्रिया मेरी अमूल्य धरोहर हैं. शुक्रिया आप का आदरणीय
बचपन की मिली सीख पर चलना ढीक हैं,पर हर बिगड़ी आदत को सुधरने का तरीका एक ही प्रकार का नहीं हो सकता,क्योकि कभी कभी सुधार की जगह खुद का ही नुकसान हो जाता हैं.बेहतरीन रचना,हार्दिक बढ़ाए स्वीकार कीजियेगा आदरणीय ओमप्रकाश सरजी।
आदरणीय बबिता जी आप की प्रतिक्रिया मेरी अमूल्य धरोहर हैं. शुक्रिया आप का आदरणीय
बढ़िया रचना,बधाई।
आदरणीय मनन कुमार जी आप की प्रतिक्रिया मेरी अमूल्य धरोहर हैं. शुक्रिया आप का आदरणीय
परिवार को बचाये रखने, बनाये रखने और बदनामी से बचने के लिए कई बार लोग अपनी ही सहनशक्ति की परीक्षा लेने लगते हैं। हमारा अनुभव तो यही कहता है कि धैर्य, सहनशक्ति और विश्वास से भी सुधार संभव है। हमने कई ऐसे परिवार देखे हैं जो बुजुर्गों की समझाइश से जुड़ सकते थे, लेकिन किसी तीसरे की दखलअंदाजी फिर चाहे वह पुलिस ही क्यों न हो, नियम कानून की सख्ती या देरी ही क्यों न रही हो के कारण टूट गए और बच्चे बुरी तरह परेशान हो गए। ये समझदार, जिम्मेदार और कर्तव्यपरायण महिला का उदाहरण कहा जा सकता है कि वह सुधार की उम्मीद करती है परंतु लघुकथा में कुछ ज्यादा ही हो गया। ऐसा लगता है कि पांचवी बार प्लास्टर चढ़ने के बाद भी महिला चुप है। मुझे परमश्रद्धेय स्वतंत्रता सेनानी परमआदरणीय श्री सुभाष चंद्र जी की वह पंक्तियां याद आ रही है जिसमें उन्होंने गौरों के अत्याचारों पर कहा था कि ज्यादा अत्याचार सहना और विरोध न करना भी अत्याचार को बढ़ावा देना है। हालांकि यहां संदर्भ बिल्कुल बदला हुआ है। इसलिए आपको बधाई देना तो बनता ही है।
आभार आपका।
आदरणीय आशीष श्रीवास्तव जी आप की विस्तृत समीक्षा मेरी अमूल्य धरोहर हैं. शुक्रिया आप का आदरणीय
बढ़िया रचना विषय पर ,बधाई आपको आदरणीय ओम जी ,सादर
आदरणीय बरखा जी आप की प्रतिक्रिया मेरी अमूल्य धरोहर हैं. शुक्रिया आप का आदरणीय
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