For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-95

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 95 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब जमील मालिक साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"हो मयस्सर तो कभी घूम के दुनिया देखो "

2122     1122      1122     22

फाइलातुन फइलातुन फइलातुन  फेलुन

(बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ)

रदीफ़ :- देखो
काफिया :- आ (दुनिया, प्यारा, अपना, सवेरा आदि)
 विशेष: 

१. पहले रुक्न फाइलातुन को  फइलातुन अर्थात २१२२  को ११२२भी किया जा सकता है 

२. अंतिम रुक्न फेलुन को फइलुन अर्थात २२ को ११२ भी किया जा सकता है| 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 मई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 मई  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 मई  दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 6651

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरनीय समर जी, बहुत शुक्रिया 

2122 1122 1122 22

आँख से बहता मुहब्बत का ये दरिया देखो,
फिर भी तुमको न यकीं चीर के सीना देखो।

साथ सबके न सको चल तो हो फिर क्यों शिकवा,
जो भी होता है, सही मान तमाशा देखो।

ले के जायेगी कहाँ होड़ तरक्की की हमें,
कितना आफ़त का ये मारा है जमाना देखो।

जिंदगी रेत सी मुट्ठी से फिसलती जाये,
हो मयस्सर तो कभी घूम के दुनिया देखो।

साथ सब मिल के चलें आएँगें अच्छे दिन भी,
आगे बढ़ना है 'नमन' अच्छे का सपना देखो।

मौलिक व अप्रकाशित

जनाब बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन कुछ अशआर अभी और समय चाहते हैं ।

'आँख से बहता महब्बत का ये दरया देखो

फिर भी तुमको न यकीं, चीर के सीना देखो'

मतले के दोनों मिसरे अलग अलग हैं,रब्त नहीं है ,और सानी मिसरे में व्याकरण दोष भी है ।

दूसरे शैए में भी व्याकरण दोष है ।

बाक़ी अशआर ग़नीमत हैं ।

मुशायरे में सहभागिता के लिए धन्यवाद ।

जनाब वासुदेव साहिब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है , मतला और दूसरा शेर सही करना होगा , मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |

आदरणीय बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी, मुशायरे में सहभागिता के लिए मुबारकबाद। गिरह का शेर बहुत ख़ूब हुआ

आ. मोहन जी,
प्रति सदस्य एक ही रचना प्रेषित करने   का नियम है 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
    सादर 

रोज़ उठता है किसी सच का जनाज़ा देखो

झूठ बैठा है यहाँ बन के दरोगा देखो

 

हो रहा रोज़ नया एक तमाशा देखो

हाल संसद का हुआ ऐसा निराला देखो

 

मेरी आँखों में  कभी डूब के सपना देखो

कितनी प्यारी है मेरी जान ये दुनिया देखो

 

एक नशा झूम के तारी है बगावत का यहाँ

हर कोई साथ लिए फिरता है डंडा देखो

 

मै ज़माने से लड़ा जिसकी बुलंदी के लिए

वो समझता है मुझे राह का रोड़ा देखो

 

फिर नए जुमलों से ये आज बहल जायेगी

कितनी भोली है मेरे देश की जनता देखो

 

जिसने इंसान को इन्साँ से लड़ा रक्खा है

वो बना बैठा है लोगों का मसीहा देखो

 

पैरवी झूठ की हमसे नहीं होने वाली

जाओ तुम और कहीं अपना ठिकाना देखो

 

एक सी होती है हर मुल्क के बच्चों की खुशी

हो मयस्सर तो कभी घूम के दुनिया देखो

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

जनाब नादिर ख़ान साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

मतले के सानी मिसरे में 'दरोग़ा' ग़लत है,सहीह शब्द है "दारोग़ा",एक बात ये कि दोनों मिसरों में 'ह' ख़फ़ी के क़वाफ़ी हैं जो मान्य नहीं,एक क़ाफ़िया अलिफ़ का औए दूसरा 'ह' ख़फ़ी का मान्य है,मेरी राय है कि ये मतला हटा दें ।

4थे शैर के ऊला में "एक" को "इक" कर लें ।

वैसे तो सभी शेर बढ़िया हैं, लेकिन मुझे गिरह का शेर भा गया। अच्छी ग़ज़ल के लिये हार्दिक दाद आ. नादिर ख़ान साहब।

'नादिर शाह'  नहीं दिनेश जी " नादिर ख़ान"

आपको क्या नादिर शाह दुर्रानी याद आ गए हा हा हा..

पता नहीं सर, नादिर शाह ही ज़बान पर चढ़ता है। शुक्रिया। ठीक कर दिया गया है।

जनाब नादिर साहिब आ दाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं | मतला यूं कर सकते हैं |"रोज़ उठता है सचाई का जनाज़ा देखो _झूट इंसाफ की कुर्सी पे है बैठा देखो " 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
33 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
40 minutes ago
Tilak Raj Kapoor updated their profile
44 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
54 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
58 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
1 hour ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service