आदरणीय साथिओ,
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वाह , ," लड़की आधी रात को भी जाग रही हो तो किस पिता को नींद आएगी बेटी ?" मजा आ गया आदरणीया ,
आदरणीय शशि जी, बहुत बढ़ीया व विषय को सार्थक करती लघुकथा लिखी है आपने । /क्या जिंदगी है हमारी भी , न घर में बेफिक्र हो सो पातीं हैं , और ना बाहर ही ..."/ इस एक पंक्ित का दंश इतना तीक्ष्ण है जैसे सहस्त्रों बिच्छुओं का दंश हो । यह एक पंक्ित इतनी सहजता से इतना कुछ कह रही है जिसके लिए लोगों के पूरे के पूरे उपन्यास तक लिख डाले। और कथा की अंतिम पंक्ित /लड़की आधी रात को भी जाग रही हो तो किस पिता को नींद आएगी बेटी ?"/ एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रही है। समग्रतय: एक सम्पूर्ण व सफल लघुकथा के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं निवेदित हैं।
पढ़ते हुए ऐसा लगा जैसे चित्र सा खिंच गया हो आँखों के आगे| हार्दिक बधाई आदरणीया शशि जी, रात्रि के सफर के यथार्थ को दर्शाती इस रचना के सृजन हेतु|
आदरणीया शशि बंसल जी, आपने प्रदत्त विषय के न केवल मूल संवेदना को अभिव्यक्त किया है बल्कि विषय के शाब्दिक अर्थ को भी निभा लिया. एक पिता की तीक्ष्ण दृष्टि से पूरी कथा के मूल कथ्य को शाब्दिक कर दिया. लघुकथा प्रभावोत्पादक भी है और सफल भी. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
लघुकथा तो बढ़िया है आ० नीता कसार जी, किन्तु यह प्रदत्त विषय से कैसे न्याय कर रही है? आप कुछ रौशनी डालें तो आगे बात करूँI
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