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ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 66 की समस्त रचनाएँ चिह्नित

सु्धीजनो !

दिनांक 22 अक्टूबर 2016 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 66 की समस्त प्रविष्टियाँ 
संकलित कर ली गयी हैं.



इस बार प्रस्तुतियों के लिए दो छन्दों का चयन किया गया था, वे थे दोहा और ताटंक छन्द.


वैधानिक रूप से अशुद्ध पदों को लाल रंग से तथा अक्षरी (हिज्जे) अथवा व्याकरण के अनुसार अशुद्ध पद को हरे रंग से चिह्नित किया गया है.

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, ओबीओ

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१. आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी
गीत
मिटता जाता प्रेम क्यों,बंद हुआ संगीत
संगीनों का साथ क्यों,समझ जरा ले मीत

चहुँदिक चालें चलकर चोटिल,चतुर चोर छलता जाए
धूल झोंकता है आँखों में,दुनिया में पलता जाए
आतँक फैलाकर उसने ही,चैन सभी का छीना है
धरती के सुन्दर आँगन में,कठिन किया अब जीना है

शिक्षा का प्रकाश बढ़े,इस तम पर हो जीत।

शांत हुआ है सारा आलम,शांत हुई दुनिया दारी
शांति बनाए रखने को ही,खड़ी रहे सेना सारी
सैनिक सभी यह चिंता करता,आतँक पर वह भारी है
दुश्मन को तो देख लिया है, गद्दारों की बारी है

गद्दारी से घर जले,यही जगत की रीत।

अपनी मस्ती में यों रहना,ज्यों बच्ची प्यारी-प्यारी
विकट अवस्था में रहकर भी,पुस्तक वह पढ़ती न्यारी
इस पुस्तक में ज्ञान अनोखा,राह सही दिखलाता है
सही ज्ञान को पाकर मानुष, जीवन सफल बनाता है

तब भय सकल समाप्त हो,बढ़ती जाए प्रीत।

 

द्वितीय प्रस्तुति
दोहा-गीतिका
पूरी दुनिया की नज़र देखो है इस ओर
सारे जुल्मों पर चले सही इल्म का जोर।

दुश्मन बैठा दूर है घर में है गद्दार
जाने क्यों मिलते रहें इन दोनों के ठोर?

जीना मुश्किल हो चला देखो अब दिन-रात
दहशत मुँह से छीनती है खाने के कोर।

बचपन है भोला भला हर दुख से अंजान
पुस्तक में यह ढूँढता कहीं नाचता मोर।

सड़कें सारी शांत हैं चुप हैं सारे लोग
खामोशी से ही बँधी सबकी जीवन डोर।

पत्थर की बरसात से तर होती हैं राह
मचता रहता है यहाँ समय-समय पर शोर।

‘राणा’ कागज पे कलम लिखती है तक़दीर
शब्द साधना से सदा ढूँढो इसका छोर।
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२. आदरणीय बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
दोहे
मन में धुन गहरी चढ़े, जग का रहे न भान।
कार्य असम्भव नर करे, विपद नहीं व्यवधान।।

तुलसी को जब धुन चढ़ी, रज्जु सम हुआ व्याल।
मीरा माधव प्रेम में, विष पी गयी कराल।।

ज्ञान प्राप्ति की धुन चढ़े, कालिदास सा मूढ़।
कवि कुल भूषण वो बने, काव्य रचे अति गूढ़।।

ज्ञानार्जन जब लक्ष्य हो, करलो चित्त अधीन।
ध्यान ध्येय पे राखलो, सर्प सुने ज्यों बीन।।

आस पास को भूल के, मन प्रेमी में लीन।
गहरा नाता जोड़िये, ज्यों पानी से मीन।।

अंतर में जब ज्ञान का, करता सूर्य प्रकाश।
अंधकार अज्ञान का, करे निशा सम नाश।।
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३. आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी
ताटंक छंद
ज़ब्त कर रहे है हम कब से ,सब्र न अब कर पाएँगे
दहशत गर्दों को अबके हम , ऐसा सबक़ सिखाएँगे
सरहद के उस पार सैनिकों ,हम गोली बरसाएँगे
उनको हम उनके ही घर में ,घुस कर मज़ा चखाएँगे ।

बन्द दुकानेँ सूनी सड़कें ,वीरानी सी छाई है
दहशत गर्दों ने लगता है ,फिर जुरअत दिखलाई है
कौन भला कर्फ्यू में निकले ,लेकिन यह सच्चाई है
सैनिक हैं पर हिम्मत कर के ,बच्ची बाहर आई है ।

 

दोहा छंद
हिम्मत तो देखो ज़रा ,इस बच्ची की यार
सैनिक के ही सामने ,करे सड़क को पार

दहशत का माहौल है ,सूने हैं बाज़ार 
लेकिन रक्षा के लिए ,सैनिक हैं तैयार

कर्फ्यू में तो हो गए, बन्द सभी स्कूल
बच्ची देखो है खड़ी , पढ़ने में मशगूल

अड्डे हैं आतँक के ,सरहद के उस पार
करो खात्मा सैनिकोँ ,कहती है सरकार

इनका है कोई धरम ,और न कोई ज़ात 
आतंकी केवल करें ,दहशत की ही बात
 
बढ़ो जवानों हाथ में ,ले कर तुम हथियार 
आतंकी करने लगे ,देखो सीमा पार

देख पडोसी है यही , ख्वाबोँ की ताबीर
तुझको कैसे सौँप दें , हम अपना कश्मीर

दहशत गर्दों मत करो ,तुम हम को मजबूर
टकराओगे तुम अगर , होगे चकनाचूर

(संशोधित)

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४. आदरणीय कालीपद प्रसाद मंडल जी
दोहे
होता नाम शरीफ है, पर होता मक्कार
पाक त्रास ही है वजह, बंद हाट बाज़ार |
-
सैनिक करते चौकसी, पूरे चौबिश तास
दहशत से कश्मीर का, बाधित हुआ विकास |
-
विद्यालय सब बंद है, बच्चे घर में बंद
डरे जेष्ट सब लोग है, बच्चे मस्त छुछंद |*
-
सैनिक सेना चौकसी, बन्दुक पिस्टल टैंक
बच्चे सब अब जानते, क्या रक्त-दान बैंक |
-
पाप-घडा अब भर चुका, सुनलो मियाँ शरीफ
भारत अब है काफिया, तुम तो हुए रदीफ़ |
-
सभी मार्ग हो बंद जब, टूटेगा सब आस
होगा हाल बुरा बहुत, तुम्हे नहीं आभास |
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५. आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी
ताटंक छंद
बंद सभी खिड़की द्वारे फिर, धूप कहाँ से आई है
सीले अंधेरे घर में जो, आस किरण ले आई है
जिस दिन दहशत पर भारी हर, निर्भय मन हो जायेगा
पट खुल जायेंगे विवेक के ,नयी सुबह को लायेगा

अखर रही अब तो गुड़िया को, कक्षा से छुट्टी भारी
खेल कूद से रखनी होगी, कब तक यूँ कुट्टी जारी
ठाना आज और निकली है, कैद हुआ डर झोली में
वर्दी वाले अंकल दोनों ,हैं उसकी ही टोली में
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६. आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
प्रथम प्रस्तुति
दोहा
गलती हमने की बहुत, आजादी के बाद।
इसीलिए कश्मीर में, आतंकी आबाद॥

कर्फ्यू क्यों कश्मीर में, परेशान हैरान।
छुपे हुए गद्दार से, शायद हैं अनजान॥

खरबों खर्च किए मगर, बदकिस्मत यह प्रांत।
बीत गए सत्तर बरस, रहा कभी ना शांत॥

आतंकी तो धूर्त हैं, शासक दल मतिमंद।
परेशान पीढ़ी नई, स्कूल कालेज बंद॥

बम गोली के बीच में, पढ़ने का यह जोश।

जनता है सहमी हुई, नेता हैं मदहोश।।

सैनिक पहरेदार हैं, बिटिया है बेफिक्र।

पढ़ लूँ पूरा पाठ मैं, इसी बात की फिक्र॥


आतंकी चालाक हैं, गुप चुप चलते चाल।
घाटी में रहना हुआ, अब जी का जंजाल॥

भारत माँ का ताज है, कहने को कश्मीर।
पाक चीन के ध्वज मिले, घर में बम शमशीर॥

जनता सब कुछ जानती, आतंकी है कौन।
डर है खुद की जान का, इसीलिए हैं मौन॥

आतंकी साया सदा, प्रश्न बहुत गम्भीर।
जन्नत तो बस नाम का, नर्क बना कश्मीर॥

द्वितीय प्रस्तुति
ताटंक छंद
द्वार बंद हैं सभी नगर के, बाहर तो बर्बादी है।
शमसानों सी खामोशी है, ये कैसी आजादी है॥
मिले सुरक्षा तब होता है, खाना पढ़ना सोना भी।
अगवा हो या मर जायें तो, बाहर आकर रोना भी॥

चलते पढ़ते सोच रही है, कब तक यूँ ही जीना है।

खेल कूद ना संग सहेली, बीता एक महीना है॥

मेरी बड़ी बहन है लेकिन, बाहर कभी न आती है।

खिड़की से यदि झाँके भी तो, डांट उसे पड़ जाती है॥

 

प्रश्न बहुत बच्चों के मन में, क्यों ऐसी वीरानी है।

गंध शहर की बारूदी क्यों, हर दिन यही कहानी है॥

अब ना कोई राष्ट्र विरोधी, पाक समर्थक पालेंगे।

पैलट गन या मिर्ची गन क्या, अब गोली हम मारेंगे ॥

(संशोधित)

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७. आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
दोहे
सूनी राहें बंद घर , कहते अपनी बात
मन का अँधियारा करे , कैसे दिन को रात

पुस्तक मेरे हाथ हो , फौजी कर हथियार
तब कोई कैसे करे , अपनी सीमा पार

फौजी से वो क्यों डरे , जिसके मन ना कोर
वो डर से भागे फिरें , जिनके मन में चोर

पढे लिखे समझें सही , अनपढ़ करता शोर
पत्थर पड़ा दिमाग में , वो ही है मुहजोर

सही समझ ही है सही हल प्रश्नों का मान
जड़ को सींचे आप जब , पत्ती पाती जान
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८. आदरणीय समर कबीर जी
"दोहे",
खड़े सिपाही हर तरफ़, बन्दूक़ों को तान ।
बच्ची उनके बीच में,बाँट रही है ज्ञान ।।

हम इसको क्या नाम दें,राधा या परवीन ।
पुस्तक हाथों में लिये, पढ़ने में है लीन ।।

बच्ची इस तस्वीर में,देती ये पैग़ाम ।
पढ़ने लिखने से सदा,होता जग में नाम ।।

दुनिया की हर चीज़ से,बढ़ कर है तालीम ।
दौलत जिनके पास ये,होते वही अज़ीम ।।

पैदा हो जिस मुल्क में,गुणवंती संतान ।     (संशोधित)
दुनिया के इतिहास में,है वो देश महान ।।
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९. आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी
ताटंक छन्द (प्रथम प्रस्तुति)
बहकी जनता को समझाने, निकली बिटिया प्यारी है ।
नादान बालिका ना समझे, कर्फ्यू क्या बीमारी है।
पिसती जनता गिरते आँसू, जन-जन की लाचारी है।
घाटी में जो दहशत फैली, किसने की गद्दारी है।1।

भोली-भाली प्यारी बिटिया, टहल रही है मस्ती में।
देख मात को चिन्ता होती, आग लगी है बस्ती में।
महंगी न जानो जानों को, मिलती कीमत सस्ती में।
डरने की कोई बात नहीं, फौजी घूमें गश्ती में।

धंधा चौपट न हो किसी का, काम चले हर भाई का।
मैं भी खोजूँ तुम भी खोजो, पता करें सच्चाई का।
कौन घोलता जहर दिलों में, करता काम कसाई का ।
सैनिक अपना फर्ज निभाते, रेतें गला बुराई का।3।

बाजारों का ये सन्नाटा, हाल कहे जागीरों का।
आगजनी औ दंगेबाजी, काम नहीं रणधीरों का।
भूत लात के बात न मानें, कहना सही फकीरों का।
आरपार होने दो अब तो, वक्त गया तदबीरों का।4।

जिनके कारण सूनी सड़कें, उनके दिल तो काले हैं ।
दुश्मन हमसे थरथर कांपे, भारत के रखवाले हैं।
पर न परिंदा मार सकेगा, पर को कतरन वाले हैं।
दुश्मन की छाती पर चढकर, दुर्ग भेदने वाले हैं।5।

खाली सड़कें सूनी गलियां, बुरे हाल हैं कर्फ्यू से।
सारी जनता भूखी मरती, सब निढाल हैं कर्फ्यू से।
होती शिक्षा चौपट जैसे, कैद बाल हैं कर्फ्यू से।
सेना की है महिमा न्यारी, बुने जाल हैं कर्फ्यू से।।6।

 

द्वितीय प्रस्तुति
दोहा छन्द
बेटी के इस ध्यान का,करते सारे मान। 

अंधकार के नाश को, अर्जन करती ज्ञान।1।

घाटी में कर्फ्यू लगा, सड़कें हैं सुनसान।
बाला पढती बेधड़क, हालत से अनजान।2।

मैं हूँ बेटी हिन्द की, मिली मुझे सौगात।
रोके पढने से मुझे, किसकी ये औकात।3।

छोटी सी ये बालिका, कितनी है गम्भीर।
बदलेगी इस ज्ञान से, घाटी की तकदीर।4।

दहशत की ये हेकड़ी, दूर करें हम आज।
जांबाजों को देखकर, गायब पत्थरबाज।5।

अच्छा मिले पड़ोस तो, बेशक रूठे राम ।
वहाँ शान्ति कैसे रहे, बगली नमक हराम।।6|

सैनिक अपने वीर हैं, पहरे पर दिन रैन।
दिन में कब आराम है, कहाँ रैन को चैन।।।7।

सरहद हो या शहर हो, सेवा इनका काम।

बच्चा-बच्चा खुश रहे, सुखी रहे आवाम।8।

(संशोधित)
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१०. सौरभ पाण्डेय
दोहे
कैसा तारी ख़ौफ़ है, पग-पग हैं संगीन
ऐसे धुर माहौल में, बिटिया चली ज़हीन

मिला आपको काम जो, करें आप सोत्साह
खड़े सैनिकों से कहे, बिटिया तो मनशाह

शहर-नगर में, गाँव में, वहशी हैं कुछ लोग
झेल रहा ये देश भी, कैसे-कैसे रोग ?

जाने क्यों कुछ लोग के, मन में बसा दुराव
अपने ही घर-गाँव को, देते रहते घाव

बच्चे सच्चे भाव के, नहीं ठानते बैर
उनके मन में कब रहा, कोई बन्दा ग़ैर

कर्फ़्यू है तारी मगर, निकली बाहर झूम
तितली-परियाँ पढ़ रही, बच्ची है मासूम
*************
११. आदरणीय अशोक कुमार रक्ताळे जी
ताटंक छंद.

दहशत के साए में हैं सब, मौसम भी बरसाती है |
टूटी-फूटी सड़कें देखो , पोलिस भी लहराती है,
सुन्दर प्यारी गुडिया रानी, अपनी धुन में जाती है,
सबक याद करती है अपना, सबको सबक सिखाती है ||

खौफ न उसको अब है कोई, बंद रोज ही होता है |
रोज गरजती हैं बंदूकें , तब ही अंचल सोता है,
इसीलिए निर्भीक हुई वह, गुडिया बढ़ती तेजी से,
देखे होंगे सैनिक उसने, खड़े द्वार नित के. जी. से ||

शांत-शांत दिखती हैं सड़कें, लगता अभी मनाही है |
बस महिलाओं की ही दिखती, थोड़ी आवाजाही है,
थके-थके से खड़े सिपाही, सोच रहे हल क्या होगा,
नहीं जानते हाल यहाँ का, फिर अगले पल क्या होगा ||

स्वर्ग भूमि कहलाता है जो, लगता यहीं कहीं है वो |
पैलटगन से हुआ नियंत्रित , यह कश्मीर नहीं है वो,
कहाँ गए वो भोले-भाले , यहाँ लोग बसते थे जो,
भेद न पंडित मुल्ला में था, साथ-साथ रहते थे वो ||
***********************
१२. आदरणीया वन्दना जी
दोहा
प्रगति के दिन दूर नहीं मिलें सुखद परिणाम
तन्मय होकर सब करें अपना-अपना काम

स्वप्न सदा बस देश हित एक यही अनुकाम
अंकित हों सम्मान से चन्दन चर्चित नाम

बिटिया चिंता मुक्त है रक्षित घर की सींव
प्रहरी भी निश्चिन्त लख नव नीड़ों की नींव

सेना के संकल्प का बिटिया रखती मान
देते सैनिक हौसला छुटकी भरे उड़ान
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१३. आदरणीया राजेश कुमारी जी
ताटंक छंद
खोई खोई निज दुनिया में ,जाती है नन्ही बाला
पैरों में चप्पल पहने है,लाल फ्रोक गोटे वाला
मग्न हुई पुस्तक पढने में, घूम रही मनमानी से    (संशोधित)
नन्ही बच्ची को सैनिक दो, देख रहे हैरानी से

बारूदी धरती पर जन्मी,खतरों में पलना सीखी
वीर निडर कश्मीरी बाला ,शोलों पर चलना सीखी
गोली की ये गूँज हमेशा ,बचपन से सुनती आई
वादी की जख्मी छाती पर,सपने ये बुनती आई

निश्चिन्त निडर भय मुक्त रहें ,निज धुन में चलते जाते
क्या कर्फ़्यू क्या खतरा होता ,बच्चे समझ कहाँ पाते     (संशोधित) 
युद्ध जंग अपने कन्धों पर , युवा मनुज ही ढ़ोता है
इन सब बातों से अनजाना ,केवल बचपन होता है
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१४. भाई सचिन देव जी
दोहा – छंद
कर्फ्यू के कारण पड़ी, सुस्त नगर रफ़्तार
सूनी सब गलियाँ हुईं, बंद पड़ा बाज़ार

पहने सब रक्षा कवच, हाथों में हथियार
हुडदंगों से जूझने, को फौजी तैयार

नजर आ रहा दूर से, आता शहरी एक
इसे नहीं डर फ़ौज का, बंदा लगता नेक

हुडदंगी हैं फ़ौज के, आने से नाराज
छिपकर पत्थर फेंकते, कायर पत्थरबाज

काँटों के माहौल में, खिलता एक गुलाब
लाल परी बढती चले, लेकर हाथ किताब

पढ़ते रहना है मुझे, कुछ भी हों हालात
जब रक्षक मौजूद फिर,डरने की क्या बात

जाति-धरम के नाम पर, झगड़े हैं नासूर
बड़े-बड़े दंगा करें, बचपन सबसे दूर

घाटी में कश्मीर की, जीवन है नासाज
साये में बंदूक के, पलता बचपन आज
*****************
१५. आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ेवाला
गीत - ये आतंकी है सारे

पढ़ती बाला आस जगाती, भावी कल इनका होगा

सैनिक अपने पहरा देते, मान इन्हें देना होगा |

 

कही क्रोध है कही क्षोभ है, दहशत में जनता सारी

नापाक इरादे देख पाक के, पहरा दे फौजी भारी |

अपनी कौरी ऐंठ रखे जो, देख रही दुनिया सारी,

भूल गया वो मात पुरानी, चालाकी रखता जारी |

 

युद्ध भूमि में सन्देश कृष्ण का,अर्जुन अब लड़ना होगा

सैनिक अपने पहरा देते, ------|

 

बढ़ें आत्मबल सदा उसी का, संकल्पों से जिनका नाता  

जीवन का संग्राम जीतता, कभी न विश्वास डिगा पाया

जनता में विश्वास जगाते, सदा सजग रह पहरा देते, 

मातृभूमि की रक्षा करने, ये दुश्मन से लोहा लेते  |

 

अभिमन्यु सा पूत जनें माँ, फौजी दक्ष तभी होगा

सैनिक अपने पहरा देते, -------

 

लूट पाट कर हिंसा करते,  बेजा वजह सताते हैं,

बम बारूद से धरती सहमी, बाज नहीं वे आते हैं |

शह देते है जो भी इनको, वे जनता के हत्यारें,

घात लगाएं बैठे कातिल, ये आतंकी है सारे |

 

झांसी रानी जैसी महिला, रणचंडी बनना होगा

सैनिक अपने पहरा देते, ----

(संशोधित)

**************************

१६. आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी 

ताटंक छंद 

इतिहास सुनाती आज़ादी, रक्त-रंजित यह आबादी,
लाल परी जाती आज़ादी, राजनीति ने करवादी।
बस हुकूमतों की रक्षा से, आतंकी-गुट कक्षा से,
हो पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंचित, मानवता की शिक्षा से।


शक्ति, भक्ति की अजब निशानी, आज़ादी की मतवाली,
दुर्गम राहों पर है चलती, लाल परी हिम्मतवाली,
चिठ्ठी पढ़ती और सुनाती, जब हिम्मत ग़ज़ब समेटी,
बेटी अपनी याद दिलाती, हर सैनिक को यह बेटी।

******************************

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Replies to This Discussion

आदरणीय सुरेश कल्याणजी. 

बच्ची में जो लगन है, सैनिक ने ली जान .. ’लगन’ का उच्चारण ल+गन होता है. आपकी प्रस्तुति लगन का उच्चारण लग+न जैसा उच्चारण के लिए बाह्य कर रही है.

क्या ऐसे शब्द-समूह का प्रयोग दोहा प्रथम चरण के समापन में किया जा सकेगा, जो ’लगन है’ के साथ समाप्त हो ?  नहीं. ओबीओ इस तरह के प्रयास को मान्यता नहीं देता. मूलभूत नियमों में यह आवश्यक रूप से लिखा गया है. 

बाकी पंक्तियों को सही कर दिया गया है. साथ ही देखा गया है कि आपने शहर का शह्र वाला प्रारूप लिया है. जैसा उर्दू ग़ज़लों मेंलेते हैं. अब आपकी रचनाओं में शहरका शह्र वाला रूप ही स्वीकार्य होगा. शहर और शह्र का घालमेल नहीं होना चाहिए.

सादर

आदरणीय सौरभ भाईजी

सफल आयोजन, संचालन और संकलन के लिए हार्दिक आभार ।
महोत्सव - 71 एवं 72  की रचनाओं का संकलन अब तक लंबित है। आदरणीय मिथिलेश भाई कहीं और व्यस्त हैं। इसलिए वैधानिक रूप से अशुद्ध  तथा अक्षरी अथवा व्याकरण आदि के अनुसार अशुद्ध रचनायें आप सभी के मार्ग दर्शन के बाद भी रचनाकारों के थ्रेड में पड़ीं है, संशोधन हो नहीं पाया। आदरणीय गणेश भाईजी की जानकारी में इस बात को ला चुका हूँ। आपकी जानकारी में भी लाना मैंने उचित समझा। .... सादर ।

निम्न संशोधित रचानाओं को संकलन में प्रतिस्थापित करने की कृपा करें।

दोहा छंद  क्रमांक  5 और 6

बम गोली के बीच में, पढ़ने का यह जोश।

जनता है सहमी हुई, नेता हैं मदहोश।।

सैनिक पहरेदार हैं, बिटिया है बेफिक्र।

पढ़ लूँ पूरा पाठ मैं, इसी बात की फिक्र॥

ताटंक छंद

द्वार बंद हैं सभी नगर के, बाहर तो बर्बादी है।

शमसानों सी खामोशी है, ये कैसी आजादी है॥

मिले सुरक्षा तब होता है, खाना पढ़ना सोना भी।

अगवा हो या मर जायें तो, बाहर आकर रोना भी॥

 

 

चलते पढ़ते सोच रही है, कब तक यूँ ही जीना है।

खेल कूद ना संग सहेली, बीता एक महीना है॥

मेरी बड़ी बहन है लेकिन, बाहर कभी न आती है।

खिड़की से यदि झाँके भी तो, डांट उसे पड़ जाती है॥

 

 

प्रश्न बहुत बच्चों के मन में, क्यों ऐसी वीरानी है।

गंध शहर की बारूदी क्यों, हर दिन यही कहानी है॥

अब ना कोई राष्ट्र विरोधी, पाक समर्थक पालेंगे।

ना पैलेट न मिर्ची गन से. अब गोली हम मारेंगे॥

 

............................................................

आदरणीय सौरभ भाईजी
पैलेट गन या मिर्ची गन क्या, अब गोली हम मारेंगे ..
यह पंक्ति तो सुंदर है और भाव भी स्पष्ट, पर 17 मात्रा है आज देख पाया।

पैलेट को पैलट कहें, क्या फ़र्क़ पड़ता है ? अंग्रेज़ी के शब्दों का उच्चारण विशिष्ट होता है. हम अपनी क्षेत्रीयता के अनुसार उच्चारित करते हैं. जैसे क्रिकेट को क्रि+के+ट कहें, या क्रि+क+ट हिन्दुस्तानी भाषाओं में मान्य तो दोनों उच्चारण होंगे. अंग्रेज़ी शब्दों का एकदम से अंग्रेज़ों की तरह उच्चारण कर पाना कैसे संभव है ? ऐसा फिर हर भाषा के शब्दों के साथ होता है जब वे दूसरी भाषाओं में आयातित हो कर उच्चारित होते हैं. रिपोर्ट का रपट, या पन्टलून का पतलून, या ऑफ़िसर का अफ़सर आदि-आदि ऐसी परिस्थितियों और सीमाओं का नतीज़ा है. इसके लिए हमें आग्रही नहीं होना चाहिए.

 

धन्यवाद आदरणीय भाईजी

सही कहा आपने। इसलिए पुनः अनुरोध कर रहा हूँ संकलन में प्रतिस्थापित करने के लिए।  [[ छंद की यह अंतिम पंक्ति सटीक और सधी हुई है।]]

पैलट गन या मिर्ची गन क्या, अब गोली हम मारेंगे ॥

सादर

आदरणीय अखिलेश जी, काव्य-महोत्सव के बारे में मुझे ज्ञात है. अतः मेरे संज्ञान में लाने की आवश्यकता नहीं है. आ० मिथिलेश भाई अपने कार्यालय में बहुत ही अधिक व्यस्त हैं. उन्होंने फोन द्वारा भी इसकी सूचना दी है. फिलहाल वे केरल प्रवास पर हैं. 

आते ही वे अपने दायित्व का निर्वहन अवश्य करेंगे.

सादर

आदरणीय सौरभ सर इतने कम समय में सम्पूर्ण रचनाएँ चिन्हित कर लेने के लिए बधाई। सर में मेरे दोनों चिन्हित दोहों को निम्न दोहों से बदलने की प्रार्थना कर रहा हूँ।


तुलसी को जब धुन चढ़ी, हुआ रज्जु सम व्याल।
मीरा माधव प्रेम में, विष पी गयी कराल।।

ज्ञानार्जन जब लक्ष्य हो, करलो चित्त अधीन।
ध्यान ध्येय पे राखलो, तकै सर्प ज्यों बीन।।

आदरणीय बासुदेव अग्रवाल नमन जी, आप द्वारा संशोधित पंक्तियाँ प्रतिस्थापित हो जायेंगी. किन्तु, मुझे पहले बतायें कि ’राख लो’ किस भाषा से आपने उधार लिया ? हिन्दी का शब्द ’रखना’ होता है उससे जो क्रिया बनेगी वह ’रख लो’ होगी. आप अक्सर राख लो का प्रयोग करते हैं. हिन्दी में हिन्दी-क्षेत्र की आंचलिक भाषाओं का खूब प्रयोग होता है लेकिन ’रखना’ का यदि ’राखना’ कररहे हैं तो यह एक शुद्ध प्रयोग है.

आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हूँ, ताकि आप द्वारा सुझायी गयी पंक्तियाँ आपकी रचना में प्रतिस्थापित की जा सकें. 

सादर 

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, सादर नमन, नेट की गड़बड़ी के कारण संशोधन के लिए निवेदन नहीं कर पाया दो दिन| त्वरित संकलन के लिए आपको हार्दिक बधाई |निम्न लिखित सुधार करने की कृपा करें |

 

होता नाम शरीफ है, पर होता मक्कार
पाक त्रास ही है वजह, बंद हाट बाज़ार |
-
सैनिक करते चौकसी, पूरी चौबिश तास     //पुरे// नहीं –पूरी
दहशत से कश्मीर का, बाधित हुआ विकास |
-
विद्यालय सब बंद हैं  बच्चे घर में बंद  दोनों पद में “ हैं “
डरे जेष्ट सब लोग हैं, बच्चे हैं स्वच्छंद |  //मस्त छ्छंद// के बदले – है स्वच्छंद
-
सैनिक सेना चौकसी, बन्दुक पिस्टल टैंक
इनके कारण बंद है, दफ्तर दुकान बैंक | पूरा पद बदल दिया
-
पाप-घडा अब भर चुका, सुनलो मियाँ शरीफ
भारत अब है काफिया, तुम तो हुए रदीफ़ |
-
सभी मार्ग हो बंद जब, टूटेगी सब आस  -टूटेगी
होगा हाल बुरा बहुत, तुम्हे नहीं आभास |

आ० सौरभ भाई जी, पिछले तकरीबन 3 महीने से बेतरतीब अनिर्धारित दफ्तरी टूर और काम के बोझ ने इतना दबा रखा है कि आयोजनों में उपस्थिति तक दर्ज करवा पाने में असमर्थ रहा हूँI इस दफा सोचा था कि हर प्रतिक्रिया छंद में ही दूंगा, लेकिन उसके बजाय 3 दिन गुडगाँव की धूल फांकनी पड़ीI बहरहाल, अब सभी रचनाएँ पढने का अवसर मिला हैI आयोजन से कुशल संचालन एवं संकलन को बाकायदा चिह्नित पोस्ट करने हेतु मेरी दिली बधाई स्वीकार करेंI      

जी. यही गति हमारी है. ’छन्दोत्सव’ का आपने संचालक न निर्धारित किया होता सभवतः हम भी आयोजन के लिए इतना समय न निकाल पाते. आपका आभार है कि हम इसी बहाने जो ही थोड़ा-बहुत समय दे पा रहे हैं. 

सादर 

जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब,निवेदन है कि मेरे पांचवें दोहे में 'गुणवंती'कर दीजिये, शायद इसी कारण से आपने इसे हरा रंग दिया है ।

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