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खुशियाँ और गम, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संग...

ओपन बुक्स ऑनलाइन के सभी सदस्यों को प्रणाम, बहुत दिनों से मेरे मन मे एक विचार आ रहा था कि एक ऐसा फोरम भी होना चाहिये जिसमे हम लोग अपने सदस्यों की ख़ुशी और गम को नजदीक से महसूस कर सके, इसी बात को ध्यान मे रखकर यह फोरम प्रारंभ किया जा रहा है, जिसमे सदस्य गण एक दूसरे के सुख और दुःख की बातो को यहाँ लिख सकते है और एक दूसरे के सुख दुःख मे शामिल हो सकते है |

धन्यवाद सहित
आप सब का अपना
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OBO

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dhanybaad amrendra bhai
प्रीतम जी आपको जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं| इश्वर करे यह दिन आपके जीवन में बार बार आये|

bahut bahut dhanybaad rana bhai....aap log ka aashirvaad paakar dil gad gad hua....isi tarah apna haath mere upar banaye rakhen

 

साथियों आज मेरे बड़े भैया, अच्छे मित्र, और हर दिल अजीज एवं ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के संस्थापक गणेश भैया(गणेश जी बागी) का जन्मदिन है...मैंने अपने और पुरे ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की तरफ से गणेश भैया की लम्बी उम्र की प्रार्थना करता हूँ....इश्वर आपको हर दुःख हर तकलीफ से बचाए....सिर्फ खुशियाँ ही खुशियाँ आपके पास हो.....और आपके जैसा बड़ा भाई ऊपर वाला सबको नसीब करे....

MANY MANY HAPPY RETURNS OF THE DAY GANESH BHAIYA

 

बहुत बहुत धन्यवाद प्रीतम भाई, आप सब का प्यार देखकर मन गद गद हो गया है, आज मुझे समझ में आ रहा है कि पिछले १ वर्ष में हम लोग कैसा परिवार बना लिया है, सच ईश्वर ऐसा परिवार(OBO परिवार) और आप जैसा मित्र और भाई सबको दे |
अमरेन्द्र भाई इस प्यार हेतु बहुत बहुत धन्यवाद |

गुरु जी, प्रणाम

 



गणेश जी बागी भैया को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं !! ओ बी.ओ. के ज़रिये आपने हम सबको एक मंच पर लाने और हमारी प्रतिभा को निखारने का पुनीत कार्य किया है आपको ईश्वर और शक्ति और संसाधन दे और आप और मजबूती से आगे बढ़ें !{कल बाहर था अतः आज ही बधाई स्वीकारें कृपया !}

सादर साथियों !!

 "अमर उजाला" के वाराणसी संस्करण के आज २३ मई २०११ के साहित्यिक पेज पर मेरी ग़ज़ल प्रकाशित हुई है -

ग़ज़ल -

खुदाई जिनको आजमा रही है ,

उन्हें रोटी दिखाई जा रही है |

 

शजर कैसे तरक्की का हरा हो ,

जड़ें दीमक ही खाए जा रही है |

....

(पूरी ग़ज़ल मेरे ओ बी ओ ब्लॉग पर )

 

हाल ही में केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय की गृह पत्रिका 'सूचना भारती "के वार्षिक अंक ०५ में भी मेरी ग़ज़ल और दोहे प्रकाशित हुए हैं |

 

दोहे -

 

तंगी नट भैरव हुई और भूख मदमाद ,

महँगाई के कंठ से फूटे नित नव राग |

 

ग़ज़ल -

 

जब भी कवि मन गाता होगा ,

कुछ खोता कुछ पाता होगा |

 

(पूरी रचनाएँ ओ बी ओ पर मेरे ब्लॉग में उपलब्ध हैं )

badhai ho arun bhai....aap isi tarah tarakki ki nayi bulandiyon ko chute rahe  yahi kaamna hai

 

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