आदरणीय साहित्य-प्रेमियो,
सादर अभिवादन.
ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक- 45 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
23 जनवरी 2015 से 24 जनवरी 2015, दिन शुक्रवार से दिन शनिवार
इस बार के आयोजन के लिए जिस छन्द का चयन किया गया है, वह है – रूपमाला छन्द
एक बार में अधिक-से-अधिक तीन रूपमाला छन्द प्रस्तुत किये जा सकते है.
ऐसा न होने की दशा में प्रतिभागियों की प्रविष्टियाँ ओबीओ प्रबंधन द्वारा हटा दी जायेंगीं.
रूपमाला छन्द के आधारभूत नियमों को जानने हेतु यहीं क्लिक करें.
आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 जनवरी 2015 से 24 जनवरी 2015 यानि दो दिनों के लिए रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
[प्रयुक्त चित्र अंतरजाल (Internet) के सौजन्य से प्राप्त हुआ है]
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
विशेष :
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अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...
मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय सौरभ सर, जैसा आदेश सर ...
//सबसे पहले के चक्कर में आदरणीय बागी सर के स्वागत सन्देश के पहले ही पोस्ट हो गई... फिर पता नहीं कैसे 1 मिनट बाद गायब भी हो गई . फिर पुनः प्रकाशित करने का मन नहीं किया.//
यह क्या कह रहें हैं आदरणीय मिथिलेश जी, उस रात ही चैट पर मैंने तथ्य स्पष्ट कर दिया था कि किसी तकनिकी कारणवश आपकी रचना पोस्ट नहीं हो सकी जिसे आप पुनः पोस्ट कर दें , पुनः यही निवेदन है कि आप अपनी रचना मुख्य बॉक्स में प्रस्तुत कर दें.
आदरणीय बागी सर आप सही कह रहे है. आपने पुनः प्रकाशन की अनुमति प्रदान कर दी थी. आदरणीय मंच संचालक महोदय के आदेश के बाद तत्काल मैंने पुनः रचना पोस्ट कर दी है. उस समय पुनः प्रकाशित करने में थोड़ा सा संकोच हो रहा था. सादर
//वर्णमाला तो सुना था, ये रूपमाला तो अभी सुना है //
:-))
सही कहा आपने भाई.
वस्तुतः इस मंच पर सदस्यों का क्रम बना रहता है. अधिक दिन नहीं हुए, एक समय था जब दोहा, कुण्डलिया तथा रूपमाला छन्द इस मंच के अत्यंत प्रचलित छन्द हुआ करते थे.
यही सोच कर इस बार का चित्र भाव-प्रधान अधिक चयनित हुआ. कि, छन्द सरल है, अतः रचनाकर्म का वैचारिक पहलू खुल कर सामने आयेगा..
कहते हैं न, बहता पानी निर्मला बन्धा गंदा होय.. यानि मंच का पानी निर्मल है, बँधा हुआ नहीं है.. :-)))
:-))
जय होऽऽऽ.. .
बहुत खूब भाई दिनेश कुमार जी, सुन्दर छंद रचा है ।
एक ही छंद में आप प्रदत्त चित्र की आत्मा तक पंहुच गए ..बहुत सुन्दर हार्दिक बधाई
आ, दिनेश कुमार जी इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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