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"OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक-८ ( Now closed )

परम स्नेही स्वजन,
इस बार तरही मुशायरे के लिए दो मिसरे दिए जा रहे हैं और दोनों ही उस्ताद शायरों की बड़ी मशहूर ग़ज़लों से लिए गए हैं

पहला मिसरा जनाब कैसर साहब की गज़ल से लिया गया है

शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है

मुस्तफ्फैलुन मुस्तफ्फैलुन मुस्तफ्फैलुन फा
२२२२         २२२२          २२२२          २
बहरे मुतदारिक की मुजाइफ़ सूरत

रदीफ     : लगता है
काफिया : आ की मात्रा

दूसरा मिसरा जनाब बाल स्वरुप "राही" साहब की गज़ल से लिया गया है

हम कैसे इस बात को मानें कहने को संसार कहे

मुस्तफ्फैलुन मुस्तफ्फैलुन मुस्तफ्फैलुन फेलुन फा
२२२२          २२२२         २२२२         २२     २ 
बहरे मुतदारिक की मुजाइफ़ सूरत

रदीफ     : कहे
काफिया : आर
 
 
इन दोनों मिसरों में से किसी पर भी गज़ल कही जा सकती है| नियम और शर्तें पिछली बार की तरह ही हैं अर्थात एक दिन में केवल एक ग़ज़ल, और इसके साथ यह भी ध्यान देना है की तरही मिसरा ग़ज़ल में कहीं ना कहीं ज़रूर आये तथा दिये गये काफिया और रदिफ़ का पालन अवश्य हो | ग़ज़ल में शेरों की संख्या भी इतनी ही रखें की ग़ज़ल बोझिल ना होने पाए अर्थात जो शेर कहें दमदार कहे |
आप सभी फनकारों से नम्र निवेदन है कि  कृपया एक दिन मे केवल एक ही ग़ज़ल प्रस्तुत करे, एक दिन मे एक से अधिक पोस्ट की हुई ग़ज़ल बिना कोई सूचना दिये हटाई जा सकती है |

मुशायरे की शुरुवात दिनाकं 23 Feb 11 के लगते ही हो जाएगी और 25 Feb 11 के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |

नोट :- यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश "OBO लाइव तरही मुशायरा" के दौरान अपनी रचना पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी रचना एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके  इ- मेल admin@openbooksonline.com पर 23 फरवरी से पहले भी भेज सकते है, योग्य रचना को आपके नाम से ही "OBO लाइव तरही मुशायरा" प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है |

फिलहाल Reply बॉक्स बंद रहेगा, मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ किया जा सकता है |

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह

 

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Replies to This Discussion

शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता  है 
दर्द-ए-गम में कोना-कोना डूबा लगता है ...

बहुत ही लाजवाब शेर बाँधा है मिसरे के साथ .... 

हरकीरत जी ... पूरी ग़ज़ल में गजब की संवेदनाएं समेटे हैं ....

दिगम्बर जी पहली बार स्वतंत्र रूप से ग़ज़ल लिखी है ...
गुरु आप सभी हैं इस्लाह दीजियेगा ......
भीगा सा है अखबार आज फिर ये हाकर का
हुआ कोई सरहद में फिर धमाका लगता है ...........vakai bahut badiya ..........
शुक्रिया ब्रिज जी ......

भीगा सा है अखबार आज फिर से हाकर का,

हुआ कोई सरहद (में) ( पे) फिर धमाका लगता है।

 

ख़ूबसूरत शे'र , उम्दा ग़ज़ल,,  मतला भी मन के तार को छूता है ,

एक टिप्पणी, अन्यथा न लें " दर्द-ए-ग़म " की जगह दर्द-ओ-ग़म "हो

तो  ये शे'र मेयारी शे'र बनता।

 

 

ji shukariyaa Sanjay ji ....

donon galtiyaan sudhaar li hain .....

भीगा सा है अखबार आज फिर ये हाकर का
हुआ कोई सरहद में फिर धमाका लगता है

 

bahut hi khubsurti se sajaya hai aapne is gazal ko....shaandar prastuti

हरकीरत जी , बेहद खुबसूरत ख्यालात के साथ आपने प्रस्तुति दी है , सभी शे'र उम्द्दा लगे , मतला भी सुन्दर कहा है साथ ही भीगा अकबार वाला शे'र और मकता बेहतरीन लगा |

बधाई इस खुबसूरत अभिव्यक्ति पर |

वाह वाह क्या ग़ज़ल कही है हरकीरत जी, बहुत बहुत बधाई
हरकीरत जी बेहतरीन गज़ल के लिए ढेरो दाद कबूलिये| पूरी गज़ल भावनाओं से ओतप्रोत है| गिरह भी कमाल की बंधी है| बहुत बहुत बधाई|
मेरे दिल में तेरी यादों का रेला लगता है ,
शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है |
 
सूख गए हैं आंसू उसकी आँखों के अब तो ,
बेपनाह दर्द उस शख्स ने यूँ झेला लगता है |
 
मिलाता है कभी हमको कभी जुदा है कर देता ,
खुदा को ये कठपुतलियों का खेला लगता है |
 
कहेंगे लोग कुछ तो लोगों की तुम फ़िक्र न करना ,
दुपट्टा रंग वही लाता है जो मैला लगता है |
 
चाँद शब् को सुनाता है हर रोज़ इक नया किस्सा ,
भरा दुनिया के किस्सों से उसका झोला लगता है |
 
चढ़ा रखा है चेहरों पर इक मासूम रंग सबने ,
हर सूरज ने है पहना तारों का चोला लगता है |
 
इश्क बिन अधूरा है जहां में यारों हर कोई ,
बिन राधिका के श्याम भी अकेला लगता है | 
बहुत खूब ......
सूख गए हैं आंसू उसकी आँखों के अब तो ,
बेपनाह दर्द उस शख्स ने यूँ झेला लगता है |

गमगीन कर गया ये शे'र ....
 
मिलाता है कभी हमको कभी जुदा है कर देता ,
खुदा को ये कठपुतलियों का खेला लगता है |

शायद......
 
कहेंगे लोग कुछ तो लोगों की तुम फ़िक्र न करना ,
दुपट्टा रंग वही लाता है जो मैला लगता है |

क्या बात है ....

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