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ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 41 में सम्मिलित सभी गज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

परम आत्मीय स्वजन

सादर प्रणाम,

मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| बह्र आसान नहीं थी, गिरह लगाना भी दुरूह कार्य था पर आप सभी के उत्साह और लगनशीलता ने इस बार मुशायरे की रंगत ही बदल दी| इतनी ख़ूबसूरत गज़लें कही गई की दिल बाग़ बाग़ हो गया है| इस बार के मुशायरे में हमें नए सदस्य भी मिलें हम उनका स्वागत करते हैं| कुछ पुराने सदस्य कई दिनों के बाद दिखाई दिए, उनकी मुसलसल अनुपस्तिथि उनके कलाम में भी साफ़ दिखाई दी| कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि हमें उम्मीद से ज्यादा मिला है, इसलिए आप सभी बधाई के पात्र हैं|

परम्परा को निभाते हुए मिसरों में दो रंग भरे गए हैं| लाल अर्थात बेबह्र और नीला अर्थात ऐब वाले मिसरे| उच्चारण के दोषों को नज़रअंदाज किया जा रहा है|

Tilak Raj Kapoor

जरा पास आ के कहो नया जो कभी किसी से कहा न हो
मुझे क्या पता, तुम्‍हें क्या पता, वही दर्दे दिल की दवा न हो।

करें आज तो यहॉं कुछ नया जो कभी किसी ने किया न हो
छुऍं प्यार से कोई दिल जिसे किसी और दिल ने छुआ न हो।

मेरी राह में कई मोड़ थे मैं थमा नहीं यही सोचकर
’इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो ।

गयी तीरगी की खि़जां मगर, रही तल्खि़यॉं तेरे साथ में
जो बुरा हुआ उसे भूल जा उसे भूल यूँ कि हुआ न हो।

अभी जि़ंदगी है बहुत पड़ी यही सोच कर मैं खड़ा रहा
मुझे हर किसी ने कहा तो था सरे राह थम के खड़ा न हो।

न रफ़ीक है, न रकीब है, न ही कोई दिल के करीब है
मुझे सिफ़्त दे ऐ खुदा, कभी मेरे दिल में इस का गिला न हो।

ये हवा के रुख़ का असर हुआ कि दरख़्त से गयी पत्तियॉं
यही हश्र तो है मिला उसे जो हवा के साथ चला न हो।

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शकील जमशेदपुरी

किसी रोज वो किसी गैर के, कहीं सीने से वो लगा न हो
न दुखाए दिल न करे दगा, कभी इतना भी वो बुरा न हो

है गुनाह गर कोई सिर मेरे, तेरे हाथ से मेरा कत्ल हो
कहीं तोड़ दे न तआल्लुक, है दुआ कि ऐसी सजा न हो

यही रास्ते यही मोड़ हैं, यहीं प्यार ने की थी शायरी
'इसी मोड़ पर मेरे वास्ते, वो चिराग ले के खड़ा न हो'

जिसे नाज था, था गुरूर भी, कभी अपने ऊंचे मकान पर
वहीं धूल है लगी जालियां, कोई इसमें जैसे रहा न हो

तुझे चाहूं में दिलो जान से, मेरी सांस में तेरी सांस हो
है दुआ यही कभी भूल से, तेरे हक में मुझसे खता न हो

तुझे देखता है शकील यूं, कि नजर भी रहती है बेखबर
तुझे चूम लूं मेरी जान यूं, तेरे होंठ को भी पता न हो

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गिरिराज भंडारी

कहाँ जाये वो कोई ये कहे जिसे रास्ते का पता न हो
न शऊर हो जिसे रात का जिसे दिन कहीं पे मिला न हो

मेरी खामुशी को समझ ज़रा तू यक़ीन कर मेरी ज़ात पर
मै खमोश हूँ जो मैं सच कहूँ तो तेरा कहीं से बुरा न हो

मेरा दिल धड़क के ये कह रहा कहीं वो मिले न यहीं कहीं
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग ले के खड़ा न हो

मेरी चाहतें मेरी राहतें कहीं छीन के जो चला उसे
मेरी सांसे भी कहो छीन ले कहीं दिल अभी भी भरा न हो

वो जो उठ के फिर न खड़ा हुआ मेरे दिल ने मुझ से यही कहा
उसे हाथ दे के उठा ले तू वो किसी नज़र से गिरा न हो

वो जो दिल तड़प के है रो रहा ज़मी आँसुओं से भिगो रहा
उसे देख के मुझे शक हुआ कहीं दिल मिरा ही गुमा न हो

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Nilesh Shevgaonkar

तेरा नाम लब पे सजा न हो, तेरे दर पे सर जो झुका न हो,
वो बशर जहान में हो बड़ा, पे मेरी नज़र में बड़ा न हो.
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जो बुरा लगे वो बुरा न हो, जो भला लगे वो भला न हो,
ज़रा आँख खोल के देख ले, कोई राज़ तुझ से छुपा न हो.
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मेरे रास्ते, मेरी मंज़िलें, तेरे दम से है, ऐ मेरे ख़ुदा,
मुझे उस सफ़र पे न भेज तू, जहाँ सर पे साया तेरा न हो.
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है गुनाह मेरे बड़े बड़े, मुझे माफ़ कर ऐ ख़ुदा मेरे,
कभी भूल जाऊं अगर तुझे, मेरी भूल पर तू ख़फ़ा न हो.
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मुझे थाम ले जो गिरूँ कहीं, ऐ ख़ुदा दिखा मुझे रास्ता

नई राह मुझ को नवाज़ दे, मेरा रास्ता जो खुला न हो.
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जो नज़र में आ के है बस गया, वो मुकाम दिल में करेगा क्या,
कहीं रब्त जिस्म का हो न ये,जहाँ दिल ही दिल से मिला न हो.
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ज़रा नाज़ुकी से तू पेश आ, है ये चोट दिल पे नई नई,
न तू ठेस दिल को लगा मेरे, कोई ज़ख्म फिर से हरा न हो.
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तू सफ़र में साथ मेरे चले, है ये आरज़ू, है यही तलब,
मुझे डर मगर इसी बात का, तुझे रास्ते का पता न हो.
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मेरी रूह भी है हवा हुई, मेरा जिस्म ख़ाक में मिल गया,
वो टटोलता है यूँ दिल मेरा, जैसे अक्स दिल से मिटा न हो.
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यूँ तो ज़ुल्मतें थी सफ़र में पर, जहाँ मोड़ था यही आस थी,
“इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चिराग़ ले के खड़ा न हो.”
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कई बोतलें मै हूँ पी चुका, न शराब 'नूर' चढ़ी कोई,
लगी साकिया की लगन जिसे, उसे और कोई नशा न हो

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vandana

कोई एक फूल मिसाल का भले जिंदगी को दिया न हो
मेरी हरक़दम रही कोशिशें मुझे रहगुज़र से गिला न हो

तेरी आस में यही सोचती मैं तमाम उम्र जली बुझी
कहीं अक्स तेरी निगाह में मेरी फ़िक्र से ही जुदा न हो

नयी सरगमों नए साज़ पर है धनक धनक जो नफ़ीस पल
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो

है उरूज़ बस मेरी आरज़ू मेरी गलतियों को सँवार तू
मेरी साँस यूँ भी कफ़स में है कोई और दर्द खुदा न हो

जरा देख आँखों की बेबसी वो जो थे जवां ढले बेखबर
अरे उम्र के किसी दौर में उसी दर पे तू भी खड़ा न हो

न बगावतें न रफाक़तें ये सियासतों की हैं चौसरें
तो झुका लिया यूँ शज़र ने सिर कहीं आँधियों को गिला न हो

ढले शाम जब भी हो आरती दिपे तुलसी छाँव में इक दिया
तभी तबसरा हो मकीनों में कोई फ़ासला तो बढ़ा न हो

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umesh katara

न मिला हमें कोई शख्स वो जो कि जिन्दगी से लडा न हो
अजी हारके कभी मौत से कि जहाँ से फिर जो गया न हो

अभी ढूढता हूँ जहान मैं कभी बेवफा वो ही मिल सके
किसी मोड पर मेरे वास्ते वो चराग ले के खडा न हो

किसी दास्ता से भी कम नहीं वे चिराग सी मेरी जिन्दगी
कोई है नहीं मेरे दर्द पर मेरे हाल पर जो हंसा न हो

तु करीब है मेरे पास है तु नसीब है मेरे इश्क का
ये सवाल है अभी सामने तेरे जह्न में भी दगा न हो

ये हवा यहाँ एसी चल रही कि हो गया है धुआं धुआं
कि धुआं के साथ में जह्र भी ये यहाँ पे घुला न हो

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कल्पना रामानी

मेरी एक छोटी सी भूल की, है ये इल्तिज़ा कि सज़ा न हो।
जो सज़ा भी हो तो मेरे खुदा, मेरा प्यार मुझसे जुदा न हो।

बिना उसके फीके हैं राग सब, न लुभाती कोई भी रागिनी,
है अधूरा सुर मेरे गीत का, जहाँ साथ उसका मिला न हो।

वो नहीं अगर मेरे पास तो, कटे तारे गिन मेरी हर निशा,
कोई पल गुज़रता नहीं कि जब, उसे याद मैंने किया न हो।

मैं हूँ सोचती बनूँ मानिनी, वो मनाए मुझको बस एक बार,
ये भी है कि वो भी मेरी तरह, कहीं अपनी ज़िद पे अड़ा न हो।

नहीं गम मुझे मेरे मन को वो,क्यों न आज तक है समझ सका,
मेरा मन तो है यही चाहता, कभी मुझसे उसको गिला न हो।

उसे ढूँढते ढली साँझ ये, तो भी आस की है किरण अभी,
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते, वो चिराग लेके खड़ा न हो।

है तमन्ना बस यही “कल्पना”, वो नज़र में हो जियूँ या मरूँ,
नहीं मुक्त होगी ये रूह भी, जो उसी के हाथों विदा न हो।

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rajesh kumari

ये तपिश है क्या उसे क्या पता जिसे रश्मियों ने छुआ न हो
न कुरेदिए किसी घाव को ज़रा देखिये वो हरा न हो

ज़रा देखिये वो शजर खड़ा जो उदास है फटेहाल है
किसी फूल का या किसी कली का वजूद आज मिटा न हो

जो घमंड से ही जिया सदा नहीं मानता हो खता कभी
उसे क्या मिले वो ख़ुदा कभी जो दरों पे उसके झुका न हो

कभी गुनगुनाती ये वादियाँ कभी गुनगुनाती वो घाटियाँ
ज़रा पूछिए किसी अब्र से जो अदा पे उनकी फ़िदा न हो

मुझे राह में जो सदा मिली हैं जुनून से भरी आंधियाँ
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग लेके खड़ा न हो

तेरे रास्ते वो नए-नए मेरी मंजिले ये जुदा-जुदा
ये पता मुझे तूभी जानता मेरी बात से तू ख़फा न हो

वो हिले-मिले वो खिले-खिले जो पलाश देखे नए-नए
ज़रा ढूंढिए किसी शख्स को जो सदा पे उनकी रुका न हो

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गीतिका 'वेदिका'

तुझे गम यही कोई आदमी, किसी हाल तुझसे बड़ा न हो
न वफा मिलेगी तुझे कहीं, तेरे दिल मेँ गर जो वफा न हो!

ये जहाँ है तेरी ही सल्तनत, तुझे फिक्र होनी ही चाहिए
तू खुदा ये तेरी खुदाई है, कोई सर झुका के खड़ा न हो!

या कि दूर हो, या कि पास हो, न उदास हो कभी जाँ मेरी
वो हमेशा खुश ही रहे खुदा, मेरी जान मुझसे खफा न हो!

न मशाल है मेरे हाथ मेँ, न तो आसमां मे ही चाँद है
इसी मोड पर मेरे वास्ते, वो चराग लेके खड़ा न हो!

नहीं देख पाये जरा भी हम, है मलाल तुम जो चले गए
सरेराह कहती थी तीरगी, कभी सूर्य ऐसा हुआ न हो!

तुझे दूर कर दें नज़र से हम, कि कठिन बड़ा था ये फैसला
भले साथ मेरे न हो भला, कहीं साथ तेरे बुरा न हो!

चलो साथ ही किसी रहगुज़र मे बसेरा करके जियेँ-मरें
यूँ जियेँ जहाँ की नज़र मे हों, यूँ मरें जहाँ को पता न हो!

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CHANDRA SHEKHAR PANDEY

कहीँ यार अक्स ये चाँद का किसी आईने में फँसा न हो,
किसी संगदिल के रहम पे वो कहीं ठोकरों में पड़ा न हो.

जो निगाहे यार में बस गया, जो नजर में उसकी सँवर गया
उसे पाँच वक्त नमाज क्या उसे ताब कोई खुदा न हो।

है जली ये हिज्र में जिन्दगी यही तिश्नगी ही नसीब है
वो समंदरों को पिए गये कभी जाम फिर भी भरा न हो

वही खोजता फिरुँ रहनुमा मेरी हस्ती स्याह सँवार दे,
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग लेके खड़ा न हो।

हमें जाहिदी भी कुबूल है ये जलालतें भी कुबूल हैं,
मैं जहान छोड़ के जा रहा तेरा सर कभी भी झुका न हो।

 

 

Sachin Dev

मनाना चाहता हूँ तुझे पर तू जिद पे अब भी अड़ा न हो
रजा का है तेरी इन्तजार पर मेरी उम्र से बड़ा न हो

यूँ तो इम्तिहाँ तकदीर-ए-मोहब्बत मैं शामिल है मगर
टूटकर बिखर जाए कोई इम्तिहाँ इतना भी कड़ा न हो

था हमराह तो नापाक कहता रहा मोहब्बत को मेरी
गया तो इल्जाम कोई बाकी न था जो उसने जड़ा न हो

उसकी बातों को कहीं भी लिखकर नहीं रखा हमने मगर
जगह मिलती नहीं वो जहाँ लम्हा याद का पड़ा का न हो

राहों मैं रोशनी न रही तो क्या हर मोड को देखते हैं
"इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो"

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Dr Ashutosh Mishra

तेरी बेरुखी मेरी जान ले ये न सोच मुझ को खला न हो
ए हसीं शमअ तुझे चूमकर वो शलभ नहीं जो मिटा न हो

है ये बात भी तेरे काम की तू गुमाँ न कर मेरे हमसफ़र
कोई आदमी कोई जिन्दगी कोई पद वतन से बड़ा न हो

मेरी आरजू मेरी हसरतें तू सँवार दे मेरी हर ग़ज़ल
है ये सच नहीं जो है दौड़ता वो कभी जमी पे चला न हो

मेरी इल्तिजा यूं सभी से है मेरे दोस्तों मेरी भी सुनें
है बजूद ये मेरा धूल सा कोई बज्म में यूं खड़ा न हो

तू यकीन से मुझे कह रहा तेरी बात का भी यकीन है
तो ही सोच खुद वो भी दिल है क्या जो यूं चांदनी में जला न हो

है ये जिन्दगी मेरे हाथ में मुझे देखना ही पड़े सदा
मैं ये जिन्दगी यूं गुजार दूं मेरी जिन्दगी में खता न हो

यही मोड़ था जो सबब बना मेरे हमसफ़र की ही मौत का
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चिराग ले के खड़ा न हो

मेरे दोस्तों न बुरा कहो जो खता हुई कभी भूल से
ये ही सोचता हूँ खुदा कसम मेरे दोस्तों का बुरा न हो

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Abhinav Arun 

वो ज़ुबां न दे जो शहद न हो न दे लब कि जिन पे दुआ न हो ,
दे जिगर तो साथ दे नेकियां वो बयान दे जो डिगा न हो |

दे हयात तो दे फ़कीर सी दे मिज़ाज तो दे मलंग सा ,
मुझे मंज़िलें न दिखा करें मुझे रास्तों का पता न हो |

मेरी हर ग़ज़ल रहे खूं से तर मेरे हक़ में दर्दे जहान कर ,
मुझे ज़ख्म दे तो मेरे ख़ुदा दे वो ज़ख्म जिसकी दवा न हो |

ये सियाहियाँ भले ही मुझे मेरे हर क़दम पे मिलें मगर ,
वो चराग़ दे मेरे हाथ में जो कि आँधियों से डरा न हो |

कभी आरज़ू ये नहीं रही कि फ़रिश्तों सी हो ये ज़िन्दगी,
बनूँ आदमी तो वो आदमी जो नज़र से अपनी गिरा न हो |

इसी मोड़ पर हुए हम जुदा यहीं हमने चुन लीं थीं दूरियाँ ,
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चिराग़ ले के खड़ा न हो |

उसी घोसले पे तेरी नज़र जो हुनर की एक मिसाल है ,
उसे तोड़ते हुए सोचना कहीं उसमे कोई बया न हो

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SANDEEP KUMAR PATEL

जो पसंद हो सभी लोगों को किसी के लिए भी बुरा न हो
मुझे आदमी वो बता ज़रा कभी जिससे कोई खता न हो

जो करे मदद तेरी स्वार्थ बिन जिसे फिक्र तेरी सदा रहे
न बिसार देना उसे भी तू के कहीं वो तेरा खुदा न हो

वो तो ख्वाब देखे गगन के ही उसे है परों पे गुमान यूँ
उसे क्या पता है सँभलना क्या जो के लडखडा के गिरा न हो

मेरे हाथ ख़ाक में थे सने जिसे देख वो सभी हँस दिए

उन्हें क्या पता क्या है ख़ाक में किसी गाँव में जो गया न हो

कभी जीतना कभी हारना कभी रूठना कभी मानना
है कहो न इश्क में क्या मजा किसी बात से जो गिला न हो

हो गुरुर में जो तना खडा औ हवा को समझे है बस हवा
उसे है उखड़ना ही एक दिन जो किसी के आगे झुका न हो

करे फिक्र यूँ ही वो रात दिन मेरी जान तू रहे खुश सदा 
न पिता रहे कोई चैन से कभी लाडली जो विदा न हो

किसी के निशाँ तो यहाँ पे हैं कहीं दूर उठता धुआँ भी है 
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो

रहे “दीप” वो भी तो गमजदा जले उम्र भर चाहे दैर में
किसी भी गरीब का घर अगर कभी रौशनी से भरा न हो

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सूबे सिंह सुजान

ए-मेरे खुदा मेरे हाथ से तो, कभी किसी का बुरा न हो 
जो मेरे करम हैं मुझे उन्हीं का मिले, किसी का दिया न हो

ए- मेरे खुदा तेरी रहमतें, मेरे साथ - साथ हमेशा रहें, 
किसी बेगुनाह को मेरी वजह से तो कभी भी सजा न हो

तू मेरी तलाश में जिन्दगी, मैं तेरी तलाश में जिन्दगी, 
जरा गौर से मेरी और देख, कंही खुशी में दग़ा न हो

बडे गौर से, मैं हरेक मोड पे, देखता हूँ उसी को बस, 
इसी मोड पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खडा न हो

यूँ तो उसकी बातों में बेहिसाब मिठास भी भरी है मगर,
वो पलट के देखता है, इस आँख से कोई आँसू गिरा न हो।

मैं तेरे खयाल में खुश रहूं, तू मेरे ख़याल में खुश रहे,
ए- सनम तुझे भी गिला न हो, के कभी मुझे भी गिला न हो.

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Atendra Kumar Singh "Ravi"

हमें इश्क का सिला जो मिला खुदा ये हमारी सजा न हो
जला है दिया मेरे प्यार का उसे वो बुझा के चला न हो 

वो है हर ख़ुशी मेरी ज़िन्दगी जिसे पा किया है जो बंदगी
मेरे दिल में यूँ बसा है कहीं घुमा के नज़र वो खफा न हो 

जो चले थे हम तेरे साथ में वो नज़ारे तब मेरे पास थे
जला है ये दिल मेरा आज यूँ जो लुभाये फिर से घटा न हो 

थे वो सिलसिले बनीं दास्ताँ , मेरे प्यार से सजा आशियाँ
मिला के नज़र हुआ जो असर उसे भी भुला के चला न हो 

हमें है यकीं, यहीं है कहीं, मेरी याद में, मेरे प्यार में
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो 

ऐ मेरे नयन करें क्या जतन, है लगाया क्यूँ दिलों में अगन
लगा के अगन कहीं उनका मन किसी और में तो रमा न हो

अजी कैसे अब दिखा दूँ ये दिल की लगी ,है जो मेरी आशिकी
उठा दर्द है यहीं पर कहीं पे रुला के ‘रवि’ को गया न हो 

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शिज्जु शकूर

वो कई दिनों से ख़मोश हैं, कहीं उनका दिल ही दुखा न हो
मुझे क्यूँ न जाने लगे यही, कि वो शख़्स मुझसे ख़फ़ा न हो

ये हुआ न शाख से टूट के, कभी फूल कोई गिरा न हो
कहीं इश्क़ में यूँ कभी कोई, किसी से जुदा ही हुआ न हो

यही मोड़ है कि जहाँ उसे, किसी रोज़ छोड़ गया था मैं
“इसी मोड़ पर मेरे वास्ते, वो चिराग ले के ख़ड़ा न हो”

नई आदतों ने बदल दिया है मिजाज़े-दह्र को आजकल
सभी खुद से हैं यहाँ अजनबी, लगे खुद से कोई मिला न हो

मेरे लफ़्ज़ में तेरा अक्स है या हरूफ़ में तू समाई है
ये हरेक पल लगे क्यूँ मुझे, तू भी मुझसे जान जुदा न हो

चलो अब के ढूँढते हैं नया कोई रास्ता नई मंज़िलें
चलें हम चलो उसी राह पर कभी जिसपे कोई चला न हो

है जुदाइयाँ जो नसीब में, तो विसाले-यार भी हो कहीं
मुझे ढूँढता सरे रहगुज़र, वो उदास हो के गया न हो

यूँ दुआ-ए-ख़ैर करे कोई, मेरी लौ ज़रा तो सँवार दे
मैं वही चराग़ हूँ दोस्तो, जो जिया न हो जो जला न हो

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डा. उदय मणि कौशिक

जो बुरा हुआ मेरे साथ में किसी और का यूँ बुरा न हो
या तो दिल किसी से मिले नहीं या मिले अगर तो जुदा न हो

मुझे फिक्र है जहा तीरगी ने अलग किया था हमें कभी
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चिराग ले के खडा न हो

तुम्हें क्या लगेगा बताइये जो ये सब तुम्हारे भी साथ हो
की सजा मिले उस बात की जो गुनाह तुमने किया न हो

तू उदास क्यों है हमारे दिल भला जिंदगी के फरेब से
यहाँ कौन है ये बता हमें जिसे जिंदगी ने छला न हो

उसे किस तरह से पता चले की ये भूख कैसा बबाल है
जो की दिक्कतों में रहा न हो कभी गर्दिशों में पला न हो

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Sarita Bhatia

जो पसंद हो यूँ अवाम को बुरा सोचता वो जरा न हो
मुझे आदमी वो बना खुदा कभी जिससे कोई खता न हो /

खुदा बक्श दे मुझे रहमतें बनूँ आदमी मैं यूँ नेक दिल
कहीं जानवर मेरे भीतरी कभी मुँह उठा के खड़ा न हो /

बनी दरमियाँ जो भी दूरियां मुझे सालती दिनों रात हैं
मिटा दूरियां मेरे वास्ते चला पास आ यूँ खफा न हो /

मुझे छोड़ दे इसी रास्ते मुझे इंतज़ार है यार का
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग ले के खड़ा न हो /

मेरी मखमली सी है रूह जो मुझे चुभ रही किसी शूल सी
सजा क्यों मुझे ऐ खुदा अगर जो गुनाह मुझसे हुआ न हो /

बढ़ी बेटियाँ नहीं भा सकें तू उदास क्यों है बता जरा
क्या समझ सके वो है गर्दिशें जो पिता अभी बना न हो /

***********************************

Ajeet Sharma 'Aakash'

कभी इस तरह मेरे दिल में आ कि मुझे भी ख़ुद ये पता न हो
हो ज़माने में कोई वाक़या कभी अब तलक जो हुआ न हो .

अभी किसने दर पे सदा-सी दी ये जो आहटें-सी हैं कैसी हैं
कभी दिल कहे कि वो आ गया, कभी सोचता हूँ हवा न हो .

ये जो दर्द है वो क़बूल कर इसे प्यार से तू गले लगा
मुझे लग रहा है यूँ हमनशीं यही दर्द दिल की दवा न हो .

तू नहीं तो क्या है ये रौशनी, बड़ी बेसुरी-सी है ज़िन्दगी
वो है कौन सा ग़मे-जां बता जो बिछड़ के तुझसे मिला न हो .

ये धुआं -धुआं सा है किस तरफ़ ज़रा देखना , ज़रा देखना
कहीं आग दिल में लगी न हो, कहीं घर किसी का जला न हो .

मेरे पास आ तुझे ओढ़ लूँ , तुझे चख लूँ मैं, तुझे पी लूँ मैं
रहे वो नशा मुझे उम्र भर किसी और शै का नशा न हो .

कोई तीरगी भरा मोड़ हो यही सोचता है ये दिल मेरा
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो .

***************************

 

 

 

 

किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा कहीं मिसरों को चिन्हित करने में गलती हुई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

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आदरणीय राणा प्रताप सर गजलों का संकलन का कार्य लाल नीले रंगों के साथ करना वो भी इतनी जल्दी इस महती कार्य के लिए आपको बहुत बहुत बधाई सहित सादर धन्यवाद स्नेह सदा मंच पर यों ही बना रहे

तत एक प्रश्न है की

मेरा यह मिसरा बेबह्र कैसे हो गया

हो गुरुर में जो तना खडा औ हवा को समझे है बस हवा

क्या औ को गिराया नहीं जा सकता है ..................जबकि दर्दो गम ............को  २ २ २  या २ १ २ भी पढ़ सकते हैं ...............कृपया मार्गदर्शन करें सादर

आदरणीय संदीप जी 

'और' जिसका वज्न २१ होता है को अधिकतम गिराकर 'अर' की तरह २ के वज्न में बाँधना तो जायज़ है पर उसी गिराकर 'अ' के वज्न में बांधना ठीक नहीं है, जबकि हिंदी में इसके समतुल्य एक शब्द है 'व'|

इजाफत और वावो अत्फ़ के माध्यम से जुड़े अलफ़ाज़ की तुलना आज़ाद अलफ़ाज़ से करना भी जायज़ नहीं है|

सादर

आदरणीय राणा प्रताप सर जी आपका ह्रदय से आभार स्नेह और मार्गदर्शन यूँ ही बनाये रखिये

जय हो

वाह आदरणीय राणा प्रताप सर उधर मुशायरा समाप्त हुआ नहीं कि इधर सभी गज़लें चिन्हित मिसरों के साथ छाप दीं आपने. आपका श्रम सराहनीय है इतनी शीघ्र आपने यह कार्य किया. जय हो

इस बार की ज़मीन वाकई बहुत कठिन थी,सफल आयोजन के लिये मै मंच संचालक जी को बधाई देता हूँ।
इस मुशायरे के प्रतिभागियों मैं खासतौर पे डॉ आशुतोष जी को बधाई देना चाहूँगा जिन्होने हालिया समालोचना के बाद सुधार करते हुये इस कठिन ज़मीन पर अच्छी ग़ज़ल कही और ग़ज़ल मुकम्मल काले रंग में हैl

आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी , 
मेरी ग़ज़ल के चौथे शेर में थोड़ी तरमीम की थी ....वो शेर बाद में यूँ हो गया था ..(ये मुशायरे में इन्कॉर्पोरेट कर लिया गया था ) 
.
मुझे थाम ले जो गिरूँ कहीं, ऐ ख़ुदा दिखा मुझे रास्ता
नई राह मुझ को नवाज़ दे, मेरा रास्ता जो खुला न हो. ..... कृपया इसे अपडेट कर लें ..
लाल / नीले से बचे रहना ही बहुत बड़ी उपलब्धि है :))))
सादर 

अपडेटेड सर

समस्त ग़जलों का त्वरित संकलन वो भी करेक्शन के साथ,इस श्रमसाध्य कार्य के लिए आपको तहे दिल से बधाई राणा प्रताप जी  

आदरणीय राणा प्रताप सर , मुशायरे की तमाम गज़लों का चिन्हित संकलन इतनी जल्दी उपलब्ध कराने के लिये आपको बहुत बधाई , साधुवाद !!!!!

महोत्सव के सफल आयोजन के लिये दिली मुबारक बाद कुबूल करें !!!!

आदरणीय महोदय,

संकलन का श्रम-साध्य कार्य करने हेतु आप हार्दिक धन्यवाद के पात्र हैं।

मेरी ग़ज़ल को संशोधन की अत्यन्त आवश्यकता है।  कृपया निम्नवत् संशोधन कर दें। .......  हार्दिक आभारी रहूंगा.  

संशोधित ग़ज़ल

कभी इस तरह मेरे दिल में आ कि मुझे भी ख़ुद ये पता न हो 

हो ज़माने में कोई वाक़या कभी अब तलक जो हुआ न हो  .

 

अभी किसने दर पे सदा-सी दी ये जो आहटें-सी हैं कैसी हैं

कभी दिल कहे कि वो आ गया, कभी सोचता हूँ हवा न हो .

 

ये जो दर्द है वो क़बूल कर इसे प्यार से तू गले लगा

मुझे लग रहा है यूँ हमनशीं यही दर्द दिल की दवा न हो .

 

तू नहीं तो क्या  है ये रौशनी,  बड़ी  बेसुरी-सी  है  ज़िन्दगी

वो है कौन सा ग़मे-जां बता जो बिछड़ के तुझसे मिला न हो .

 

ये धुआं -धुआं सा है किस तरफ़    ज़रा देखना ,  ज़रा देखना

कहीं आग दिल में लगी न हो, कहीं घर किसी का जला न हो  .

 

मेरे पास आ  तुझे ओढ़ लूँ ,  तुझे चख लूँ मैं,  तुझे पी लूँ मैं

रहे वो नशा   मुझे  उम्र  भर  किसी और शै  का नशा न हो  .

 

कोई तीरगी भरा मोड़ हो यही सोचता है ये दिल मेरा

 इसी मोड़ पर  मेरे वास्ते  वो चराग़ ले के  खड़ा न हो  .

यथा संशोधित 

हार्दिक आभार !!!

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अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी  वाह !! सुंदर सरल सुझाव "
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी सादर अभिवादन बहुत धन्यवाद आपका आपने समय दिया आपने जिन त्रुटियों को…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी सादर. प्रदत्त चित्र पर आपने सरसी छंद रचने का सुन्दर प्रयास किया है. कुछ…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार घुसपैठ की ज्वलंत समस्या पर आपने अपने…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
""जोड़-तोड़कर बनवा लेते, सारे परिचय-पत्र".......इस तरह कर लें तो बेहतर होगा आदरणीय अखिलेश…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"    सरसी छंद * हाथों वोटर कार्ड लिए हैं, लम्बी लगा कतार। खड़े हुए  मतदाता सारे, चुनने…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी हार्दिक आभार धन्यवाद , उचित सुझाव एवं सरसी छंद की प्रशंसा के लिए। १.... व्याकरण…"
4 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
22 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
yesterday

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