For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" - अंक ३१ (Now Closed)

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के ३१  वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का तरही मिसरा जनाब कमर जलालवी की बहुत ही मकबूल गज़ल से लिया गया है | इस गज़ल को कई महान गायकों ने अपनी आवाज से नवाजा है | यहाँ यह ज़रूर कहना चाहूँगा कि मूल गज़ल के मिसरे आठ रुकनी हैं परन्तु उसे चार चार अरकान में तोड़ कर भी पढ़ा जा सकता है और दीगर बात यह है कि उसके बावजूद भी मिसरे मुकम्मल ही रहते हैं | आप लोग भी गज़ल ढूंढने का प्रयास कीजिये और इस लाजवाब कारीगरी का आनंद लीजिए|  मैंने भी एक मिसरे के चार अरकान को ही मिसरा ए तरह के रूप पेश किया है | तो लीजिए पेश है मिसरा-ए-तरह .....

"बहल जायेगा दिल बहलते बहलते  "

१२२ १२२ १२२ १२२ 

फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन   

(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)
 
रदीफ़ :-     कुछ नहीं (गैर मुरद्दफ़)
काफिया :- अलते (चलते, टलते, मचलते, सँभलते, फिसलते आदि)

अवधि :-    27 जनवरी दिन रविवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 29 जनवरी दिन मंगलवार 

अति आवश्यक सूचना :-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के इस अंक से प्रति सदस्य अधिकतम दो गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं |
  • एक दिन में केवल एक ही ग़ज़ल प्रस्तुत करें
  • एक ग़ज़ल में कम से कम ५ और ज्यादा से ज्यादा ११ अशआर ही होने चाहिएँ.
  • तरही मिसरा मतले में इस्तेमाल न करें
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी रचनाएँ लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.  
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें.
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये  जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी. . 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 जनवरी दिन सोमवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें | 



मंच संचालक 
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह) 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

Views: 11993

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

दिखा है सदा ही चमकते व जलते,
नहीं मिट सकेगा वो गलते-पिघलते |

न छोडे कभी जो भलाई का दामन,
रखेगा ख़ुदा फूलते और फलते |

झलक भर की चाहत बनाये दिवाना,
कदम ख़ुद बढ़े हैं गली को, टहलते |

मुहब्बत तुझे है तो इज़हार कर तू,
कहीं बात दिल की न रह जाय टलते |

समय से बड़ा कोई मरहम न "बागी"
बहल जायेगा दिल बहलते बहलते |

आदरणीय बागी सर जी सादर प्रणाम
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल हुई है
मतला क्या खूब हुआ है साथ में मक्ते में लाजवाब गिरह

दिखा है सदा ही चमकते व जलते,
नहीं मिट सकेगा वो गलते-पिघलते |..............सच है ये आफताब के बारे झूठी अटकलें हैं 

न छोडे कभी जो भलाई का दामन,
रखेगा ख़ुदा फूलते और फलते |........................हकीकत बयाँ करता हुआ इबादत में

झलक भर की चाहत बनाये दिवाना,
कदम ख़ुद बढ़े हैं गली को, टहलते |........................क्या बात है 

मुहब्बत तुझे है तो इज़हार कर तू,
कहीं बात दिल की न रह जाय टलते |............................बहुत बढ़िया 

समय से बड़ा "बागी" मरहम नहीं है,
बहल जायेगा दिल बहलते बहलते |............................सच कहा दिल बहलाने अच्छा बहाना है

इस ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये सर जी

प्रिय संदीप भाई, आप जैसे ग़ज़लगो के हाथों सराहना पाना, विशेष मायने रखता है, बहुत बहुत आभार |

आदरणीय बागी सर जी ये सब आप बड़ों का स्नेह और आशीर्वाद है ................जो हम जैसों को भी ग़ज़ल सिखा दी वरना क्या ग़ज़ल और क्या ग़ज़लसराई 

बस ये स्नेह और आशीर्वाद बनाये रखिये 

आदरणीय बागी सर जी har sher naayab he ghazal ka girah bhi lajawab lagayi he aapne .....dili daad pesh karta hoon kubool kijiye

बहुत बहुत आभार आदरणीय कादरी साहब, आप से दाद पाना सुकून का सबब है |

बेहतरीन ... शानदार ... दाद कुबूल फरमाएं गणेश जी

सराहना हेतु आभार आदरणीय सतीश भईया |

वाह वाह गणेश जी क्या कहने मतले से मक्ते तक शानदार ग़ज़ल मक्ते के लिए तो फुल मार्क्स दाद कबूल कीजिये 

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी |

दिखा है सदा ही चमकते व जलते,
नहीं मिट सकेगा वो गलते-पिघलते |..बहुत सुंदर सर।

न छोडे कभी जो भलाई का दामन,
रखेगा ख़ुदा फूलते और फलते |...कोई शक नहीं इस बयां में ..सटीक।

झलक भर की चाहत बनाये दिवाना,
कदम ख़ुद बढ़े हैं गली को, टहलते |...वाह !

मुहब्बत तुझे है तो इज़हार कर तू,
कहीं बात दिल की न रह जाय टलते |..अच्छा मशवरा है ..

समय से बड़ा "बागी" मरहम नहीं है,
बहल जायेगा दिल बहलते बहलते |(आगे समय के सिकंदर भी हारा ....बहलते ....मै भी धन्य हुआ'बागी' साहब इस 'समय' के साथ) )
एक बेहतरीन ग़ज़ल बस!वाह!

बहुत बहुत आभार आदरणीय बागडे साहब, इस विस्तृत विवेचना हेतु दिल से आभार, मन मुग्ध है |

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service